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गुरुवार, 3 सितंबर 2015

बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति

      बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति

महाकवि बिहारी जी का एक दोहा है -
"कहलाते एकत बसत ,अही,मयूर,मृग,बाघ
  जगत तपोवन सो कियो,दीरघ,दाघ ,निदाघ "
(भावार्थ-भीषण गर्मी के कारण,एक दू सरे के दुश्मन
सर्प और मयूर या मृग और बाघ ,एक वृक्ष की छाँव
में ,साथ साथ बैठ ,गर्मी से बचने की कोशिश कर रहे है
गर्मी ने जगत को तपोवन की तरह बना दिया है )
आज बिहार की राजनैतिक स्तिथि भी ठीक वैसी ही है
और इसी से प्रेरित हो चार नए दोहे प्रस्तुत है    
                                १
  इक दूजे को गालियां ,देते थे जो रोज
इस चुनाव ने बदल दी ,उनकी सारी सोच
                            २
मोदी  तेरे  तेज से ,सभी  हुए  भयभीत
आपस में मिलते गले ,दिखा रहे है प्रीत
                           ३
लोकसभा की हार की ,अब तक मन में टीस
साथ आगये  सोनिया ,लालू  और  नितीश
                        ४
बाहर दिखता  मेल है, पर  है मन में मैल
देखो क्या क्या कराता ,राजनीति का खेल      
   
और अंत में फिर बिहारी जी का एक दोहा -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु,नहीं विकास इहि काल
अली  कली  से ही  बंध्यो,  आगे  कौन   हवाल "
इस दोहे को समयानुसार थोड़ा परिवर्तित कर दिया है -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु ,नहीं विकास इहि काल
 लालू   बंध्यो   नितीश  से , आगे  कौन   हवाल "

शुभम भवतु
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                        
 

      
                 
                   

सोमवार, 31 अगस्त 2015

जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ

        जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ
मैं चापलूस हूँ
मेरा जिससे मतलब होता है ,
या जिससे मैं डरता हूँ
मैं उनकी चापलूसी करता हूँ
उसे खूब मख्खन लगाता हूँ
चने के झाड़ पर चढ़ाता हूँ
हर इंसान में ,तारीफ़ करवाने की ,
एक भूख होती है ,मैं उसे शांत करता हूँ
अपना मतलब निकालता हूँ,
और तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता हूँ
आप क्या सोचते है ,
ये जो होते  पोस्टिंग और प्रमोशन है 
क्या सब काबलियत के कारण है
इसमें कुछ का आधार तो आरक्षण है
और बाकी की वजह ,
चापलूसी और मख्खन है
भगवान ने आदमी को जो दी ये जुबान है
ये सोने की खदान है
जब ये सही दिशा में चलती  है
सोना उगलती है
चापलूसी ,इस जुबान का सही जगह,
सही तरीके से इस्तेमाल है
 ये दिखलाती कमाल है
आपके दोनों हाथों में लड्डू दे  ,
 पॉकेट में भर देती माल है
चापलूसी करने में आपका क्या जाता है
किसी की तारीफ़ में कुछ बोल दो,
जो उसे सुहाता है
न हींग लगती न फिटकड़ी ,
फिर भी रंग चोखा आता है
इसलिये जम कर मख्खन लगाता हूँ
और इसमें बिलकुल नहीं कंजूस हूँ
जी हाँ,मैं चापलूस हूँ
ये चापलूसी बड़े कामकी चीज होती है
जीवन में खुशियों के मोती पिरोती है
किसी लड़की को पटाना है
रूठी  बीबी को मनाना है
तो चापलूसी ही काम आएगी
अपनी बीबी की तारीफ़ कर दीजिये ,
वो आप पर निछावर हो जाएगी
जब अपनी मनोकामना की पूर्ती के लिए,
किसी की तारीफ़ का पुल बांधा जाता है
तो उसका दिल जीतने का प्रयास ,
चापलूसी कहलाता है
हम मंदिर जा ,भगवान की स्तुति करते है ,
शीश नमाते है ,करते यशोगान है
ये अपने मनोरथ की पूर्ती के लिए ,
भगवान की चापलूसी करने के समान है
हर इंसान ,प्रभु को प्रसन्न करने के लिए ,
भगवान की प्रशस्ती करता है
हर पति,वक़्त बेवक़्त,अपने मतलब के लिए ,
अपनी बीबी की चापलूसी करता है
जिंदगी की हक़ीक़त यही है,
जो मन ही मन हम करते महसूस है
कि हम सब के सब ही चापलूस है
कोई हमें चमचा कहे तो कहे ,
ठीक है,हम चमचे है
पर इसी की बदौलत कर रहे मजे है
कोई हमें मख्खनबाज कहे तो कहे ,
हाँ,हम मख्खनबाज है
हमारा यही तो अंदाज है 
 जिसकी बदौलत ,आज कर रहे राज है 
अपना काम बनाने के लिए सिर्फ ,
अपनी जुबान का इस्तेमाल करता हूँ,
औरों की तरह ,नहीं देता घूस हूँ
जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 30 अगस्त 2015

