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शनिवार, 15 मार्च 2014

होली के मूड में -दो कवितायें

    होली   के मूड  में -दो कवितायें
                        १
आयी होली ,आ लगा दूं,तेरे गालों पर गुलाल,
                       रंग गालों का गुलाबी और भी खिल जाएगा
मगर मुझ पर आहिस्ते से ही लगाना रंग तुम,
                       बढ़ी दाढ़ी ,हाथ नाज़ुक ,तुम्हारा छिल जाएगा
बात सुन ये, कहा उनने ,नज़र तिरछी डाल कर,
                       चुभाते ही रहते  दाढ़ी,तुम  हमारे   गाल  पर    
  खुरदरेपन की चुभन का ,मज़ा ही कुछ और है,
                       मर्द हो तुम ,मज़ा तुमको ये नहीं  मिल पायेगा 

                           २
अबकी होली में कुछ ऐसा ,प्यारा  हुआ प्रसंग ,सजन
यूं ही बावरे हम,ऊपर से ,हमने पी ली  भंग ,सजन
ऐसी ऐसी जगहों पर है,तुमने डाला   रंग ,  सजन
अपने रंगमे भिगो भिगो कर,खूब किया है तंग ,सजन
रंग गया ,रंग में तुम्हारे ,है मेरा हर  अंग  ,सजन
जी करता ,जीवन भर होली,खेलूँ तेरे  संग ,सजन 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 13 मार्च 2014

अगन और जीवन

       अगन और जीवन               

होली पर होली  जलती है
          लोढ़ी पर है लोढ़ी  जलती
दीवाली पर दीपक जलते ,
                   नवरात्रों में ज्योति जलती
दशहरे पर जलता रावण,
                दीपक जलते हर पूजन में
आतिशबाजियां जलती है,
                    हर उत्सव के आयोजन में
जलती है अग्नी हवनकुंड में 
                    होता है जब यज्ञ ,हवन
अग्नी के फेरे सात  लिए,
                  बंध  जाता है जीवन बंधन  
जब घर में चूल्हा जलता है,
                   तो पेट सभी का पलता  है
सब त्योहारों में जले अगन,
                   अग्नी से जीवन चलता है
है पंचतत्व में अग्नि तत्व ,
                    और अग्नी देव कहाती है
दो पत्थर के टकराने से
                  भी अग्नी प्रकट हो जाती है
है अग्निदेव पालक , पोषक ,
                       और अग्नी ही विध्वंशक है
अंधियारे में जलती बाती ,
                        तो होती राह प्रदर्शक है
कुछ एक दूसरे से जलते ,
                कुछ विरह अगन में जलते है
जीवन भर चिंता में जलते ,
                    मर,चिता अगन में जलते है
अग्नि से जीवन चलता हम ,
                     जीवन भर जलते रहते है
जो पानी आग  बुझाता है,
                      हम क्यों उसको जल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
                        

थ्रिल

              थ्रिल
सवेरे ,सवेरे ,
ताजे ताजे अखबार के ,
करारे करारे पन्ने को,
एक एक कर खोल कर ,
नयी नयी ख़बरें,
पढ़ने में जो मज़ा आता है
वो रात को टी वी पर ,
देख लो सब खबर,
तो गुम हो जाता है
जैसे शादी के पहले ,
डेटिंग ,सेटिंग करने से,
सुहागरात का थ्रिल चला जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

कूकर या कुकर

           कूकर या कुकर
                      १
पत्नी बोली पति और कूकर एक सुभाय
दोनो ही है पालतू, स्वामी भक्त  कहलाय 
स्वामिभक्त कहलाय ,सिर्फ इतना है अंतर
कुत्ता   भोंके रात,हिलाये पूंछ दिवस भर
'घोटू 'पर पति दिन भर भौंके ,रॉब दिखाता
और रात को पत्नी आगे  पूंछ  हिलाता
                       २
हम बोले पति श्वान ना ,होता घर की शान
घर की रखवाली करे ,रखता सबका ध्यान
रखता सबका ध्यान ,कुकर प्रेशर के जैसा 
जब भी बढे दबाब ,बजाता सीटी ,हमेशा
जो घंटों का काम मिनिट भर में निपटाता
वो कूकर ना ,वो तो प्रेशर कुकर कहाता
घोटू

दो छक्के

             दो छक्के
                   १
जब भी है हम देखते,चेहरा कोई हसीन 
लगता है लावण्यमय ,सुन्दर और नमकीन
सुन्दर और नमकीन,पास जा प्यार जताते
मिलता मीठा स्वाद और मीठी सी  बातें
कह घोटू कविराय समझ में ये ना आता
लज्जत भरी मिठास,हुस्न नमकीन कहाता
                           २
पत्नी हथिनी की तरह, पति तिनके से क्षीण
अब ये तुम्ही समझ लो ,किसके ,कौन अधीन
किसके कौन अधीन ,अगर पत्नी हो पतली
और मोटे पतिदेव ,मगर हालत है पतली
खरबूजे पर छुरी गिरे ,छुरी पर खरबूजा
पर कटता हर बार ,बिचारा पति ,खरबूजा

घोटू  
 

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