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शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

ओरेंज काउंटी-मेरा नया घर
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नारंगी अट्टालिकाओं को छूकर,
उगता हुआ नारंगी सूरज
विशाल तरणताल में,
जल क्रीडा करते हुए स्त्री पुरुष
गेंद को बास्केट में डाल कर,
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का,
अभ्यास करते हुए युवक
राजनेतिक पार्टियों की तरह,
गेंद को एक दूसरे के पाले में डाल कर,
टेनिस खेलते हुए निवासी
फंवारों में उछल उछल कर,
नाचते हुए प्रमुदित बच्चे
अपने नन्हे मुन्नों को,
बल उपवन में खेलाती मातायें
धार्मिक वातावरण की खुशबू से,
महकता हुआ मंदिर
झर झर झरते हुए झरने 
 हरा भरा सुरम्य वातावरण
 प्रभु ने आसमान से जब इस ,
अद्भुत आवासीय क्षेत्र को देखा तो,
प्रसन्न होकर,प्रसाद स्वरुप,
अपना एक प्रासाद ,ऊपर से गिरा दिया
जो यहाँ के निवासियों का,
मनोरंजन स्थल (क्लब) बन गया
मै,अपने विशाल बंगले की तनहाइयों को छोड़,
इस हंसती खेलती बस्ती में बस कर,
बहुत खुश हूँ
क्योंकि 'ओरेंज काउंटी'
एक सम्पूर्ण आवासीय परिसर है,
जहाँ खुशियाँ बसती है,
और जिंदगी हंसती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

गुरुवार, 1 अगस्त 2019




कबूतरों से

हे प्रेम के प्रतीक परिंदों !
अपनी चमकती गर्दन को मटका कर ,
तुम्हारे प्रेमप्रदर्शन का अंदाज
सचमुच है लाजबाब
तुम्हे अपनी प्रेमिका के साथ
गुटरगूँ करते हुए देख कर ,
कितने ही नवप्रेमी ,भावुक हो जाते है
प्रेमशास्त्र का पहला  अध्याय सीख कर ,
एक दूसरे में खो जाते है

हे आँख मटक्का करते हुये आशिकों !
तुम तो हो मोहब्बत के फ़रिश्ते
हर तीसरे चौथे दिन किसी नई कबूतरनी संग ,
जोड़ लिया करते हो रिश्ते
और घर की मुंडेरों पर हो नज़र आते
उनके संग इश्क़ लड़ाते
खुले आम ,सामने सारे जहाँ के
हमें भी बता दो
लड़की पटाने का ये हुनर ,
तुमने सीखा है कहाँ से

हे मुकद्दर के सिकंदरों !
तुमने मेहरुन्निसा के हाथो से उड़ ,
उसका मुकद्दर चमका दिया
और एक दिन  उसे नूरजहां बना दिया
वैसी ही तक़दीर हमारी भी चमका दो
किसी बड़ी हस्ती का ,
लख्तेजिगर बनवादो

हे चापलूस चुहलबाजों !
तुम अक्सर
आते हो नज़र
'हाँ 'कहनेवाली मुद्रा में ,
गर्दन हिलाते हुए ,
ऊपर से नीचे ,नीचे से ऊपर
दाएं बाए गरदन हिलाकर ,
कभी भी नहीं करते हो नाहीं
क्या इसी तरह हर बात में हाँ कह कर ही ,
 लड़की जाती है पटाई

हे गगन बिहारी प्रेमियों !
तुम्हारा दिशाज्ञान
सचमुच है महान
तुम्हे कितना ही छोड़ दो खुला
पर जैसे ही दिन ढला
तुम आज्ञाकारी पतियों की तरह ,
लौट कर ,सीधे आ जाते हो घर
और बन जाते हो लोटन कबूतर

हे प्रेमसन्देश के वाहकों !
एक जमाने में  प्रेमिकाएं ,
अपने पहले प्यार की पहली चिट्ठी
तुम्हारे माध्यम से भिजवाती थी
और कबूतर जा जा गाना जाती थी
लेकिन तुम खुद तो ,
कभी प्रेम संदेशा भिजवाने की ,
नौबत ही नहीं आने देते हो
गुटरगूँ करते हुए ,गरदन मटका कर ही
कबूतरनी को पटा  लेते हो

हे शांति के दूतों !
तुम्हारे श्वेतवर्णी भाइयों को ,
शांति का प्रतीक मान कर लोग है उड़ाते
पर तुम शांति से बैठे हुए ,
कभी भी हो नज़र नहीं आते
हमेशा देखा है तुम्हे व्यस्त ,
किसी न किसी  कबूतरनी के साथ ,
टांका बिठाते

हे कुलबुलाते हुए कपोतों !
तुम भी आजकल के कपूतों की तरह ,
उड़ना सीख लेने पर
चले जाते हो अपने माँ बाप को छोड़कर
अपना अलग घर बसा लेते हो
उनके प्यार और त्याग का ,
क्या यही सिला देता हो

