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बुधवार, 7 अगस्त 2013

मुझको दिया बिगाड़ आपने

           मुझको दिया बिगाड़ आपने
          
    मुझ पर इतनी प्रीत लुटा कर,सचमुच किया निहाल आपने
         मै पहले से कुछ बिगड़ा था,थोडा दिया बिगाड़     आपने
पहले कम से कम अपने सब ,काम किया करता था मै खुद
अस्त व्यस्त से जीवन में भी,रखनी पड़ती थी खुद की सुध
अब तो मेरे बिन बोले ही ,काम सभी हो कर देती तुम
टूटे बटन टांक देती  हो ,चाय     नाश्ता  धर देती तुम 
मेरी हर सुख और सुविधा का ,पूरा ध्यान तुम्हे रहता है
मुझ को कब किसकी जरुरत है,पूरा भान तुम्हे रहता है
     मुझे आलसी बना दिया है ,रख कर इतना ख्याल आपने 
      मै पहले से कुछ बिगड़ा था,   थोडा दिया बिगाड़  आपने 
भँवरे सा भटका करता था ,कलियों पीछे ,हर रस्ते में
लेकिन जब से तुम आई हो , मेरे दिल के गुलदस्ते में
तुम्हारे ही पीछे अब तो ,  मै बस  हूँ  मंडराया करता
लव यूं  लव यूं, का गुंजन ही ,अब मै दिन भर गाया करता
पागल अली ,कली  के चक्कर ,में इतना पाबन्द हो गया
इधर उधर ,होटल में खाना ,अब तो मेरा बंद हो गया
     ऐसी स्वाद ,प्यार से पुरसी ,घर की रोटी दाल आपने 
     मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोड़ा  दिया बिगाड़  आपने
मुझ पर ज्यादा बोझ ना पड़े ,रखती हो ये ख्याल  हमेशा
इसीलिये ,मेरे बटुवे से ,    खाली कर        देती सब पैसा 
मेरे लिए ,शर्ट  या कपडे ,लेने जब जाती बाज़ार हो
खुद के लिये , सूट या साडी ,ले आती तुम तीन चार हो
पैसा ,मेल हाथ का ,कह तुम,हाथ हमेशा धोती रहती
धीरे धीरे , लगी सूखने, मेरे धन की  ,गंगा बहती
        मुझको ए टी एम ,समझ कर,किया है इस्तेमाल आपने 
         मे पहले से कुछ बिगड़ा था  ,थोड़ा  दिया बिगाड़ आपने
मै पहले ,अच्छा खासा था ,तुमने क्या से क्या कर डाला
ये न करो और वो न करो कह,पूरा मुझे बदल ही  डाला
और अब ढल तुम्हारे सांचे में जब बिलकुल बदल गया मै
तुम्ही शिकायत ,ये करती हो,     पहले जैसा  नहीं रहा मै 
चोरी ,उस पर सीनाजोरी , ये तो  वो ही मिसाल हो गयी
ऐसा रंगा ,रंग में अपने , कि मेरी पहचान    खो गयी
          सांप मरे ,लाठी ना टूटे ,ऐसा  किया  जुगाड़  आपने
          मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोडा दिया बिगाड़ आपने
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 अगस्त 2013

यादें- बचपन की

यादें- बचपन की 
कितनी बातें, कितनी यादें
उस हस्ते गाते बचपन की 
उस मिट्टी के कच्चे  घर की 
गोबर लिपे पुते आँगन की 
वो मिट्टी का कच्चा चूल्हा 
उसमें उपले और लकड़ियाँ 
फूंक फूकनी, आग जलाना 
और सेकना गरम रोटियाँ 
वो पीतल का बड़ा भरतीय 
चढ़ा दाल का जिसमें आदन
अटकन रख, कर टेड़ी थाली
रोटी दाल जीमतें थे हम
अंगारों पर सिकी रोटियाँ 
गरम, आकरी, सोंधी, फूली
टुकड़े चूर दाल में खाने 
की आदत अब तक न भूली 
त्योहारों पर पूवे पकोड़े
दहि बड़े और पूरी तलवा 
खीर कभी बेसन की चक्की 
और कभी आते का हलवा 
गिल्ली- डंडा, हूल गदागद
लट्टू घूमा खेलना कंचे 
बचपन के उन प्यारें खेलो 
की यादें न जाती मन से 
डंडा चौथ, बजाकर डंडे 
घर घर जा गुडधानी  खाना 
भूले से भी बिसर न पता 
बचपन का त्योहार सुहाना 
अमियाँ, इमली सभी तोड़ना
फेक लदे पेड़ों पर पत्थर 
घर में रखी मिठाई खाना 
चोरी- चोरी और छुपछुपकर 
बारिश में कागज की नावें 
तैरा, पीछे दौड़ लगाना
कभी हवा में पतंग उड़ाना 
बात बात पर होड लगाना 
रात पाँव दबवाती दादी 
और सुनाती हुमें कहानी 
विस्मित बच्चे, सुनते किस्से 
उड़ती परियाँ, राजा- रानी 
कुछ न कुछ प्रसाद मिलेगा
इसलिए जाते थे मंदिर 
शादी में जीमन का न्योता 
मिलता था, खिल जाते थे दिल 
पंगत में पत्तल पर खाना 
नुकती, सेव और गरम पूरियाँ 
कर मनुहार परोसी जाती 
कभी जलेबी कभी चक्कियाँ 
पतला पर स्वादिष्ट रायता
हम पीते थे दोने भर भर 
ऐसे शादी, त्योहारों में 
मन जाता था तृप्ति से भर 
पाँच सितारा होटल में अब 
शादी की होती है दावत 
एक प्लेट में इतनी चीज़ें 
गुडमुड़ खाना ,बड़ी मुसीबत 
भले हजारों का खर्चा कर,
मंहगा भोजन पुरसा जाता 
पर वो स्वाद नहीं आ पाता,
जो था उस पंगत मे आता 
रहते शहरों  के फ्लेटों में 
एसी, पंखें सभी यहाँ है 
मगर गाव के उस पीपल की 
मिलती ठंडी हवा कहाँ हैं 
वो प्यारी ताजी सी खुशबू 
यहाँ नहीं वो अपनेपन की 
कितनी बातें, कितनी यादें 
उस हस्ते गाते बचपन की 

