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सोमवार, 26 अक्टूबर 2015

सर की शान-सपाट मैदान

      सर की शान-सपाट मैदान
 
काले काले घुंघराले बाल ,
जो हुआ करते थे कभी जिस सर की शान
वहां है आज एक सपाट मैदान
बढ़ती हुई उमर के साथ
अक्सर कई लोगों में होती है ये बात
सर होने लगता है सपाट 
याने क़ि हम दिखने लगते है खल्वाट
बचपन से कमाई हुई ,सर के बालों की दौलत ,
होने जब लगती है गायब
परेशान हो जाते  है सब
आदमी बेचारा रोता है
क्या आपने कभी सोचा है ,
ऐसा मर्दों के साथ ही क्यों होता है ?
क्या औरतों को कभी मर्दों की तरह ,
इस तरह टकले होते हुए देखा है
या मर्दों ने ही ले रखा इसका ठेका है
टकले होने के बतलाये जाते कई कारण है
संस्कृत में एक उक्ती है,
खल्वाट क्वचित ही होते निर्धन है
याने कि अधिकतर टकले होते है धनवान
लक्ष्मीजी उन पर होती है मेहरबान
दूसरा कारण ये कि कुछ समझदार मर्द,
दिमाग पर जोर डाल कर,ज्यादा सोचते है
और जब बात समझ में नहीं आती ,
तो खीज कर अपना सर नोचते है
हो सकता है इनमे से कोई बात ,
उनके सर के बाल उड़ाती है
पर मेरी समझ में तो तीसरी ही वजह आती है
आदमी शादी के बाद,
बीबी का गुलाम हो जाता है 
उसकी हर बात मानता है ,
उसके आगे सर नमाता है
और उसके आगे ,सर टेकते टेकते ,
हो जाता है उसका बुरा हाल
और उड़ने लगते है उसके सर के आगे के बाल
दफ्तर में भी ,वो बॉस के आगे सर रगड़ता है
तब ही तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता है
इसलिए धीरे धीरे ,सर के आगे का,
बीच का मैदान ,सपाट हो जाता है
सड़क की दोनों तरफ ,वृक्षों की तरह,
कुछ ही बाल उगे रहते है,
और आदमी खल्वाट हो जाता है
कुछ पुरुषार्थी लोगों के,
आगे के बाल तो ठीक रहते है ,
पर पीछे की चाँद निकल आती है
ये उनकी पत्नी के भाई के प्रति,
उनका प्रेम दिखलाती है
चाँद को बच्चे मामा कहते है ,
याने वो बीबी का भाई ,आपका साला है
उसके कारण ही ये गड़बड़ घोटाला है
आपको साले की सेवा करनी पड़ती है,
उसे आप सर पर बैठाते है
इसीलिए सर पर चाँद धरे नज़र आते है
और जिनके जीवन में बहुत सारे घपले होते है
अक्सर वो पूरे के पूरे टकले होते है
कुछ भी हो ,चमकती हुई टाँट के अपने ठाठ है ,
उससे व्यक्तित्व निराला होता है
अनुभवों की पाठशाला होता है
चेहरे पर गंभीरता ,ओढ़ी हुई नज़र आती है
पर जब लड़कियां ,उन्हें अंकल कहती है,
तो दिल पर सैकड़ों छुरियाँ चल जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

पटाया माँ को कैसे था

             पटाया माँ को कैसे था

थे छोटे हम ,पिताजी से ,डरा करते थे तब इतना ,
         कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था
और ये आज के बच्चे, हुए 'मॉडर्न' है  इतने ,
         पिता से पूछते है ,'मम्मी' को ,कैसे पटाया  था
न 'इंटरनेट'होता था,न ही 'व्हाट्सऐप'होता था,
         तो फिर मम्मी से तुम कैसे,कभी थे 'चेट' कर पाते
 सुना है उस जमाने में,शादी से पहले मिलने पर,
           बड़ा प्रतिबन्ध होता था,आप क्या 'डेट'पर जाते 
बड़े 'हेण्डसम 'अब भी हो,जवानी में लड़कियों पर,
           बड़ा ढाते सितम होगे,उस समय जब कंवारे थे
'फ्रेंकली'बात ये सच्ची ,बताना हमको डैडी जी ,
            माँ ने लाइन मारी थी ,या तुम लाइन मारे थे
 कहा डैडी ने ये हंस कर ,थे सीधे और पढ़ाकू हम,       
      कहाँ हमको थी ये फुरसत ,किसी लड़की को हम देखें
तुम्हारी माँ थी सीधी पर ,तुम्हारे 'नाना' चालू थे ,
              पटाया उनने 'दादा' को,'डोवरी 'मोटी  सी देके

