एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

सुख दुःख 

मैंने हर मौसम की पीड़ा भुगती तो ,
हर मौसम का सुख भी बहुत उठाया है 
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

इस जीवन के कर्मक्षेत्र में जीत कभी ,
तो फिर कभी हार का मुख भी देखा है 
अगर कभी जो दुःख के आंसू टपकाये ,
आल्हादित होने का सुख भी देखा है 
ख़ुशी ख़ुशी जब पीड़ प्रसव की झेली है ,
तब ही मातृत्व का आनन्द उठाया है ,
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

वो सूरज की तेज तपन ही है जिससे ,
मेघ जनम ले ,शीतल जल बरसाते है 
पाते हम परिणाम हमारे कर्मो का 
जससे जीवन में सुख दुःख आते जाते है 
विरह पीर में रात रात भर तड़फा हूँ ,
तभी मिलन के सुख से मन मुस्काया है 
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

दो घूट पियो मदिरा के तो मस्ती मिलती ,
ज्यादाअगर पियो बीमार बना देती 
 सर्दी ,गर्मी बारिश अच्छे मौसम पर ,
उनकी अति ,जीना दुश्वार बना देती 
वैसे ही सुख दुःख का संगम ,जीवन है ,
आज ढला,तब कल सूरज उग पाया है 
मैंने तुम पर जितना प्यार लुटाया है ,
उससे ज्यादा प्यार तुम्हारा पाया है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रात के तूफ़ान के बाद 

थोड़ी सी शरारत मैंने की ,थोड़ी सी शरारत तुमने की ,
पर ये सच है कि शरारतें ,दोनों की प्यारी प्यारी थी 
इस सर्द ठिठुरते मौसम में ,तन मन में आग लगा डाली ,
हम दोनों को ही जला गयी ,ऐसी भड़की चिंगारी थी 
दो घूँट प्यार के मैंने पिये ,दो घूँट प्यार के तुमने पिये ,
हम मतवाले मदहोश हुये ,कुछ ऐसी  चढ़ी खुमारी थी 
अब जब तूफ़ान थम गया है ,मुझको इतना तो बतला दो ,
ये पहल करी थी मैंने या इसमें फिर पहल तुम्हारी थी  

घोटू 

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

सरस्वती वंदना
 
वीणापाणि तुम्हारी वीणा मुझको स्वर दे 
नवजीवन उत्साह नया माँ मुझमे भर  दे 
पथ सुनसान,भटकता सा राही हूँ  मैं ,
ज्योति तुम्हारी ,निर्गमपथ ज्योतिर्मय कर दे 

घोटू 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

 पैसे की दास्तान    

कल  बज रहा था एक गाना 
बहुत पुराना 
ओ जाने वाले बाबू ,एक पैसा दे दे 
तेरी जेब रहे ना खाली 
तेरी रोज मने दीवाली 
तू  हरदम मौज उड़ाए
कभी न दुःख पाए -एक पैसा दे दे 
एक पैसे का नाम सुन 
मेरी आँखों के आगे लौट आया बचपन 
जब था एक पैसे के मोटे से सिक्के का चलन
माँ  के पैर दबाने पर
या दादी की पीठ खुजाने पर 
हमें कई बार पारितोषिक के रूप में मिलता था ,
उगते सूरज की ताम्र आभा लिए 
एक पैसे का सिक्का ,
जब हाथ में आता था 
बड़ा मन भाता था 
हमें अमीर बना देता था 
ककड़ी वाला लम्बा गुब्बारा दिला देता था 
या नारंगी वाली मीठी गोली खिला देता था 
हमारे बड़े ठाठ हो जाते थे 
हम कभी आग लगा हुआ चूरन ,
या कभी चने की चाट खाते थे 
बचपन का वह बड़ा हसीन दौर होता था 
खुद खरीद कर खाने का ,
मजा ही कुछ और होता था 
वो एक पैसे का ताम्बे का सिक्का ,
हमें थोड़ी देर के लिए रईस बना देता था 
और उस दिन उत्सव मना देता था 
जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया ,
पैसा छोटा होता गया 
और एक दिन किसी ने उसकी आत्मा ही छीन ली 
उसका दिल कहीं खो गया 
और वो एक छेद वाला पैसा हो गया   
जैसे जैसे उसकी क्रयशक्ति क्षीण होती गयी 
उसकी काया जीर्ण होती गयी 
और एक दिन वो इतना घट गया 
कि  माँ की बिंदिया जितना ,
एक नया पैसा बन कर सिमट गया 
पता नहीं जेब के किस कोने में खिसक जाता था 
गिर भी जाता तो नज़र नहीं आता था 
न उसमे खनक थी ,न रौनक थी,
और उसकी क्रयशक्ति भी हो गया था खात्मा  
ऐसा लगता था की बीते दिनों की याद कर ,
आंसू बहाती हुई है कोई दुखी आत्मा  
उसके भाई बहन भी आये जो 
दो,पांच और दस पैसे के चमकीले सिक्के थे 
पर मंहगाई की हवा में सब उड़ गए ,
क्योंकि वो बड़े हलके थे 
फिर चवन्नी गयी ,अठन्नी गयी ,
रूपये का सिक्का नाम मात्र को अस्तित्व में है ,
पर गरीब दुखी और कंगाल  है
अगर जमीन पर पड़ा भी मिल जाए 
तो लोग झुक कर उठाने की मेहनत नहीं करते ,
इतना बदहाल है 
अब तो भिखारी भी उसे लेने से मना कर देता है ,
उसे पांच या दस रूपये चाहिये 
बस एक भगवान के मंदिर में कोई छोटा बड़ा नहीं होता 
आप जो जी में आये वो चढ़ाइये
पैसे की हालत ये हो गयी है कि 
उसका अस्तित्व लोप हो गया है ,बस नाम ही कायम है 
कई बार यह सोच कर होता बड़ा गम है 
लोग कितने ही अमीर लखपति करोड़पति बन ,
पैसेवाले तो कहलायेंगे 
पर आप अगर उनके घर जाएंगे
तो शायद ही एक पैसे का कोई सिक्का पाएंगे 
उनके बच्चों ने कदाचित ही ,एक पैसे के
 ताम्बे के सिक्के की देखी  होगी शकल  
क्योंकि अपने पुरखों को कौन पूजता है आजकल
बस उनका 'सरनेम 'अपने नाम के साथ लगाते है 
वैसे ही लोग पैसा तो नहीं रखते ,
पर पैसेवाले कहलाते है 
वाह रे पैसे 
तूने भी बुजुर्गों की तरह ,
दिन देख लिए है कैसे कैसे 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '
 
      अरुण ज्योति मिलन उत्सव 
             पचासवीं वर्षगाँठ 
                   १  
दिवस आज का ख़ास है ,मन में है उल्लास  
अरुण ज्योति के मिलन को,बीते बरस पचास 
बीते बरस पचास ,सुखी रह कर मुस्काये 
 जीवन बगिया महकाई ,दो पुष्प  खिलाये 
प्यारी बेटी सोनू ,सोहना पुत्तर  आश्विन 
हंसी ख़ुशी बीते इनके जीवन का हर दिन 
                     २ 
बम्बई की कच्ची कली ,उज्जैन का मासूम 
दोनों ने मिल मचाई ,देखो कैसी  धूम  
देखो कैसी धूम ,सुखी परिवार बसाया 
मिली अरुण को ज्योति ,पूरा घर चमकाया 
कह घोटू कविराय बन गए अब भोपाली 
घूम फिर कर के मौज मनाते,शान निराली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-