मदन मोहन बहेती 'घोटू' 

बुधवार, 31 जुलाई 2013

अंदाजे इश्क

        
          अंदाजे  इश्क
न साडी, ना ढका आँचल ,न चेहरे पर कोई घूंघट
न गहनों से लदी  काया,न शर्मो लाज का नाटक
फटी सी जीन्स ,ढीला टॉप,और चंचलता निगाहों में
भरी मस्ती और बेफिक्री ,शरारत है   अदाओं   में
बड़ी बिंदास बन कर तुम,मेरे पहलू  में आती हो
बड़ी हो बेतकल्लुफ ,रात भर ,मुझको सताती हो
तुम्हारे प्यार का अंदाज ये ,मुझको   सुहाता  है
कि खुल कर खेलने में ही ,मज़ा उल्फत का आता है

 मदन मोहन बहेती'घोटू'


मंगलवार, 30 जुलाई 2013

ईमान- नेताओं मे

  
नेताओं मे खोजते  ईमान हो,
            कर रहे कोशिश क्यों बेकार मे 
कितना ही ढूंढो .नहीं मिल पाएंगे,
            तुम्हें मीठे करेले    बाज़ार  मे 
जो भी दिखता हकीकत होता नहीं,
             फर्क है तस्वीर मे और असल  मे,
राख़ की आती नज़र है परत पर,
             आग ही तुम पाओगे  अंगार मे 
बेईमानी से भरी इस रेत मे,
             हो गए गुम,चंद दाने  शकर के,
लाख छानो,तुम्हें मिल ना पाएंगे ,
             व्यर्थ कोशिश जाएगी ,हर बार मे 
हसीनों और नेता मे अंतर यही,
             नेता की 'हाँ 'का भरोसा कुछ नहीं,
और हसीनों की है ये प्यारी अदा,
             उनकी हामी,उनके है  इंकार मे 
हो समंदर चाहे कितना भी बड़ा,
              उसमे खारा पानी ही होता सदा,
तपिश से बादल बनाओगे तभी,
               बरसेगा वो,मीठा बन,बौछार मे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'        

सोमवार, 29 जुलाई 2013

नींद जब जाती उचट है ....

नींद जब जाती उचट है ...

नींद जब जाती उचट है रात को ,
                     जाने क्या क्या सोचता है आदमी
पंख सुनहरे लगा कर आस के ,
                      चाँद तक जा पहुंचता है  आदमी
दरिया में बीते दिनों की याद के ,
                       तैरता  है ,डुबकियाँ है मारता
गुजरे दिन के कितने ही किस्से हसीं,
                         कितनी ही आधी अधूरी दास्ताँ
ह्रदय पट पर खयालों  के चाक से,
                          लिखता है और पोंछता है आदमी
नींद जब जाती उचट है रात को,
                            जाने क्या क्या सोचता है आदमी
किसने क्या अच्छा किया और क्या बुरा ,
                              उभरती है सभी यादें   मन बसी
कौन सच्छा दोस्त ,दुश्मन कौन है,
                               किसने दिल तोडा और किसने दी खुशी
कितने ही अंजानो की इस भीड़ में,
                               कोई अपना   खोजता है आदमी
नींद जब जाती उचट है रात को,
                                 जाने क्या क्या सोचता है आदमी

मदन मोहन बाहेती' 

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