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गुरुवार, 26 जून 2014

उमर के साथ साथ

     उमर के साथ साथ

कभी जब उनके कन्धों की,दुपट्टा शान होता था ,
      वो चलते थे तो लहराता ,हमें वो लगती  थी तितली
खुले बादल से जब गेसू,हवा में,उनके,उड़ते थे ,
       अदा से जब वो मुस्काते  ,चमकते दांत बन बिजली
जवानी में ये आलम था ,ठुमक कर जब वो चलते थे,
        थिरकता जिस्म मतवाला  , बना  देता  था  दीवाना
उमर ने करदी ये हालत, रही ना जुल्फ काली अब ,
         पाँव में आर्थराइटिस है,बड़ा मुश्किल है  चल  पाना
मगर एक बात है अब भी,कशिश जो पहले उन में थी,
          अभी तक वो ही कायम है,लुभाती हमको उतना ही
हमारी उनकी चाहत में,न आया कोई  भी अंतर ,
            गयी बढ़ती उमर जैसे ,बढ़ा है प्यार उतना ही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चोरी चोरी -चुपके चुपके

        चोरी चोरी -चुपके चुपके

कुछ चीजें ,आम होकर भी,
हो जाती है  बड़ी ख़ास
जब वो नहीं मिल पाती तुम्हे ,
या तुम्हे नहीं जाने दिया जाता उनके पास
जैसे आम ,
इतने सारे तमाम ,
हर तरफ नज़र आते  है खुले आम
पर क्योंकि हमारे खून में है शकर
इसलिए डाक्टर के कहने पर,
हम आम खा नहीं सकते  है
सिर्फ तरसते हुये दूर से  तकते है
 बस खुशबूवें लेते हुए ,
अपनी मजबूरी पर करते है अफ़सोस
और रह जाते है मन को मसोस
जिसे कभी काट काट कर,
कभी गिलबिला कर,
रसपान किया  करते थे जी भर
आजकल बस दूर से निहार लेते है
और ,चोरी चोरी ,चुपके चुपके,
बीबी से नज़रें बचा,
कभी कभी डंडी मार लेते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 23 जून 2014

तोहमत

        तोहमत

मेरी तारीफ़ करते ,लक्ष्मी घर की बताते हो
कमा कर दूसरी फिर लक्ष्मी तुम घर पे लाते हो
मेरी सौतन को जब मैं खर्च कर ,घर से भगाती हूँ,
मुझे खर्चीली कह कर के ,सदा तोहमत  लगाते  हो

घोटू

जरा सी रोशनी दे दो

              जरा सी रोशनी दे दो

मोहब्बत की अगर मुझको,जरासी रोशनी दे दो
        मेरे अंधियारे जीवन में ,उजाला  फैल  जाएगा
अगर जो देख लोगी तुम,ज़रा सा मुस्करा कर के,
          जलेंगे सैंकड़ों दीपक , मेरा घर जगमगाएगा
चढ़ाते लोग मंदिर में ,चढ़ावा मूर्तियों पर है ,
        मगर वो दक्षिणा के रूप में ,पंडित को मिलते है
फैलती हर तरफ है भीनी भीनी ,महकती खुशबू,
         भले ही फूल कोई और के गुलशन में खिलते है  
उधर अंगड़ाई तुम लोगी ,गिरेगी बिजलियाँ हम पर,
            बनेगी जान पर मेरी,तुम्हारा  कुछ न जाएगा
मोहब्बत की  मुझको,जरा सी रोशनी दे दो,
            मेरे  अंधियारे जीवन में ,उजाला फैल  जाएगा
गुलाबी गाल  की  रंगत ,रसीले होंठ है प्यारे,
            नशीला रूप तुम्हारा , मुझे करता दीवाना है
दिखा कर ये अदाएं छोड़ दो ,दिल को जलाना तुम,
            तुम्हे मालूम ना ये रूप कितना कातिलाना  है
निहारा मत करो तुम आईने में ,सज संवर कर यूं
             आइना सह न पायेगा ,बिचारा टूट  जाएगा
मोहब्बत की अगर मुझको ,जरासी रोशनी दे दो,
              मेरे अंधियारे जीवन में ,उजाला फ़ैल  जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

कांच के टुकड़े

        कांच के टुकड़े

काँचों से मेरी दोस्ती है पुरानी
बचपन में कांच की बोतल से दूध पिया ,
कांच के गिलास से ही पिया  था पानी
वो आइना भी कांच ही था जिसमे पहली बार,
खुद को देख कर अपनी सूरत थी पहचानी
जब उम्र बढ़ी तो इन्ही आइनों में,
अपनी भीगती मसों  को निहारा था
और मदिरा का पहला पहला जाम,
इन्ही कांच के प्यालों में ढाला  था
इन्ही आइनों को देख कर ,
मैं सजता और संवरता था
और खुद को निहार कर,
अपने आप से कितना प्यार करता था
पर जब इन आइनों ने ,
मुझे दिखाए मेरे सफ़ेद होते हुए केश
 और चेहरे की उभरती हुई झुर्रियां 
तो देखकर ये परिवेश
तो जिंदगी लगने लगी बेमायने
और हमने तोड़ दिए
सभी गिलास,बोतलें और आईने
कुछ  पुराने दोस्त ,जब जिंदगी की ,
हक़ीक़त से वाकिफ कराते है
और गुस्से में ये ,छोड़ दिए या तोड़ दिए जाते है
तो इनके हरेक टुकड़े में भी,
आपका असली रूप नज़र आने लगता है
और जिंदगी की हक़ीक़त की तरह ,
हर टुकड़ा चुभने लगता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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