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मंगलवार, 8 जुलाई 2014

इनफ्लेशन और अवमूल्यन

    इनफ्लेशन और अवमूल्यन

हमें याद आते हैं वो दिन ,जब अपना सिक्का था चलता
थोड़ी सी ही इनकम थी पर ,परिवार सारा  था   पलता
कदर हमारी भी होती थी,हममें  था परचेजिंग पॉवर
घर का राशन फल और सब्जी,सब आते थे,थैला भर कर
साथ उमर के बड़े हुए हम ,बढ़ा चौगुनी गति, इनफ्लेशन
गयी हमारी कीमत घटती ,नहीं रहा हममें बिलकुल दम 
बच्चों की दौलत होती थी,कभी चवन्नी और अठन्नी
अब तो इनका चलन बंद है,लोग काटते ,इनसे कन्नी
जैसे इनकी कदर घाट गयी ,पूछ हमारी भी ना  वैसे
हम हज़ार के नोट बने ना,रहे  वही ,वैसे के  वैसे
इनफ्लेशन की तरह बुढ़ापा ,घटा दिया करता है कीमत
जैसे उसकी सेहत गिरती , घट जाती है ,उसकी  इज्जत 
अपना,इतना ये अवमूल्यन,हमको बहुत अधिक है खलता
हमें याद आते है वो दिन ,जब अपना था सिक्का चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दौलत -महोब्बत की

             दौलत -महोब्बत की

बड़ा ही नाज़ दिखलाते ,
हुस्न पर अपने इतराते,
 हवा में उड़ते रहते है,
             जवानी जिस पे चढ़ती है
समय के साथ दुनिया की ,
हक़ीक़त सामने आती ,
ये गाडी जिंदगानी की,
           बड़ी रुक रुक के बढ़ती है
दौलते जिस्म हो चाहे,
दौलते  हुस्न हो चाहे ,
ये दोनों दौलतें ऐसी ,
         समय के साथ ढलती है
मगर  दौलत महोब्बत की,
 इश्क़ की और चाहत की ,
  ये दौलत  दोस्ती की है,
           दिनों  दिन दूनी बढ़ती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खुशबू

                         खुशबू

चाहे कितना भी मंहगा हो ,एक पत्थर का टुकड़ा है ,
         मगर सुहाती है सबको ही  ,जगमग एक नगीने की
जब खिलता है पुष्प ,हमेशा, बगिया को महकाता है ,
        उसकी खुशबू सबको भाती ,आग बुझाती  सीने की
मगर हसीनों में सुंदरता और महक दोनों होते,
        अंग अंग फूलों सा नाजुक,मुख पर चमक नगीने की
लेकिन माशूक जब मस्ती मे ,अपना तन महकाती है,
        भड़काती है आग जिस्म की,खुशबू मस्त पसीने की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

क्यों हर बार छला जाता है

          क्यों हर बार छला जाता है

नेताओं के झूंठे झूंठे ,वादों पर फिसला जाता है
मंहगाई के बोझ तले वो,रोज रोज कुचला जाता है
बहुत जरूरी सुविधाएं भी,उसको होती नहीं मुहैया,
बिजली कभी चली जाती है ,पानी कभी चला जाता है
आलू प्याज हो रहे मंहगे,और चीनी में आग लगी है,
कैसे घर का पेट भरे वो ,बेचारा पगला   जाता  है
स्कूल फीस ,रेल का भाड़ा ,सब चीजों के दाम बढ़ गए ,
दुनिया भर की चिंताओं से,वो होता दुबला जाता है
एक पाट दफ्तर,एक घर का,मिडिल क्लास सा फँसा हुआ वो,
दो पाटों के बीच बिचारा,उसका दिल दहला   जाता है
मजबूरी में चुप रहता है ,मुंह से चूं तक नहीं निकलती ,
बोझ गृहस्थी का इतना है,उसका दम निकला जाता है
हे भगवान ,बता  दे ,मुझको,क्यों ये तेरा अपना बंदा ,
क्यों अक्सर तेरे ही बंदों से हर बार छला  जाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

लड़ाई और प्यार

          लड़ाई और प्यार

चम्मच से चम्मच टकराते,जब खाने की टेबल पर ,
        तो निश्चित ये बात समझ लो,खाना है स्वादिष्ट बना
नज़रों से नज़रें  टकराती,तब ही  प्यार पनपता है ,
         लडे  नयन ,तब ही  तो कोई ,राँझा कोई हीर बना 
एक दूजे को गाली देते ,नेता जब चुनाव लड़ते ,
       मतलब पड़ने पर मिल जाते ,लेते है सरकार  बना
मियां बीबी भी लड़ते है,लेकिन बाद लड़ाई के,
       होता है जब उनका मिलना,देता प्यार मज़ा दुगुना

घोटू 

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