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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

हम पुलिस है

जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर 
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है 
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

हम पुलिस है


जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

रविवार, 18 सितंबर 2016

पश्चाताप

पश्चाताप

मैंने गर्वोन्वित हो सबको किया तिरस्कृत ,
     मेरे माँ और बाप,बहन भाई थे अच्छे
जैसा मैंने किया ,मिला मुझको भी वैसा ,
     मुझको नहीं पूछते ,बिलकुल,मेरे बच्चे
मैंने कितने मन्दिर और देवता पूजे ,
      मातृदेवता,पितृदेवता भूला  गया मैं
वो जो हरदम ,मेरे आंसू रहे पोंछते,
      उनकी धुंधलाई आँखों को रुला गया मै
तीर्थयात्राएं की ,अन्नक्षेत्र खुलवाये ,
     जगह जगह पर मैंने करवाये भंडारे
लेकिन घर के एक कोने में गुमसुम बैठे ,
    जो मिल जाता ,खा लेते ,माँ बाप बिचारे
दीनो को कम्बल बंटवा ,फोटो खिंचवाए ,
     फटी रजाई ,माँ की लेकिन बदल न पाया
सच तो ये है ,मैंने जैसा ,जो बोया था ,
      आज बुढापे में,वैसा ही फल है पाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चन्दन और पानी

चन्दन और पानी

तुमने अपने मन जीवन में ,
जबसे मुझे कर लिया शामिल
जैसे चन्दन की लकड़ी को,
गंगाजल का साथ गया मिल
कभी चढूं विष्णु चरणों पर
कभी चढूं शिव के मस्तक पर
अपनेजीवन करू समर्पित,
प्रभु पूजन में ,घिस घिस,तिल तिल 
सुखद सुरभि  मै फैलाऊंगा
शीतलता ,तन पर  लाऊंगा
औरों को सुख देना ही तो,
मेरा मकसद,मेरी मंजिल

घोटू

हमारी धृष्टता

हमारी धृष्टता

बड़ी अजीब होती है आदमी की प्रवत्तियाँ
वह कभी भी ,अपनी घरवाली से सन्तुष्ट होता,
उसे सदा ललचाती ,औरों की स्त्रियां
उसके लालच की पराकाष्टा ,
तब स्पष्ट नज़र आती है
जब वह मन्दिर में जा ,
देवताओं को पूजता है
वहाँ पर भी ,पराई स्त्री का ,
लालच ही उसे सूझता है
गणेशजी को मोदक चढ़ा ,
उनके गले में फूल की माला टांगता है
और बदले में उनसे उनकी पत्नी,
रिद्धि और सिद्धि माँगता है
भगवान विष्णु के आराधन में ,
विष्णु सहस्त्रनाम सुमरता है
और उनसे उनकी पत्नी ,
लक्ष्मी जी की याचना करता है
करता है शिवजी की भक्ति
और मांगता हूँ उनसे उनकी शक्ति
आपको कैसा लगेगा ,
सच सच बतलाइये आप
आपके सामने ही कोई आपकी ,
पत्नी या प्रेमिका का करे जाप
पर ये बेझिझक ,कृष्ण के सामने ही ,
कृष्ण के मन्दिर में जपता  है 'राधे राधे'
किसी और की पत्नी की चाहत ,
कोई अच्छी बात नहीं है ,
ये कोई उसको समझा दे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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