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रविवार, 16 फ़रवरी 2020

जख्म

तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म  दिये है
नज़र बचा दुनिया की हमने ,
जो चुपचाप  सिये  है

जब जब भी व्यवहार तुम्हारा ,
था काँटों सा गड़ता
हम रोते तो दुनिया हंसती ,
फर्क तुम्हे  क्या पड़ता
कैसे हृदय चीर दिखलायें ,
हम किस तरह जिये है
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये  है

तुमने सब आशायें तोड़ी ,
हमको तडफाया है
कितनी ही रातें जागे हम ,
मन को समझाया है
अब तो बहना बंद हो गए ,
इतने अश्रु पिये है
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है

बस दो मीठे बोल प्यार के ,
और इज्जत थी मांगी
तुममे अपनापन ना जागा ,
हमने आस न त्यागी
एक दिन शायद भूल सुधारो ,
ले ये आस जिये  है
तुम क्या जानो तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

अठहत्तरवे जन्मदिन पर

मुश्किलों से लड़ ,निपट कर
जिंदगी के कठिन पथ पर
कर लिया है पार मैंने ,
मील का एक और पत्थर
उम्र अब मेरी अठहत्तर

हुआ मैं जब जब त्रसित ,
पीड़ाग्रसित ,तुमने संभाला
कदम जब भी डगमगाये ,
दिया बाहों का सहारा
पड़ा मैं कमजोर जब जब ,
तुम मेरा संबल बनी  तब
तुम्हारी ही प्रेरणा से ,
पहुँच पाया मंजिलों पर
उम्र अब मेरी अठहत्तर

हम बहुत कुछ चाहते पर ,
चाहने से कुछ न मिलता
मगर मेहनत और चाहत
ने तुम्हारी ,दी सफलता
साथियों ने साथ दे कर
मुश्किलों को मात दे कर
निखारा ,मुझको संवारा ,
और दिनोदिन किया बेहतर
उम्र है मेरी अठहत्तर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

अठहत्तरवें  जन्मदिवस पर

—————————-

मन मदन,मस्तिष्क मोहन,मद नहीं और मोह भी ना

और मै बहती हवा सा,सुगन्धित हूँ,मधुर, भीना

कभी गर्मी की तपिश थी,कभी सर्दी थी भयंकर

कभी बारिश की फुहारों का लिया आनंद जी भर

कभी अमृत तो गरल भी,मिला जो पीता गया मै

विधि ने जो भी लिखा उस विधि जीता रहा मै

कभी सुख थे ,कभी दुःख थे,कभी रोता,कभी हँसता

कई जीवन रंग देखे, हुआ अठहत्तर  बरस का


मदन मोहन बहेती 'घोटू '

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?

इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?

फंसे रह कर मोहमाया जाल में ,
मैंने बस यूं ही बिता दी  जिंदगी
बीते दिन पर डालता  हूँ जब नज़र ,
मुझे खुद पर होती है शर्मिंदगी
कितने दिन और कितने ही अवसर मिले ,
मूर्ख मैं अज्ञानवश  खोता रहा
वासना के समंदर में तैरता ,
बड़ा खुश हो लगाता गोता रहा
अब कहीं जा आँख जब मेरी खुली ,
वक़्त इतना कम बचा है क्या करूंगा
इस जनम  में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूँगा

सुनते चौरासी हजारों योनियां ,
भोगने उपरांत मानव तन मिले
पुण्य कर ना तरा योनि फेर से ,
शुरू होंगे फिर से वो ही सिलसिले
मैं अभागा ,मूर्ख था ,नादान था ,
राम में ना रमा पाया अपना मन
दुनिया के भौतिक सुखों में लीन हो ,
भुला बैठा मैं सभी सदआचरण
नहीं है सद्कर्म संचित कोष में ,
पार बेतरणी भला  कैसे करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका
पता ना अगले जनम में क्या बनूंगा

मदन मोहन बहती 'घोटू '
जुगाली

दुधारू पशु जिस तरह है घास खाते
बैठ कर के शांति से है पुनः चबाते
इस तरह की उनकी ये जीवन प्रणाली
आम भाषा में जिसे कहते  'जुगाली '
दूध में देती बदल है एक तृण को
हम भी अपनाये अगर इस आचरण को
काम जो दिन भर किये ,मन से ,वचन से
पूर्व सोने के विचारे ,शांत मन से
भला किसका किया और किसको दी गाली
अपने हर एक कर्म की करके जुगाली
आत्मआलोचक बने ,खुद को सुधारे
बहेगी जीवन में सुख की दुग्ध धारें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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