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बुधवार, 15 मार्च 2017

                बदलता व्यवहार

मैं कई बार सोचा करता ,ऐसा क्या जादू चल जाता
कि अलग अलग स्थानों पर ,सबका व्यवहार बदल जाता
ले नाम धरम का भंडारे ,करवा खाना बांटा करते
सब्जीवाले से धना मिर्च ,हम मगर मुफ्त माँगा करते
रिक्शेवाले से किचकिच कर ,हम उसे किराया कम देते
पानीपूरी के ठेले पर , हम  एक पूरी फ़ोकट लेते
छोटी दूकान पर मोलभाव,शोरूमो में दूना पैसा 
हम खुश होकर दे देते है,व्यवहार बदलता क्यों ऐसा 
लगता है सेल जहां कोई,हम दौड़े दौड़े जाते है 
हालांकि आने जाने में ,दूने पैसे लग जाते है
हम तीन चार सौ का पिज़ा ,घर मंगवा खाते खुश होकर
पर घर के परांठे ना खाते,मोटे  होने से लगता डर
जा पांच सितारा होटल में,दो सौ की खाते एक रोटी
और उस पर शान दिखाने को ,वेटर को देते टिप मोटी
मन्दिर में जा,प्रभु चरणों में ,जेबें टटोल,सिक्का फेंकें
परशाद चढ़ा खुद खाते है,बाकी जाते है घर लेके
दांतों से पैसे को पकड़े ,हम लेन देन में है पक्के
अपना बदला व्यवहार देख ,हम खुद हो जाते भौंचक्के
सुन्दर साड़ी में सजी हुई ,पत्नी पर ध्यान नहीं धरते
पर देख पराई नारों को ,तारीफ़ के पुल बांधा  करते
बिन ढूंढें ही मिल जाती है,औरों में  कमियां हमें कई
अपनी कमियां ,कमजोरी का,लेकिन होता अहसास नहीं
ये कैसा है मानव स्वभाव ,हम में क्यों आता परिवर्तन
हम क्षण क्षण रूप बदलते क्यों,आओ हम आज करें चिंतन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                   होली में

परायों से भी अपनों सा ,करो व्यवहार  होली में
भुला कर भेद सब मन के,लुटाओ प्यार होली में 
कोई  चिकने है चमकीले,कोई ज्यादा मुलायम है,
गुलाबी पर नज़र आते ,सभी रुखसार  होली में
जब उनके अंग छूकर के ,तरंगें मनमे उठती है ,
भंग  का रंग चढ़ता है,हमें  हर  बार होली  में
गुलाबी दोहज़ारी नोट, ए टी एम से निकले,
तुम्हारे रूप का हो इस तरह ,दीदार होली में 
रंगों से रँगा हर चेहरा ,हमे अपना सा लगता है ,
खेलते खेल खुल्ला  है ,सभी दिलदार होली में
किसी भी गाल पर तुम हाथ फेरो ,छूट जब मिलती,
बड़े बेसब्रे हो जाते  है ,बरखुरदार  होली में
रंगों से तरबतर कपड़े,चिपककर जिस्म से लिपटे,
तुम्हारा  भीगा ये जलवा ,लगे अंगार होली में
बड़ा ही मौज मस्ती का ,है ये त्योंहार कुछ ऐसा ,
दिलों को जीत लेते हम,दिलों को हार होली में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 मार्च 2017

कल तक था सवाया,-आज हुआ पराया

एक जमाना था ,
जब एक रूपये का सिक्का ,चवन्नी के संग
याने कि सवा रुपया,भरता था जीवन में रंग
ये बड़ा शुभ माना जाता था
और समृद्धि का प्रतीक जाना जाता था
सवा रूपये के प्रसाद चढाने से,
पूरी होती मनोकामना थी 
सवा रूपये का चढ़ावा ,सवाया फल देगा ,
ऐसी धारणा थी
सुनते है मेरी दादी ने ,पोता पाने की आशा में ,
मनौती करवाई थी
और मेरे पैदा होने पर ,बालाजी को  ,
चूरमे की सवामनी चढाई थी
जब मैं स्कूल गया ,पण्डितजी को सवा रुपया चढ़ाया था
उसके बाद उन्होंने मुझे पढाया था
यूं तो मैं सच्ची लगन और मन से पढता था
पर मेरे पास होने पर हमेशा ,सवा रूपये का प्रशाद चढ़ता था
मेरी सगाई पर मेरे ससुर ने ,
मुझे चाँदी का रुपया और चवन्नी याने सवा रुपया दिया था
और अपनी बेटी के लिए ,मुझे फांस लिया था
और शादी के बाद ,जब मेरी बीबी घर में थी आयी
तो सब बोले थे,बहू तो है बेटे से सवाई
और आजतक भी वो मुझ पर सवाई ही पड़ रही है
हमेशा मुझ पर सवार रहती है ,सर पर चढ़ रही है
उन दिनों स्कूल मे ,अद्धा,सवैया और हूँठा के
पहाड़े रटाये जाते थे
और लोग सवा रूपये की दक्षिणा में ,
सत्यनारायण की कथा सम्पन्न कराया करते थे
और तो और हिंदी कविता  में ,
दो पंक्ति के दोहे और चार पंक्ति की चौपाई के संग
एक सवैया भी होता था,जिसका अपना ही था रंग
अब सवाल ये है कि आजकल,सवा को ये क्या हो गया है
सवा न जाने कहाँ  खो गया है
जबसे चवन्नी का चलन हवा हो गया है
तबसे बिचारा सवा,हमसे रुसवा हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

होली - एक अनुभव 
                        १  
न जाने कौन सी भाभी,न जाने कौन से भैया 
छिपा कर अपनी बीबी को ,थे रखते जौन से भैया 
पराये जलवों का जुमला  ,गए सब भूल होली में ,
हम मलते गाल भाभी के ,खड़े थे मौन से  भैया 
                            २ 

हुआ होली के दिन पूरा ,हमारा ख्वाब  बरसों का  
मली गुलाल गालों पर ,नहीं उनने  हमें  रोका 
इधर हम उनसे रंग खेलें,उधर पतिदेवता उनके,
हमारे माल पर थे साफ़ करते हाथ, पा  मौका 
                            ३ 
मुलायम ,स्वाद खोये सा,भरा मिठास है मन में 
श्वेत मैदे सा और खस्ता, गुथा  है रूप,यौवन में 
पगा है प्यार के रस में,बड़ी प्यारी सी है लज्जत,
तुम्हारे जैसा ही तो था,खिलाया गुझिया जो तुमने 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 13 मार्च 2017

चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा...


चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा
फिर भी बचे रहे तो, भूखा सुला के मारा

बरसों से चल रहा है, दहशत का सिलसिला ये
बीवी ने जिंदगी को, दोजख बना के मारा

कैसे बतायें कितनी मनहूस वो घडी थी
इक शेर को है जिसने शौहर बना के मारा

वैसे तो कम नहीं हैं हम भी यूं दिल्लगी में
उसपे निगाह अक्सर उससे बचा के मारा

चर्चित को यूं तो दिक्कत, चर्चा से थी नहीं पर
बीवी ने आशिकी को मुद्दा बना के मारा

- विशाल चर्चित

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