एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 17 अप्रैल 2016

जीवन का स्वाद

जीवन का स्वाद

ना करी छेड़खानी कोई
ना हरकत तूफानी कोई
ना अपनी कुछ मनमानी की
और ना कोई नादानी की
ना इधर उधर ताका,झाँका
ना भिड़ा ,कहीं कोई टाँका
ना करी शरारत कोई से
ना करी मोहब्ब्त कोई से
कोई  पीछे ना भागे  तुम
सचमुच ही रहे अभागे तुम
तुममे उन्माद नहीं आया
जीवन का स्वाद नहीं आया
बस रहे यूं ही फीके फीके
दुनियादारी कुछ ना सीखे
तुमने है जीवन व्यर्थ जिया
बस अपना ही नुक्सान किया
तुमने निज काट दिया यौवन
बस रहे किताबी कीड़े बन
क्योंकि वो ही थी एक उमर
 'एन्जॉय'जिसे करते जी भर
पर तुमने व्यर्थ गंवा डाली
और पैरों में बेड़ी डाली
शादी करके परतंत्र हुए
पत्नीजी से आक्रांत हुए
जिंदगी अब यूं ही बितानी है
अब करना सदा गुलामी है
तिल तिल कर यूं ही घिसना है
दिन रात कामकर पिसना है
जो उमर थी मौज बहारों की
उच्श्रृंखलता की,यारों की
वैसे ही बीत जायेगी अब
चिड़िया चुग खेत जायेगी सब
क्या होगा अब पछताने से
बीते दिन ,लौट न आने के
जीवन का अब यूं कटे सफर
चूं चरर मरर ,चूं चरर मरर  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उनकी ख़ुशी-मेरा सुख

  उनकी ख़ुशी-मेरा सुख

कई बार ,
अपनी पत्नी के साथ ,
जब मै ,ताश खेलता हूँ ,
या कोई शर्त लगाता हूँ
तो जीती हुई बाजी भी,
जानबूझ कर हार जाता हूँ
क्योंकि जीतने पर मुझे ,
वो सुख नहीं मिलता है
जो  कि  मुझे तब मिलता है ,
जब  मुझे हरा कर ,
उनका चेहरा ख़ुशी से खिलता है
कई बार ,
मै जानबूझ कर गलतियां करता हूँ ,
क्योंकि उन्हें सुधार कर ,
उनके चेहरे पर ,
जो प्रसन्नता के भाव आते है
मुझे बहुत लुभाते है
कोई काम के लिए ,
जब वह मेरे  पीछे पड़ती है,
मनुहार करती  है
तो थोड़ी देर ना ना करने के बाद ,
जब मै हामी भरता हूँ
तो उनके चेहरे पर जो आती है ,
जीत भरी मुस्कान
जी चाहता है हो जाऊं कुर्बान
कई छोटी छोटी बातों के लिए ,
भले ही सिर्फ दिखाने के लिए ,
मै जब सहायता का हाथ बढ़ाता हूँ ,
उनके चेहरे की ख़ुशी देख,
अत्यन्त सुख पाता हूँ
ये छोटी छोटी बातें ,
जीवन के आनन्द को,
 चौगुना कर  देती है
रोजमर्रा की जिंदगी को,
खुशियों से भर देती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


