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शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

रावण का पुनर्जन्म

सीता सी शुद्ध पवन 
का जब जब करे हरण 
प्रदूषण का रावण 
कलुषित कर वातावरण 

पकड़ में जब आता 
जलाया वो जाता 
आतिशबाजियां  छोड़ ,
पर्व मनाया जाता 

पुनः  धूम्र उत्सर्जन 
धूमिल हो  वातावरण 
बार बार जीवित हो ,
प्रदूषण का वो रावण 

घोटू 

बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

प्यार बांटते चलो 


ये नाज ओ  नखरे,रूप अदा 
अच्छे लगते है यदा कदा 
हथियार जवानी वाले ये ,
जादू इनका ना चले सदा 

पर यदि अच्छे हो संस्कार 
मन में हो सेवाभाव ,प्यार    
जीवन भर साथ निभायेंगे ,
और फैलाएंगे  सदाचार        

तुम त्यागो मन का अहंकार 
सदगुण लाओ और सदविचार 
ये पूँजी ख़तम नहीं होगी ,
तुम रहो बांटते ,बार बार 

घोटू 
विश्वास और सुख 

आँख मूँद कर करे भरोसा पति पर,उससे कुछ ना कहती 
मैंने देखा ,ऐसी पत्नी ,अक्सर सुखी और खुश रहती 

सदा पति पर रखे नियंत्रण ,बात बात में टोका टाकी 
उस पर रखती शक की नज़रें ,हर हरकत पर  ताकाझांकी 
कहाँ जा रहे ,कब आओगे ,कहाँ  गए थे ,देर क्यों हुई 
आज बड़े खुश नज़र आरहे ,कौन तुम्हारे साथ थी मुई 
बस इन्ही पूछा ताछी से ,शक का बीज बो दिया करती 
थोड़ा वक़्त प्यार का मिलता, यूं ही उसे खो दिया करती 
पति आये तो जेब टटोले ,ढूंढें काँधे पड़े बाल को 
जासूसों सी पूछा करती ,है दिन भर के हालचाल को 
होटल से खाना मंगवाती ,जिसे रसोईघर से नफरत 
व्यस्त रहे शॉपिंग,किट्टी में ,पति के लिए न पल भर फुर्सत 
ऐसी पत्नी के जीवन में ,नहीं प्रेम की सरिता  बहती 
मैंने देखा ऐसी पत्नी ,हरदम बहुत दुखी है रहती 

और एक सीधीसादी सी ,भोली सूरत ,सीधे तेवर 
पतिदेव की पूजा करती ,उसे मानती है परमेश्वर 
करती जो विश्वास पति पर ,जैसा भी है ,वो अच्छा है 
उससे कभी विमुख ना होगा ,उसका प्यार बड़ा सच्चा है 
इधर उधर पति नज़रें मारे ,तो हंस कर है टाला  करती 
सब का मन चंचल होता है ,कह कर बात संभाला करती 
ना नखरे ना टोकाटाकी ,ना ही झगड़े ,ना ही अनबन 
अपने पति पर प्यार लुटाती,करके खुद को पूर्ण समर्पण 
अच्छा पका खिलाती ,दिल का रस्ता सदा पेट से जाता 
ऐसा प्यार लुटानेवाली ,पत्नी पर पति बलिबलि  जाता 
पति के परिवार में रम कर ,संग हमेशा सुख दुःख सहती 
मैंने देखा ,ऐसी पत्नी ,अक्सर सुखी और खुश रहती 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
प्रयोजन और भोजन 


आस्था में प्रभु की मंदिर गए ,
चैन मन को मिलेगा ,विश्वास था 
श्रद्धानत ,आराधना में लीन थे ,
लगा होने शांति का आभास था 
व्यस्त हम तो रहे करने में भजन ,
लोग आ पूरा प्रयोजन कर गए 
हमें चरणामृत और तुलसीदल मिला ,
लोग पा परशाद ,भोजन कर गए 

घोटू 
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 


भले खाएंगे डुबो कर चाय में ,
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 
कल सुबह होगी जलन, देखेंगे कल ,
पर पकोड़े चरपरे ही चाहिये 
उनकी ना ना बदल देंगे हाँ में पर,
नाज नखरे मदभरे ही चाहिए 
प्रेम करने में उतर जाएंगे सब ,
वस्त्र लेकिन सुनहरे ही चाहिये 

घोटू 

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