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मंगलवार, 13 मई 2014

गर्मी में शीतलता

       गर्मी में शीतलता

तेज ताप  से जब सूरज के ,दग्ध ह्रदय हो जाता
होंठ सूखते,प्यास सताती ,मन विव्हल हो जाता
तेरी जुल्फों के साये की   ठंडक में जी  लेते
तेरी अमराई में आकर ,अमरस कुछ पी लेते
ग्रीष्म ऋतू में पर्वत पर जा ,शीतल होता मौसम
हमको तो तेरा पहलू ही ,लगता हिल स्टेशन 
तेरी जुल्फ घटायें  बन कर,जब हम पर छा जाती
शीतल करती रूप छटा और मन प्रमुदित  कर जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हॉट पेंट

             हॉट पेंट

घोटू सर्दी ऋतू में ,जब ठंडक बढ़ जाए
सर्दी को हम भगाते ,गरम पेंट सिलवाय
गरम पेंट सिलवाय ,आय गर्मी का मौसम
ज्यों ज्यों गर्मी बढे ,वस्त्र होते जाते कम
पहने छोटे वस्त्र ,लड़कियां  हमें लुभाती
बित्ते  भर की चड्डी ,हॉट पेंट  कहलाती

घोटू

रोज त्योंहार कर लेते

             रोज त्योंहार कर लेते

तवज्जोह जो हमारी तुम ,अगर एक बार कर लेते
तुम्हारी जिंदगी में हम ,प्यार ही प्यार   भर देते
खुदा ने तुम पे बख्शी हुस्न की दौलत खुले हाथों,
तुम्हारा  क्या बिगड़ जाता ,अगर दीदार  कर लेते
पकड़ कर ऊँगली तुम्हारी ,हम पहुंची तक पहुँच जाते ,
इजाजत पास आने की,जो तुम एक बार गर देते
तुम्हारे होठों की लाली ,चुराने की सजा में जो ,
कैद बाहों में तुम करती ,खता हर  बार कर लेते
तुम्हारे रूप के पकवान की ,लज्जत के लालच  में,
बिना रमजान के ही रोजे हम ,सौ बार कर   लेते
बिछा कर पावड़े हम पलकों के ,तुम्हारी  राहों में ,
उम्र भर तुमको पाने का ,हम इन्तेजार  कर लेते
तुम्हारे रंग में रंग कर,खेलते रोज होली हम,
जला दिये  दीवाली के ,रोज त्यौहार कर लेते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ख्वाइशों का समंदर

        ख्वाइशों का समंदर

खायेगें वो भिगोकर के चाय में,
                   कुरकुरे बिस्किट उन्हें पर चाहिये
जिनके सर पर गिनती के ही बाल है,
                    उन्हें ही कंघे अधिकतर  चाहिये
भले निकले खट्टा और रेशे भरा ,
                     दिखने में पर आम सुन्दर  चाहिये
काटे बिन तरबूज को वो चाहते,
                     मीठा भी और लाल अंदर   चाहिये
लगा देंगे करने घर का काम सब ,
                      मगर  नाजुक ,हसीं  दिलवर चाहिये
सर्दियों में चाहिए गरमी हमें,
                      गरमी में सर्दी   का मंजर   चाहिये
नेताजी के पाँव लटके कब्र में,
                       तमन्ना ,बनना  मिनिस्टर  चाहिये
कुवे तक तो बाल्टी जाती नहीं,
                        ख्वाइशों का पर  समन्दर  चाहिये

घोटू 

मिलन

              मिलन 

तेरे अधरों की मदिरा के घूँट चखे है ,
                    युगल कलश से हमने अमृतपान किया है
रेशम जैसे तेरे तन को सहला कर के,
                     शिथिल पड़ा ,अपना तन मन उत्थान किया है
ऐसा तुमने बांधा बाहों के बंधन में ,
                        बंध  कर भी मन का पंछी उन्मुक्त  हो गया,
तन मन एकाकार हो गए मिलानपर्व में,
                          ऐसा हमतुमने मिल स्वर संधान किया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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