हे पंख फड़फड़ाते हुए फटेहाल फक्कड़ों !
क्या तुम्हे इश्क़ लड़ाने के लिए ,
मिलती है मेरी ही गैलरी
ले आते हो रोज एक नयी कबूतरी
देख कर तुम्हारी ये खुशनसीबी
मुझे होने लगता है अहसासेकमतरी
मैं द्वेष से जला जा रहा हूँ
कितने ही वर्षों से ,
एक ही कबूतरी से काम चला रहा हूँ  
तुम दिखने में इतने सीधे सादे हो
पर क्या सचमुच ही वैसे हो जैसे दिखते हो
मुझे तो तुम आवारा प्रेमी लगते हो
कभी भी  एक जगह नहीं टिकते हो
कहाँ से लाये हो ऐसा मुकद्दर
इ मेरे कलाबाज कबूतर !
 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 31 जुलाई 2019

यह युग रिकमंडेशन का है

यह युग रिकमंडेशन का है
पुश ,रेकमंडेशन या जरिया ,चांदी  के बल पर चलते है
रिश्तेदारी का भोजन कर ,पैसों के साये पलते है
मख्खन की मालिश होती है ,ये चमकीले चमक रहे है
दौलत के बल दाल दल रहे ,दिन दिन दूने दमक रहे है
दुनिया के चप्पे चप्पे में , चारों  और नज़र आते है
पुश पाकर पापी से पापी ,बेतरणी को तर जाते है
जर के बल पर जरिया होता ,पर्स देख कर पुश मिलता है
है प्रचंड रिकमंड ,फंड गर ,नहीं काम कैसे चलता है
रिकमंडेशन ही फैशन है,आज जमाना फैशन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
भारत की प्रगति में देखो ,कितना बड़ा साथ है इसका
बेकारी के उन्मूलन में ,कितना बड़ा हाथ है  इसका  
जितने थे बेकार भतीजे ,भाई मामा चाचा बेटे
रिकमंडेशन की महिमा है ,आज सभी कुर्सी पर बैठे
यह जरिये का ही जादू है ,आज धूल में फूल खिले है
उनके साले के साले ने ,डाली कितनी दाल मिलें है
उस सफ़ेद बंगले के अंदर ,छुपी हुई काली कमाई है
नेता ठेकेदार आफिसर ,चोर चोर सब ,भाई भाई है
क्या क्या होता है मत पूछो ,अजब ढंग यह जीवन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
लोग आदमी नहीं देखते ,आमदनी देखा करते है
बटुवे के भारीपन को लख ,दाव  बहुत फेंका करते है
अब बस मख्खन बाजी चलती ,रिश्वत आम रिवाज हो गया
पत्रपुष्प जो अगर चढ़ा तो ,पुश भी पाया ,पास हो गया
अब शादी से रिश्तेदारी तक रिकमंडेशन चलती है
बिना शिफारिश की चिट्ठी के ,दाल किसी की ना गलती है
चपरासी रिकमंड न करदे ,तो साहब ना मिल सकते है
तुम्ही बताओ गर्मी के बिन ,कच्चे आम कभी पकते है
रिश्वत का बाजार गरम है ,गूँज रहा उसका डंका है
ये युग रिकमंडेशन का है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 दीपक अभिनन्दन

जो जल कर भी जगमग करता ,जन जीवन के आंगन को
भू के ऐसे एक दीप  पर ,सौ सौ चाँद निछावर है

थका बटोही ठहरे ,उसको चैन मिले
रात हुई ,चकवा चकवी के नैन मिले
बया घोसले में बच्चों के साथ रहे
जहाँ हमेशा सरगम की बरसात रहे
कलरव गूंजे,गए विहंग भी नहीं थके
एक डाल पर ,काग कोकिला बैठ सके
जो पत्थर के उत्तर में भी ,फल दे मीठे रसवाले ,
भू का ऐसा एक वृक्ष ,सौ कल्पतरु से बढ़ कर है
भू के ऐसे एक दीप पर सौ सौ चाँद निछावर है

माना नभ में रोज दिवाली होती है
पर निर्धन की कुटिया काली होती है
जिसके मन में घोर अँधेरा छाया है
वहीँ प्रेम का दीपक भी मुस्काया है  
कड़वा रहता तेल ,कांति पर देता है
घुट घुट जलता हुआ कांति पर देता है
जो तूफानों को सह कर भी ,मुस्काता जलता जाता ,
एक किरण ऐसे दीपक की ,रवि रश्मि से सुन्दर है
भू के ऐसे एक दीप पर ,सौ सौ चाँद  निछावर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
एकता गीत

हाथ में ,हाथ दे
साथ साथ हम चलें
साथ साथ रे ,साथ साथ रे
एक साथ ,साथ साथ ,साथ साथ रे
वाधा से झुके नहीं
हम कभी रुके नहीं
मुश्किलों से खेलते
आँधियों को झेलते
दुःख को भी लगा गले
हम चले,बढे चले
एक लक्ष्य है ,एक साध रे
एक साथ साथ साथ साथ साथ रे
दिल में आग है
प्रेम राग है
जीत के लिए
हम सदा जिये
जब तलक है दम में दम
कदम कदम मिला के हम
बढ़ते जाएंगे ,साथ साथ रे
एक साथ साथ साथ साथ साथ रे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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