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बुधवार, 19 सितंबर 2018

चंद्रोदय से सूर्योदय तक 

चंद्रोदय से सूर्योदय तक ,ऐसी मस्ती छाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई 

मिलन चाह ने ,जगमग जगमग करदी रात अँधेरी 
एक चाँद तो अम्बर में था ,एक बाहों में मेरी 
होंठ खिले थे फूल गुलाबी ,बदन महकता चंदन 
डोरे लाल लाल आँखों में ,बाहों में आलिंगन 
कोमल और कमनीय कसमसी ,कंचन जैसी काया 
तेरा' तू' और मेरा 'मैं 'था ,हम के बीच समाया 
आया  फिर तूफ़ान थम गया ,सुखद शांति थी छाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई 
 
बिखर गयी बालों की सज्जा ,केश  हुये  आवारा 
फ़ैल गयी होठों की लाली ,पसरा  काजल सारा 
कुचली थी कलियाँ गजरे की ,अलसाया सा तन था 
थका थका सा ढला ढला सा ,मुरझाया आनन  था 
कुछ पल पहले ,गरज रहे थे ,गर्म जोश जो बादल 
सब सुखांत में शांत पड़े थे ,नयना जो थे चंचल 
तन का पौर पौर दुखता था ,कली कली कुम्हलाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया , यूं ही रात बिताई  

शुरू हुई फिर कितनी बातें ,कैसी कैसी ,कब की 
कुछ कल की बीती खुशियों की ,और कुछ कड़वे अब की 
बीच बीच में हाथ दबाना और सहलाना तन को 
कितना प्यारा सा लगता था ,राहत देता मन को 
रहे इस तरह हम तुम दोनों ,इक दूजे में उलझे 
बिखरे बालों को सुलझाते ,कितने मसले सुलझे 
जी करता था कभी न बीते ,ये लम्हे  सुखदाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया  ,यूं ही रात बिताई  

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
कल आया पर अकल न आयी 

बेटा जवान था 
पर बाप परेशान था 
वो बड़ा हो गया था 
अपने पैरों खड़ा हो गया था 
मगर उसका बचपना न गया 
आवारगी और छिछोरापना न गया 
तब ही किसी ने दी सलाह 
करवादो इसका विवाह 
जब सर पर पड़ेगी जिम्मेदारी 
गुम हो जायेगी हेकड़ी  सारी 
गृहस्थी का बोझ सर पर चढ़ जाएगा 
 वो नून और तैल के चक्कर पड़ जाएगा 
दिन भर काम करने को मजबूर हो जाएगा 
उसका छिछोरापन दूर हो जाएगा 
आज नहीं तो कल 
उसे आ जायेगी अकल 
बाप ने शादी करवा दी 
एक अच्छी बहू ला दी 
शुरू में लगा बेटा है सुधर गया 
पर अचानक उस पर नेतागिरी का भूत चढ़ गया 
बाप घबरा गया 
क्योंकि दूना होकर के था आगया 
वही छिछोरापन और बचकाना व्यवहार 
पर हालत और भी बिगड़ गयी थी अबकी बार 
क्योंकि अब वो गालियां भी बकने लगा था 
और  रहा नहीं किसी का सगा था 
उसका व्यवहार सबसे बदलने लगा 
वो अपनों को ही छलने लगा 
वो होने लगता बद से बदतर 
बाप ने पीट लिया अपना सर 
दुःख से उसकी आँखे डबडबाई 
बोला कल आगया पर बेटे को अकल न आयी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 17 सितंबर 2018

आओ ,यादें ओढ़े 

आयी शीत ऋतु  जीवन की ,यूं ना बदन सिकोड़े 
जीवन में ले  आये ऊष्मता ,आओ  यादें   ओढ़ें 
पहली पहली बारिश में फिर उछल कूद कर भीगे ,
बहती नाली में कागज की किश्ती, फिर से छोड़े 
यह जीवन का अंकगणित है लंगड़ी भिन्न सरीखा ,
अबतक जो भी घटा,भाग दे ,.कई गुना कर जोड़े  
जाने क्या क्या सपने देखे ,थे हमने  जीवन में ,
पूर्ण हुए कुछ ,किन्तु अधूरे है अब तक भी थोड़े
अपनी मन मरजी करते है ,नहीं हमारी सुनते ,
बड़े हो गए  बच्चे ,कैसे उनके कान मरोड़े 
जबसे पंख निकल आये है ,उड़ना सीख गए है ,
सबने अपने नीड़ बसाये ,तनहा हमको छोड़े 
नहीं किसी से ,कभी कोई भी रखें अपेक्षा मन में ,
हमें पता है पूर्ण न होगी ,क्यों अपना दिल तोड़े 
जीवन की आपाधापी में रहे हमेशा उलझे ,
बहुत अभी तक सबके खातिर ,इतने भागे दौड़े
भुगत गयी सब जिम्मेदारी ,अब ही समय मिला है,
आओ खुद के खातिर जी लें ,दिन जीवन के थोड़े 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

 

         मोदी जी के जन्मदिन पर 

आज विश्वकर्मा दिवस है,करें हम उनको नमन, 
      सृष्टिकर्ता ,देवता वह,सृजन का ,निर्माण का 
आज मोदी का जन्मदिन ,यह सुखद संयोग है,
      लिया है संकल्प जिसने ,देश नवनिर्माण का 
देश का 'प्रगति पुरुष'यह,बड़ी लम्बी सोच है ,
      हौसला मन में भरा है,साथ ले विज्ञान का 
 आओ हम तुम, सच्चे दिल से,करें प्रभु से प्रार्थना ,
    पूर्ण होवे स्वप्न उसका ,देश के  उत्थान का 

घोटू  

शनिवार, 8 सितंबर 2018

प्रातः भ्रमण

रोज रोज,हर प्रातः प्रातः 
पति पत्नी दोनों साथ साथ 
सेहत के लिए भ्रमण करते,
हँस करते सबसे मुलाकात

कुछ प्रौढ़ और कुछ थके हुए
कुछ वृद्ध और कुछ पके हुए 
कुछ जैसे तैसे बिता रहे ,
अपने जीवन का उत्तरार्ध 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

कुछ रहते निज बच्चों के संग 
कुछ कभी सुखी ,कुछ कभी तंग 
एकांत समय में बतलाते ,
अपने सुख दुःख की सभी बात 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

कह बीते कल के हालचाल 
देते निकाल ,मन का गुबार 
हलके मन प्यार भरी बातें ,
करते हाथों में दिए हाथ 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

कोई प्रसन्न है कोई खिन्न 
सबकी मन स्तिथि भिन्न भिन्न 
सब भुला ,पुनः चालू करते ,
एक अच्छे दिन की शुरुवात 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


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