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
                                    
         

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी: शर्मा जी ने जब अपने बेटे राजेश से अपने खर्चे के सिए कुछ पैसे मांगे, तो राजेश नाक-भौं सिकोड़ने हुए बोला, “ पिताजी आपका क्या हैं ? आप तो ...

ऐसा क्यूँ होता है ?

        ऐसा क्यूँ होता है ?

मिलन के रात हो ,नींद नहीं आती है
पिया जब साथ हो,,नींद नहीं  आती है
खुशी की बात हो,नींद  नहीं   आती है
दुःख ,अवसाद हो ,नींद नहीं   आती है
पेट जब भूखा हो, नींद नहीं आती है
अधिक लिया खा हो,नींद नहीं आती है
हाल ,बदहाल  हो,नींद नहीं आती है
जमा खूब माल हो,नींद नहीं  आती है
आप परेशान हो,नींद नहीं आती है
सर्दी या जुकाम हो,नींद नहीं आती है 
बहुत अधिक गर्मी हो,नींद नहीं आती है
बहुत अधिक सर्दी हो ,नींद नहीं आती है
यदि निर्मल काया है,जी भर के सोता है
घर में ना माया है ,जी भर के सोता है
मेहनतकश थक जाता ,जी भी के सोता है
जब घोडा बिक जाता ,जी भर के सोता है
निपट जाती जब शादी,जी भर के सोता है
बिदा बेटी हो जाती ,जी भर के सोता  है
चिंता ना करता है,जी भर के  सोता है
या फिर जब मरता है,जी भर के सोता है
कई बार सोच सोच,'घोटू ' ना सोता है
 नींद नहीं आती है,ऐसा क्यूँ   होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संगत का असर

          संगत का असर

एक कथा ,आपने सुनी हो या ना सुनी,
फिर से सुनाता हूँ
संगत का असर कैसा होता है,
बतलाता हूँ
समुद्र मंथन के बाद जब अमृत निकला
उसे पाने को,
देवता और दानव में,आरम्भ हो गया झगड़ा
तब भगवान विष्णु ने ,मोहिनी रूप धार ,
अमृत बांटने का कार्य किया
तो एक असुर ने ,देवता की पंक्ती में घुस,
थोड़ा अमृत चख लिया
विष्णु जी को पता लगा तो,
सुदर्शन चक्र से काट दिया उसका सर
तब उसके गले में अटकी ,
अमृत की कुछ बूँदें ,गिर गई थी धरती पर
और जहां वो बूंदे गिरी थी,
वहां पर दो पौधे थे उग आये
जो बाद में लहसुन और प्याज कहलाये
दोनों में ही ,अमृत के गुण पाये जाते है,
और सबके लिए फायदेमंद है
पर क्योंकि ,राक्षस के साथ ,
 उनका सम्पर्क हो गया था ,
इसलिए आती उनमे दुर्गन्ध है
सम्पर्क का असर ,आदमी में,
गुण या अवगुण भर देता है,
अपना असर दिखलाता है
भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आकर ,
डाकू अंगुलिमाल भी ,साधू बन जाता है
और 'रॉल्सरॉयल'भी ,
जब कीचड़ से गुजरती है
तो उसके पहियों में भी गंदगी लगती है
मिट्टीके ढेले पर भी ,जब गुलाब गिरता है ,
उसमे गुलाब की खुशबू आ जाती है
सज्जन की संगत ,
हमेशा आपको अच्छा बनाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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