रंग-ए-जिंदगानी: राख़ी याद आती हैं

रंग-ए-जिंदगानी: राख़ी याद आती हैं: सावन आया सजनें लगें मेले, तो राख़ी याद आती हैं। बहना हैं ससुराल में, सुने हुए झुले, तो राख़ी याद आती हैं। कल तक थी माँ-बाप की छा...

हाँ,मैं जोरू का गुलाम हूँ

       हाँ,मैं जोरू का गुलाम हूँ

मैं बड़े गर्व से कहता हूँ
 कि मैं जोरू का गुलाम हूँ
क्योंकि  मैं एक आदमी आम  हूँ
और हर आम आदमी ,घर चलाने के लिए ,
दिनरात खटता है,काम करता है
दफ्तर में बॉस से ,
और घर में बीबी से डरता है
और ये डरना जरूरी है
या यूं कह दो ,मजबूरी है
क्योंकि घर में अगर शांति रखनी है
प्यार की रसीली जलेबियाँ चखनी है
मनपसंद खाने से पेट भरना है
तो आवश्यक बीबी से डरना है
इससे घर में शांति व्याप्त होती है
और सारी टेंशन समाप्त होती है
पत्नी का प्यार और सहानुभूति मिलती है
एक सुखद अनुभूति मिलती है
बीबी से डरना ,समझदारी की निशानी है
क्योंकि जीवन में यूं ही सेंक्डों परेशानी है
बीबी से पंगा लेकर ,
एक परेशानी और मोल लो
याने कि घर में ही ,
कुरुक्षेत्र का एक मोर्चा खोल लो
भैया ,इससे तो अच्छा है ,
बीबीजी सी थोड़ा सा डर लें   
और जीवन को खुशियों से भर लें
कई अफसर जो दफ्तर में शेर नजर आते है
बीबी के आगे ,भीगी बिल्ली बन जाते है
कोई कितना ही फांके की वो घर का बॉस है
पर वो असल में बीबी का दास है
घर की सुख और शांति ,
बीबी के आगे पीछे डोलती है
हर घर में बीबी की तूती बोलती है
भैया ,हर घर में मिटटी के चूल्हे है ,
अपने अपने हमाम में सब नंगे है
अक्लमंद लोग ,बीबी से नहीं लेते पंगे है
इसी में समझदारी है,यही डिप्लोमेसी है
वरना हो जाती ,ऐसी की तैसी है
जो लोग पत्नी को प्रताड़ते है
अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारते है
इसलिए मैं ये एलान करता खुले आम हूँ
मैं  अपनी बीबी के इशारों पर ,
नाचता सुबह शाम हूँ
मैं गर्व से कहता हूँ,
मैं जोरू का गुलाम हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नारी

                   नारी

कभी मोहिनी रूप धरे मोहित करती है ,
        कभी रिझाया करती है वो ,बन कर रम्भा
कभी परोसा करती है पकवान सुहाने ,
         अन्नपूर्णा देवी सी बन  कर  जगदम्बा
बन कर कभी बयार बसंती ,मन हर्षाती ,
        कभी आग बरसाती बन कर लू का झोंका
कभी बरसती जैसे रिमझिम रिमझिम बारिश ,
        कभी उग्र हो, रूप बनाती  ,तूफानों  का    
ममतामयी कभी माँ बन कर स्नेह लुटाती,
         कभी बहन बन ,बाँधा करती ,रक्षाबंधन
कभी बहू बन,करती सास ससुर की सेवा ,
      जिस घर जाती ,वो आँगन,बन जाता उपवन
मात पिता का ख्याल रखे बेटों से ज्यादा ,
           करती सेवा ,बेटी लगती  सबको प्यारी
नर क्या,जिसे देवता तक भी समझ न पाते,
           प्रभु की इतनी अद्भुत रचना होती नारी   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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