यादें- बचपन की
कितनी बातें, कितनी यादें
उस हस्ते गाते बचपन की
उस मिट्टी के कच्चे घर की
गोबर लिपे पुते आँगन की
वो मिट्टी का कच्चा चूल्हा
उसमें उपले और लकड़ियाँ
फूंक फूकनी, आग जलाना
और सेकना गरम रोटियाँ
वो पीतल का बड़ा भरतीय
चढ़ा दाल का जिसमें आदन
अटकन रख, कर टेड़ी थाली
रोटी दाल जीमतें थे हम
अंगारों पर सिकी रोटियाँ
गरम, आकरी, सोंधी, फूली
टुकड़े चूर दाल में खाने
की आदत अब तक न भूली
त्योहारों पर पूवे पकोड़े
दहि बड़े और पूरी तलवा
खीर कभी बेसन की चक्की
और कभी आते का हलवा
गिल्ली- डंडा, हूल गदागद
लट्टू घूमा खेलना कंचे
बचपन के उन प्यारें खेलो
की यादें न जाती मन से
डंडा चौथ, बजाकर डंडे
घर घर जा गुडधानी खाना
भूले से भी बिसर न पता
बचपन का त्योहार सुहाना
अमियाँ, इमली सभी तोड़ना
फेक लदे पेड़ों पर पत्थर
घर में रखी मिठाई खाना
चोरी- चोरी और छुपछुपकर
बारिश में कागज की नावें
तैरा, पीछे दौड़ लगाना
कभी हवा में पतंग उड़ाना
बात बात पर होड लगाना
रात पाँव दबवाती दादी
और सुनाती हुमें कहानी
विस्मित बच्चे, सुनते किस्से
उड़ती परियाँ, राजा- रानी
कुछ न कुछ प्रसाद मिलेगा
इसलिए जाते थे मंदिर
शादी में जीमन का न्योता
मिलता था, खिल जाते थे दिल
पंगत में पत्तल पर खाना
नुकती, सेव और गरम पूरियाँ
कर मनुहार परोसी जाती
कभी जलेबी कभी चक्कियाँ
पतला पर स्वादिष्ट रायता
हम पीते थे दोने भर भर
ऐसे शादी, त्योहारों में
मन जाता था तृप्ति से भर
पाँच सितारा होटल में अब
शादी की होती है दावत
एक प्लेट में इतनी चीज़ें
गुडमुड़ खाना ,बड़ी मुसीबत
भले हजारों का खर्चा कर,
मंहगा भोजन पुरसा जाता
पर वो स्वाद नहीं आ पाता,
जो था उस पंगत मे आता
रहते शहरों के फ्लेटों में
एसी, पंखें सभी यहाँ है
मगर गाव के उस पीपल की
मिलती ठंडी हवा कहाँ हैं
वो प्यारी ताजी सी खुशबू
यहाँ नहीं वो अपनेपन की
कितनी बातें, कितनी यादें
उस हस्ते गाते बचपन की
मदन मोहन बहेती 'घोटू'