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रविवार, 14 फ़रवरी 2016

प्यार अगर हो तो जैसे दिल-जिस्म का...


प्यार,
अगर हो तो
हो चौबीसों घंटे का
हो पूरे महीने का
हो पूरे साल का
हो जीवनभर का,
जैसे होता है
दिल और जिस्म का...
जिस्म रहता है 
हमेशा संभाले हुए दिल को
फूल की तरह,
और दिल
चलता रहता है
धड़कता रहता है
हमेशा-हमेशा
जिस्म के लिये...
रिश्ता खत्म
प्यार खत्म
तो समझो
खेल खत्म...

हैप्पी वैलेंटाइंस डे

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

पिचत्तरवें जन्मदिवस पर

   पिचत्तरवें जन्मदिवस पर

वर्ष  चौहत्तर  ऐसे  काटे
मैंने सबके सुखदुख बांटे
कुछ मित्र मिले थे अनजाने
कुछ अपने, निकले बेगाने
कोई से मन के मिले तार
कोई अपनो की पडी मार
जब थका  किसी ने दुलराया
कोई ने ढाढ़स  बंधवाया
कोई ने कर तारिफ़ जब तब
साधे अपने अपने  मतलब
कोई ने खोटी खरी  कही
मैंने हंस कर हर बात सही
कुछ रिश्तेदारी,कुछ रस्मे
कुछ झूंठे वादे ,कुछ कसमे
कुछ आलोचक तो कुछ तटस्थ
बस,यूं ही सबने रखा व्यस्त
माँ ने ममता का निर्झर बन
बरसाई आशीषें ,हर क्षण
थे प्यार लुटाते ,भाई बहन
तो दिया पिता ने अनुशासन
सहचरी ,सौम्या मिली प्रिया
जिसने हर पल पल साथ दिया
अपने में खुश सन्तान पक्ष
इच्छित सबको मिल गया लक्ष
है  आशीर्वाद साथ  माँ का
और मित्रों की शुभ आकांक्षा
ये ही मेरी संचित पूँजी
इससे बढ़ दौलत ना दूजी
जीवन गाडी, कट रहा सफ़र
चूं चरर मरर ,चूं चरर मरर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


खो दिए फिर हमने वीर

देश की शान के लिए खड़े जो,
हर मुश्किल में रहे अड़े जो,
मौत से हारे वो आखीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

मातृभूमि की लाज के लिए,
लड़ते रहे जो जीवन भर,
अमन-चैन के लिए जिये वो,
कभी नहीं उन्हे लगा था डर ।

प्रकृति से हार गए वो,
जीवन अपना वार गए वो,
चले तोड़ जीवन जंजीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

कभी हैं छल से मारे जाते,
कभी अपनो से धोखा खाते,
आतंक को धूल सदैव चटाया,
कर्तव्य को पर नहीं भुलाते ।

अश्रुपूरित हर नेत्र है आज,
देश की पूरी एक आवाज,
श्रद्धा सुमन अर्पित बलबीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

-प्रदीप कुमार साहनी

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

प्रिये क्यों

तनिक विलंब जो हुई है हमसे,
मुख मंडल यूँ क्षीण प्रिये क्यों,
अति लघु सी एक बात पे तेरे,
नैन यूँ तेज विहीन प्रिये क्यों ?

प्रेम प्रतीक्षा का सुख हमने,
भोग लिया है आज परस्पर,
जैसे तुम अधीर यहाँ थी,
मैं भी न धरा धीर निरंतर ।

मधुर मिलन की इस बेला में,
मन ऐसे मलीन प्रिये क्यों,
सुखदायक क्षण में ऐसे यूँ,
हृदय ये ऐसा दीन प्रिये क्यों ?

आलिंगन आतुर भुज दोनो,
मौन मनोरथ में हैं लागे,
अभिलाषा तेरी भी ऐसी,
क्यों न फिर आडंबर भागे ?

अधर हैं उत्सुक, करें समर्पण,
पद तेरे गतिहीन प्रिये क्यों ?
हृदय दोऊ हैं एक से आकुल,
अब भी लाज अधीन प्रिये क्यों ?

नयन भाव विनिमय को बेकल,
अधर सुस्थिर क्या है माया,
तू मुझमे निहित प्रिये है,
और मुझमे तेरी ही छाया ।

श्वास मध्य न भिन्न पवन हो,
प्रेम में न हो लीन प्रिये क्यों,
अंतर्मन भी एक हो चले,
खो न हो तल्लीन प्रिये क्यों ?

-प्रदीप कुमार साहनी

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

वीर लड़ाका तुझे नमन है

(6 दिन बर्फ के नीचे दबे होने के बाद भी मृत्यु को मात देने वाले वीर हनुमान थाप्पा और तमाम सिपाहियों को समर्पित रचना । साथ ही उनकी सकुशलता की कामना भी ।)

हे वीर लड़ाका तुझे नमन है,
लाल भारती तुझे नमन है ।

हर मुश्किल से लड़ लेते हो,
शौर्य सहित सब सह लेते हो ।
दुश्मन को हुँकार दिखाते,
कैसी भी दशा में रह लेते हो ।

युद्ध स्थल ही तेरा चमन है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।

दुश्मन से हो देश बचाना,
या बाढ़ से हमे बचाना,
प्राकृतिक विपदा हो कोई,
तुझको बस आता है बचाना ।

तुझसे ही फैला ये अमन है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।


है आतंक से लोहा लेते,
सीमा पर भी सुरक्षा देते,
बर्फीले धरती पर भी तो,
भारत माँ की लाज बचाते ।

वतन परस्ती तेरा लगन है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।

अपना सुख तुझे याद कहाँ है,
जोखिम से भरा तेरा जहाँ है,
भारत को परिवार बनाया,
परिजन को भी त्यागा यहाँ है ।

न्योच्छावर तूने किया जनम है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

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