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शुक्रवार, 16 मई 2014

बीते दिन


             बीते दिन

जिन गलियों में आते जाते रोज रहे ,
                     उन गलियों में गए कई दिन गुजर गये
जो सपने दिन रात आँख में बसते थे,
                       टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए
ऐसी आंधी चली , समय का रुख बदला,
                       बादल गरजे ,बिन मौसम बरसात हुई
ऐसी  ओलावृष्टि हुई अचानक ही ,
                       खड़ी फसल पकने को थी,बरबाद  हुई
फेर समय का था या किस्मत खोटी थी,
                       नीड बसे  ही ना थे,लेकिन उजड़ गए
जो सपने दिन रात आँख में बसते थे ,
                        टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए
ऐसा ना था भूल गए थे हम रस्ता ,
                       ऐसा ना था ,थी  मंज़िल की चाह नहीं
पर शायद  हिम्मत ही कम थी  पावों में ,
                       पहले जैसा था  मन में उत्साह नहीं
कभी चाँद पाने का मन में जज्बा था ,
                      पर वो जोश ,जवानी, जाने किधर गए
जो सपने दिन रात आँख में बसते  थे,     
                       टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए
हम उम्मीद लगा ये सोचा करते थे ,
                        कभी हमारे भी आएंगे  अच्छे दिन
और बुढ़ापे में  ये याद किया करते ,
                         हाय जवानी  में थे कितने अच्छे दिन
कल के चक्कर में घनचक्कर बने रहे ,
                         न  तो इधर के रहे और ना उधर गए
 जो सपने दिन रात आँख में बसते थे,
                           टूट टूट कर चूर हुए और बिखर गए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                       
                 

बुधवार, 14 मई 2014

मोदी की आंधी

                मोदी की आंधी

बड़े  गर्व  से खड़े      पेड़ सब  बड़े बड़े
ऐसी  आंधी चली कि सब के सब उखड़े
 मायावी जादूगरनी ने कील ठोक ,
                  कर रख्खा था , ओहदेदारों को बस में
जैसे भी वो नाच नचाया करती थी ,
                   कठपुतली बन ,नाच करते, बेबस से
नहीं किसी की हिम्मत थी कुछ भी बोले,
                    सब के सब मेडम से इतना  डरते थे
खुद होते बदनाम ,लाभ मेडम लेती,
                    उलटे सीधे काम सभी वो करते थे
जादूगरनी के मन में ये  इच्छा थी ,
                     उसका बेटा मालिक बने  विरासत का
लेकिन सब अरमान रहे दिल के दिल में,
                     बंटाधार होगया उनकी हसरत का
खूब सताया,जी भर लूटा जनता को,
                       लगा लगा  टैक्स बढ़ा  कर  मंहगाई
लेकिन मेडम का तिलिस्म सब टूट गया ,
                        जब जनता ने अपनी ताकत दिखलाई
      गिरी का बब्बर शेर दहाड़ा घर घर जा  
       मायाविनी के बाग़ खड़े थे,सब उजड़े
       बड़े गर्व से खड़े    पेड़ सब बड़े बड़े 
        ऐसी आंधी चली कि सबके सब उखड़े

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

एग्जिट पोल और दिल्ली का मौसम

        एग्जिट पोल और दिल्ली का मौसम
                             १
गरमी थी बड़ी तेज और मौसम खराब था
माहौल चुनावी पर  भी  पूरा  शबाब   था
बढ़ती हुई बदहाली से हर शख्स  तंग था ,
'आएंगे अच्छे दिन 'ये सभी का ख़्वाब था
                         २
जबसे नतीजा जाहिर एग्जिट पोल का हुआ
जो सत्ता में थे  उनका डब्बा  गोल  सा  हुआ
खुश लोग सारे हो गए  और  नाचने लगे ,
हर ओऱ ,बड़ा खुशनुमा , माहोल  हो  गया
                        ३
गर्मी की तपिश घट गयी ,बरसात आ गयी
राहत की सांस सबने ली,ठंडक सी छा गयी
मौसम ने बदल कर के ये सन्देश दे दिया ,
अब तो सुशासन आएगा , ये बात आ गयी
                      ४
मोदी ने अपने जादू के जलवे दिखा दिए
राहुल और सोनिया के सब सपने मिटा दिए
देखा ये नरेन्दर का करिश्मा जो इन्द्र  ने,
खुश होके उसने दिल्ली में ,बादल बिछा दिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 13 मई 2014

धुलाई


            धुलाई

हो मैल अगर हो  कपड़ों में ,पानी में उन्हें भिगोते है
और फिर घिसते साबुन से ,छपछपाते और धोते है
हो पानी  अगर अधिक  भारी,तो झाग आते है काफी कम
और उन्हें निचोड़ो जब धोकर ,कपड़ों में सल पड़ते हरदम  
मन में भी जो यदि मैल भरा ,तो धुलना बहुत जरूरी है
तो भीज प्रेम के रस में मिलना जुलना बहुत जरूरी  है
सत्कर्मो के साबुन से घिस ,मन के मलाल को तुम मसलो
जीवन  में  ठोकर मिलती ज्यों  ,खा मार धोवने की  उजलो
धुल जाता मन का मैल अगर जो मेल किसी से हो जाता
मन भीज प्रेम रस में जात्ता ,तन मन है निर्मल हो जाता
होती है वही प्रक्रियाएं ,इंसान निचुड़ सा जाता है
अनुभव के जब सल पड़ते है,वो समझदार हो जाता है
मिट जाए कलुषता ,मैल हटे ,और मन निर्मल हो जाएगा
उज्जवल  प्रकाश से आलोकित ,जीवन हर पल हो जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

चुम्बक

            चुम्बक

औरतें वजन कम करने, को करती डाइटिंग रहती ,
कमर उनकी रहे कम इसलिए वर्जिश वो करती है
अगर फिगर गया जो बढ़ ,तो घट जायेगा अट्रेक्शन ,
इसलिए मिठाई,घी ,तेल सब खाने से  डरती  है
बड़ा सीना,बड़े हो हिप्प्स ,सब छत्तीस इंची हो,
कमर चौबीस इंची कम,बड़ी कमसिन नज़र आये
छिपाया करती तन को इस तरह के पहन कर कपडे ,
बदन ज्यादा से ज्यादा खुल्ला हो ,सब को नज़र आये
अदा से चलती कुछ  ऐसे ,थिरकते अंग हो सारे ,
और फिर चाँद सा सुन्दर ,हसीं चेहरा हो मुस्काता
बदन सारा है चुम्बक सा ,है इसमें इतना 'अट्रेक्शन'
आदमी सख्त कितना भी हो,लोहे सा खिंचा  आता

घोटू  

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