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बुधवार, 26 अगस्त 2015

नर,नारी और बारह राशि

       नर,नारी और बारह राशि

नारी,
स्वयं 'कन्या'राशि होती है ,
'मीन' की तरह सुन्दर और चंचल नयन
 तिरछी भौंहो के 'धनु'से ,
नज़रों के तीर छोड़ती हुई  हरदम 
द्वय 'कुम्भ'से,
शोभित किये हुए अपना गात
'वृश्चिक'की तरह ,जब डंक मारती है ,
तो मुश्किल हो जाते है हालात
नर,
'वृषभ' सा  मुश्तंड ,
'सिंह' सा दहाड़ता हुआ
और 'मेष'की तरह ,
अपने सींग मारता हुआ
कभी 'मकर'की तरह ,
अपने जबड़ों में जकड़ता है
तो कभी 'कर्क'की तरह ,
पकड़ता है
नर और नारी,
'तुला'की तरह जब,
दोनों पलड़ों का होता है संतुलन 
तब ही  दोनों का 'मिथुन'की तरह
होता है मिलन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

विरह पाती -तुम बिन

             विरह पाती -तुम बिन

डबलबेड की जिस साइड पर ,तुम अक्सर सोया करती थी ,
जब से मइके गयी ,पड़ा है, तब से ही वो कोना  सूना
गलती से करवट लेकर के ,उधर लुढ़क जो मैं जाता हूँ,
मेरी नींद उचट जाती है ,लगता जीवन बड़ा अलूना
उस बिस्तर में,उस तकिये में ,बसी हुई तुम्हारी खुशबू ,
अब भी मुझे बुलाती लगती ,यह कह कर के ,इधर न आना
तुम बिन  मन बिलकुल ना लगता ,कैसे अपना वक़्त गुजारूं,
ना चूड़ी की खनक और ना पायल का  संगीत  सुहाना
इतनी ज्यादा आदत मुझको ,पडी तुम्हारी संगत की थी
कि तुम्हारे खर्राटे भी ,लोरी जैसे स्वर लगते थे
मेरी नींद उचट जाती तो ,तुमको हिला जगाता था मैं ,
तुम मुझ पर बिगड़ा करती थी ,फिर दोनों संग संग जगते थे
तुम चाहे मम्मी पापा संग ,दिन भर मौज उड़ाती होगी ,
किन्तु रात को कभी कभी तो ,होगी मेरी याद सताती
उठते विरह वेदना के स्वर ,करते मेरा  जीना दूभर ,
बहुत दिन हुए ,अब आ जाओ, मुझे रात भर नींद न आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

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झगड़ा धूल ये मत भूल, धूल से गंदे नहीं होते फूल...


मैं मोनू - तू सोनू
मैं और तू हैं
पक्के दोस्त,
अपना हो गया झगड़ा
वो भी एकदम तगड़ा,
तूने मुझे धकेला
मैं कैसे गिरता अकेला,
मैंने फेका कीचड़
तूने बोला फटीचर,
तूने मारा घूंसा
मैंने मारा ठूंसा,
तो अब तू
क्यों है गुस्सा,
गुस्सा थूक
अब मत चूक,
मुझको लग गई
जोर की भूख,
मेरे यार
तू होशियार,
ले के आ जा
पराठे चार,
मिल के खायेंगे
उधम मचायेंगे,
जलनेवाले
जल-जल जायेंगे,
झगड़ा धूल
ये मत भूल,
धूल से गंदे
नहीं होते फूल...

- विशाल चर्चित

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