स्वर्ग का माहोल बिगड़ा
बड़े ही घाघ ,कद्दावर से नेता ,मंत्री बनकर
बड़े स्केम करके ,ढेर सा पैसा कमाते है
कटाने को टिकिट वो स्वर्ग का ,सारे जतन करते,
दान और पुण्य करते है,तीर्थ और धाम जाते है
सुना है ,स्वर्ग में भी भीड़ इनकी जा रही बढ़ती ,
वहां पर इनके जाने से बड़ा माहोल बिगड़ा है
परेशां अप्सराएं है ,नहीं कंट्रोल है इन पर ,
पड़े पीछे सभी रहते,रोज ही होता झगड़ा है
पुराने अनुभवी नेता वहां जब पहुँच जाते है ,
तो पोलिटिक्स करते है ,वो सब कुर्सी के पाने की
इन्द्र भी आजकल है दुखी रहता इनकी हरकत से ,
कोशिशें करते रहते है ये इन्द्रासन हिलाने की
स्वर्ग में पहुंचे नेताजी ,वहां यमराज ने उनको ,
सुनाने कर्म का लेखा , उठाया जब बही ही था
झपट कर नेताजी ने बही ली और फाड़ दी झट से,
और बोले जो किया मैंने ,वो सब का सब सही ही था
बहुत सा धन ,धरम और दान में मैंने लुटा कर के,
आरक्षित वहां से सीट मैंने स्वर्ग की की है
कहाँ पर सोमरस है,कौनसा प्रासाद है मेरा ,
अप्सरा कौनसी अलाट मुझको ,आपने की है
स्वर्ग के बाकी वाशिंदे भी अब ,रहते परेशां है,
वहां पर भीड़ बढ़ती जा रही है बाहुबलियों की
परेशां लगी रहने सभी हूरें ,उनकी हरकत से,
बिगड़ने लग गयी है अब फिजा ,जन्नत की गलियों की
कि अब तो स्वर्ग में भी नर्क सा माहोल दिखता है ,
ऐसे स्वर्ग से तो धरती पर ही अच्छा लगता था
वहां पर कम से कम बीबी थी,घर था,अपने बच्चे थे ,
थे टी वी ,और सिनेमा ,मस्ती से सब वक़्त कटता था
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बड़े ही घाघ ,कद्दावर से नेता ,मंत्री बनकर
बड़े स्केम करके ,ढेर सा पैसा कमाते है
कटाने को टिकिट वो स्वर्ग का ,सारे जतन करते,
दान और पुण्य करते है,तीर्थ और धाम जाते है
सुना है ,स्वर्ग में भी भीड़ इनकी जा रही बढ़ती ,
वहां पर इनके जाने से बड़ा माहोल बिगड़ा है
परेशां अप्सराएं है ,नहीं कंट्रोल है इन पर ,
पड़े पीछे सभी रहते,रोज ही होता झगड़ा है
पुराने अनुभवी नेता वहां जब पहुँच जाते है ,
तो पोलिटिक्स करते है ,वो सब कुर्सी के पाने की
इन्द्र भी आजकल है दुखी रहता इनकी हरकत से ,
कोशिशें करते रहते है ये इन्द्रासन हिलाने की
स्वर्ग में पहुंचे नेताजी ,वहां यमराज ने उनको ,
सुनाने कर्म का लेखा , उठाया जब बही ही था
झपट कर नेताजी ने बही ली और फाड़ दी झट से,
और बोले जो किया मैंने ,वो सब का सब सही ही था
बहुत सा धन ,धरम और दान में मैंने लुटा कर के,
आरक्षित वहां से सीट मैंने स्वर्ग की की है
कहाँ पर सोमरस है,कौनसा प्रासाद है मेरा ,
अप्सरा कौनसी अलाट मुझको ,आपने की है
स्वर्ग के बाकी वाशिंदे भी अब ,रहते परेशां है,
वहां पर भीड़ बढ़ती जा रही है बाहुबलियों की
परेशां लगी रहने सभी हूरें ,उनकी हरकत से,
बिगड़ने लग गयी है अब फिजा ,जन्नत की गलियों की
कि अब तो स्वर्ग में भी नर्क सा माहोल दिखता है ,
ऐसे स्वर्ग से तो धरती पर ही अच्छा लगता था
वहां पर कम से कम बीबी थी,घर था,अपने बच्चे थे ,
थे टी वी ,और सिनेमा ,मस्ती से सब वक़्त कटता था
मदन मोहन बाहेती'घोटू'