बुधवार, 13 अप्रैल 2016

कोई मेरी बीबी से सीखे

कोई मेरी बीबी से सीखे

-------------------------------------

बचे साबुन को नए से चिपका कर,

दो साबुनों की खुशबुओं का मजा उठाना

टूटी हुई झाड़ू की सूखी डंडियों से

घर के फ्लावर पोट को सजाना

रात की बची हुई खिचड़ी से

सुबह स्वादिष्ट कटलेट बनाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

घर और कपड़ो की सफाई के साथ

मेरे पर्स की भी सफाई करना

मुझ जैसे शेर पति को डरा कर

खुद एक काक्रोच से डरना

रोंग नंबर के फोन काल पर भी

घंटों तक लम्बी बातचीत करना

कोई मेरी बीबी से सीखे

पुरानी साडी को काट कर

पर्दा या पेटीकोट बनाना

सेल के चक्कर में,जरुरत से चौगुना

सामान खरीद कर के ले आना

मीठी मीठी बातें बना कर के

मेरी पॉकेट को ढीली करवाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

टीवी पर सीरियल के साथ साथ

क्रिकेट की कमेंट्री सुनना

पुराने स्वेटर को उधेड़ कर

नए डिजाईन में बुनना

मेरे पड़ोसिन की तारीफ करने पर

इर्षा से जलना ,भुनना

कोई मेरी बीबी से सीखे

रात को दूध का गिलास पिला कर

मेरी भूख को बढ़ाना

ठंडी ठंडी सी साँसे भर कर

मेरे दिल को जलाना

व्रत और पूजा आराधन करके

मेरे जैसा पति पाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

घोटूजी के भी अच्छे दिन आने वाले है

     घोटूजी के भी अच्छे दिन आने वाले है

कल हमसे हमारे एक दोस्त मिले
और बोले 'घोटूजी,आप दिख रहे हो कुछ पिलपिले
आपका तो टावर वन है
वो तो रेस्टोरेंट वालों का 'जंकशन'है
'सिनेमन किचन' है 
चल रहा नंबर वन है
'मिस्ट्री ऑफ़ फ़ूड' है
खाना भी 'टू गुड'है
'येलो चिलीज ' है
गजब की चीज है
सुना है'वी ,दी फूडिज 'भी आरहा है
अभी से ललचा रहा है
और खुलनेवाला 'पंजाबी तड़का'है
अभी से रहा भूख भड़का है
टावर टू वालों का 'देशी वाइब्स 'भी मजेदार है
कहते है खाना और सजावट दोनों जोरदार है
इसके बावजूद भी आपका ये हाल है
हो रही पतली दाल है
घोटू बोले यार ये सब तो बड़े बड़े नाम है
ऊंची दूकान है और मंहंगे दाम है
कोई भूले से भी 'इनवाइट ' नहीं करता है
घर की रोटी से ही पेट भरना पड़ता है
मोदीजी कहते है अच्छे दिन आएंगे
देखते है ये कब खाने पर बुलाएंगे
और अगर किस्मत ज्यादा ही जोर मारे
हो सकता है ये हमे ,
अपना 'ब्रांड अम्बेसेडर' ही बनाले

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

ढलती उमर -पत्नीजी की दो सलाहें

ढलती उमर -पत्नीजी की दो सलाहें 

साजन
सूरज जब ढलने वाला होता है ,
आशिक़ मिजाज हो जाता है
अपनी माशूकाएं बदलियों पर ,
अपनी दरियादिली दिखलाता है
किसी को सुनहरी चूनर से सजाता है
किसी को स्वर्णिम 'नेकलेस' पहनाता है
प्रियतम ,
अब तुम्हारी भी उमर ढल रही है
तुम भी ढलते सूरज की तरह ,
आशिकमिजाज बन जाओ
अपनी दरियादिली दिखलाओ
मै ,तुम्हारी बदली ,
अब तक ना बदली ,
अब तो तुम भी मुझे ,
स्वर्णखचित वस्त्रों से सजाओ
मेरे लिए एक अच्छा सा ,
सोने का 'नेकलेस 'ले आओ 

प्रियतम ,
क्यों परेशान हो रहे हो तुम
अगर तुम्हारे तन में ,
बढ़ रही है 'शुगर'
तो ये क्यों भूलजाते हो ,
कि तुम्हारी बढ़ रही है उमर
अब तुम पक रहे हो
और जिस तरह पके हुए फलों में ,
आ जाता है मिठास
उसी तरह तुम्हारे जीवन में भी ,
मधुरता आ रही है ख़ास
और तुम व्यर्थ ही हो रहे हो उदास
जीवन में भर कर उल्लास
सब में बाटों अपनी मिठास
सबसे लगा लो नेह
अपने आप भाग जाएगा आपका मधुमेह


मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-