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रविवार, 6 जुलाई 2014

ग़म ही गम

      ग़म ही गम

गमो के गाँव में आकर ,गए हम भूल मुस्काना ,
पड़ गयी मुश्किलें पीछे ,ग़मों की इतनी शिद्दत है
न कोई सूझता रस्ता,अँधेरा ही अँधेरा  है,
सुखों की साख बिगड़ी है, मुसीबत ही मुसीबत है

घोटू 

बूढ़ों में भी दिल होता है

       बूढ़ों में भी दिल होता है

होता सिर्फ जिस्म बूढा है,
जो कुछ नाकाबिल होता है
पर जज्बात भड़कते रहते,
बूढ़ों में भी दिल होता है
सबसे प्यार महब्बत करना
और हुस्न की सोहबत करना
ताक,झाँक,छुप कर निहारना
चोरी चोरी  ,नज़र   मारना
जब भी देखें , फूल सुहाना
भँवरे सा उसपर  मंडराना
सुंदरता की  खुशबू  लेना
प्यार लुटाना और दिल देना
ये सब बातें, उमर न देखे
निरखें हुस्न ,आँख को सेंकें
दिल पर अपने काबू रखना ,
उनको भी मुश्किल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
उनके दिल का मस्त कबूतर
उड़ता रहता नीचे , ऊपर 
लेता इधर उधर की खुशबू
करता रहता सदा गुटरगूं
 घरकी चिड़िया  रहती घर में
खुद उड़ते रहते अम्बर मे
चाहे रहती, ढीली  सेहत
पर रहती अनुभव की दौलत
काम बुढ़ापे में जो आती
उनकी दाल सदा  गल जाती 
दंद फंद कर के कैसे भी ,
बस पाना मंज़िल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
जब तक रहती दिल की धड़कन
तब तक रहता दीवानापन
भले बरस वो ना पाते है
लेकिन बादल तो छाते है
हुई नज़र धुंधली हो चाहे
माशूक ठीक नज़र ना आये
होता प्यार मगर अँधा है
चलता सब गोरखधंधा है
भले नहीं करते वो जाहिर
अपने फ़न में होते माहिर
कैसे किसको जाए पटाया,
ये अनुभव हासिल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऐसा भी होता है

      ऐसा भी  होता है

चाहते हैं लोग बिस्कुट कुरकुरे,
                    भले चाय में भिगो कर खाएंगे
कितनी ही सुन्दर हो पेकिंग गिफ्ट की,
                    मिलते ही रेपर उतारे  जाएंगे
पहनती गहने है सजती ,संवरती ,
                     है हरेक दुल्हन सुहाग रात को,
जबकि होता है उसे मालूम ये,
                      मिलन में,  ये सब उतारे जाएंगे

घोटू

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

Re: क्या हाल है?



On Friday, June 27, 2014, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
         क्या हाल है?

दांत, डेंटिस्ट के भरोसे
सांस,दवाइयों के भरोसे
नज़र,चश्मे के भरोसे
वक़्त,टी. वी. के भरोसे
किससे क्या करें आस,
किसी को क्यों कोसे?
अब तो हम दोनों है,
एक दूसरे के भरोसे 
बाकी ये जीवन है ,
सिर्फ भगवान के भरोसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

मेह-नेह

                मेह-नेह 
श्याम श्याम बादल का,ह्रदय चीर ,बहा मेह
सर्वप्रथम  टकराई, गरम गरम,  हवा  देह
तप्त ह्रदय के उसके,पंहुचाई  ठंडक   फिर
तपी तपी ,उड़ी उड़ी ,गयी उसे माटी मिल
माटी के  रंग रंगा, साथ  रहा  और बहा
हुआ लाल पीला वो,उसके संग ,कहाँ कहाँ  
और प्रतीक्षारत बैठी,धीर धरे,प्रिया  धरा
मिलन हुआ उसके संग,जी भर के प्यार करा
समा गया उसके मन,भर उमंग, संग संग में 
जिसका भी साथ मिला,गया रंग ,उस रंग में
प्यार मिला प्रियतम का,हुई धरा मतवाली
मिला  नेह, धरा  देह, पर  छाई   हरियाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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