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बुधवार, 25 मई 2016

प्रेमपथ

         प्रेमपथ

 कितने ही बड़े से बड़े साहब की घरवाली 
कितनी ही आधुनिक हो,सजीधजी, निराली
हर सुबह और शाम,
हाथ में बेलन थाम
अपने  रसोई घर में ,
करती मिलेगी काम
क्योंकि 'किचन' का ,
सुखी वैवाहिक जीवन से बड़ा नाता है 
पति के दिल का रास्ता ,
पेट से,'व्हाया 'किचन 'जाता है

घोटू

रविवार, 22 मई 2016

थोथा चना -बाजे घना

           थोथा चना -बाजे घना

बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
        जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
बधें है ,दकियानूसी   पुराने  विचारों से ,
       अभी तक ,कैद से उनकी ,निकल  नहीं पाये
बिल्ली जो काटती रस्ता है तो ये रुक जाते ,
        राहुकालम में ,कोई  काम ,ये नहीं करते
छींक दे कोई तो इनके कदम सहम जाते ,
        कोई भी अपशकुन से आज भी बहुत डरते 
जिस  दिशा में हो दिशाशूल ,नहीं जाते है,
        मुताबिक़ वक़्त के बिलकुल भी नहीं ढल पाये 
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
             जरा  भी  खुद  को  मगर  ये  बदल  नहीं  पाये
सोम को दूध चढ़ाते है शिव की मूरत पर,
                         शनि को तैल चढ़ाते है शनि देवा पर
श्राद्ध में पंडितों को प्रेम से खिलाते है ,
                          बूढ़े माँ बाप की  करते नहीं  सेवा पर
  आदमी चलते चलते चाँद तलक पहुँच गया ,
                        ग्रहों के चक्र से पर ये नहीं निकल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
                      जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
छू लिया ,बेटियों ने आसमां सफलता का ,
                          बेटे और बेटी में ये अब भी मानते अंतर
दिखाने के लिए बाहर है कुरता खादी  का,
                        पहन के रख्खा है बनियान विदेशी   अंदर
ऐसे उलझे हुए है ,रूढ़ियों ,रिवाजों में ,
                     दो कदम भी समय के संग नहीं चल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
                        जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                   

डूबता जहाज-भागते चूहे

   डूबता जहाज-भागते चूहे

बहुत हो गया ,अब ना करनी चमचेबाजी
ये लो अपनी 'लकुटी कामरी 'अब अम्मा जी
झूंठी निष्ठां दिखा ,कब तलक तुम्हे साथ दें
एक एक कर निकल रहे सब राज्य हाथ से
और तुम हो कि सिरफ फायदा  अपना देखो
बेटेजी के  राजतिलक  का   सपना  देखो
न तो तुम्हारा बेटा कुरसी पर बैठेगा
ये लगता है ,ना वो घोड़ी कभी चढ़ेगा
स्वामिभक्त हम,इसीलिये कुछ नहीं बोलते
कब तक  ,उसके  आगे पीछे ,रहें डोलते
ना तो उसमे दम है और ना काबलियत है
इसीलिये ,हर जगह हो रही ये फजीयत है
अब ना हमसे ,होती है ,ये स्वामिभक्ति
उसके पीछे  चलें ,हाथ में लेकर तख्ती
तेरा लल्ला,झल्ला है ,क्या पकडे पल्ला
बैंकॉक को भाग जाएगा ,ये  ऐकल्ला
और यहाँ हम ,बैठे क्या पीटेंगे  ताली
नित्य उजागर होगी  जब करतूतें काली
अब तक आशा थी ,कि शायद बदल जाए दिन
 देख हवा का रुख ये लगता,अब नामुमकिन
कोई किरण आशा की नज़र नहीं अब आती
 कुछ न मिलेगा , ना मंत्री पद,न ही बाराती
हम लेंगे दल बदल ,कहीं बिठला कर गोटी
मिल ही जायेगी,कोई कुर्सी ,छोटी मोटी
कब तक करते रहें तुम्हारी हाँ में हांजी
ये लो अपनी 'लकुटी कामरी 'अब अम्माजी
बहुत हो गयी ,अब ना होती चमचेबाजी

घोटू
,

शुक्रवार, 20 मई 2016

डायबिटीज

डायबिटीज

तुम्हारी वो प्यारी प्यारी मधुर मुस्कान
मीठी मीठी रस भरी बातें
तुम्हारे सुन्दर रूप का  माधुर्य,
और 'हनीमून' पर'हनी '
याने शहद बरसाती रातें
तुम्हारे रसीले मधुर मधुर अधर
और  मीठी मीठी पप्पियाँ
जिनने मेरे    ,
इतना सारा मिठास है भर दिया
मेरे रक्त की एक एक बूँद को ,
तुम्हारे प्यार की मिठास ,
इतना भिगो गई है
 कि डॉक्टर कहते है ,
मुझे' डायबिटीज 'हो गयी है   

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'    


अब रौब जमाना शुरू किया

    अब रौब जमाना शुरू किया

मैंने तारीफ़ की बढ़ चढ़ कर
मेरी कवितायें पढ़ पढ़ कर ,
मेरी पत्नी ने मुझ पर ही ,
            अब रौब जमाना शुरू किया
पहले जो कुछ ना कहती थी
बस  सेवा करती    रहती थी
उसने अब अपनी ऊँगली पर ,
              है मुझे  नचाना शुरू किया
लिख लिख कविता पत्नीवादी
हो   गई   मेरी  ही   बरबादी
मेरी बिल्ली थी ,मुझसे ही,
              अब म्याऊं म्याऊं कहती है
वो कभी डाटती है डट कर
और रौब गाँठती है मुझ पर ,
मइके  जाने की धमकी दे ,
                वो मुझे डराती रहती है
थी सीधी सादी  एक  गऊ
पर अब पीने लग गयी लहू ,
दिन भर की खीज और गुस्सा ,
         सब कुछ उतारती है मुझ पर
जो डाला अगर नहीं चारा
और नहीं प्यार से पुचकारा
तो देती नहीं दूध बिलकुल,
        और सींग मारती है मुझ पर
कुछ भूल हुई ऐसी भारी
निज पैरों मारी  कुल्हाड़ी
करवाई खुद  ऐसी तैसी ,
             हो गए बहुत ही परेशान
हम ऐसे जले दूध के है
अब पीते छाछ फूंक के है ,
कितनी ही ठोकर खायी है ,
        तब आया थोड़ा ,बहुत ज्ञान    
फरमाइश बढ़ती रोज रोज
वो मुझसे लड़ती  रोज रोज ,
उनकी इस हरकत ने मुझको,
       अब रोज खिजाना शुरू किया
मैंने तारीफ़ की बढ़ बढ़ कर
मेरी कविताएं पढ़ पढ़ कर ,
मेरी पत्नी ने मुझ पर ही  ,
       अब रौब जमाना शुरू किया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  
             

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