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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

कागा-बढ़भागा

              कागा-बढ़भागा

कौवा ,एक बुद्धिमान प्राणी है

बात ये जानी मानी है
हम सबने उस कौवे की कथा तो है पढ़ी
जिसको लग रही थी प्यास बड़ी
उसे एक छत पर
एक मटकी आई नज़र
जिसकी तली में थोडा पानी था
पर कौवा तो ज्ञानी था
वो चुन चुन कर,लाया कंकर
और मटकी में डालता गया,
और जब पानी का स्तर
उसकी चोंच की पहुँच तक आया
उसने अपनी प्यास को बुझाया
प्राचीन ग्रंथो में भी,
काग के गुण गाये जाते है
काग जैसी चेष्ठा को,विद्यार्थी के,
पांच लक्षणों में से एक बताते है
कहते है कौवा एकाक्षी होता है
सबको एक नज़र  से देखने वाला पक्षी होता है
कोयल ओर कागा,दोनों हमजाति है
फर्क केवल इतना है,
 कौवा कांव कांव करता है
और कोयल कूहू कूहू गाती है
पर कौवा परोपकारी जीव है,
जाति धर्म निभाना जानता है
कोयल के अण्डों को अपना मान कर पालता है
कौवा  प्रतीक  है,हमारे पुरखों का
और ये चलन है कई बरसों का
कि जब हम श्राद्ध पक्ष मनाते है,
तो सबसे पहले कौवे को खाना खिलाते है
एक पुराना  मुहावरा है,
'कौवा चला हंस कि चाल'
पर आजकल है उल्टा हाल,
हंस जैसे सफेदपोश नेता,
कौवे कि चाल चलते है
काजल कि कोठरी से भी,
बिना  दाग निकलते है
कोयले कि दलाली में कमाया हुआ काला धन ,
स्विसबेंकों में जमा करते है
कौवे की कांव कांव,आजकल,
बड़ी पोपुलर दिखाई देती है
विधानसभा हो या संसद,
हड़ताल हो या बंद,
हर जगह बस कांव कांव ही सुनाई देती है
पुराने जमाने में,जब ,मोबाईल नहीं होता था,
विरहन नायिकाएं,बस कौवे के गुण गाती थी
अटरिया पर कौवे की कांव कांव,
उन्हें पियाजी का संदेशा सुनाती थी
और जब पिया के आने का सन्देश मिलता था,
उसकी चोंच को सोने से मढ़ाती थी
ये काग का ही सामर्थ्य था,
कि वो कृष्ण कन्हैया के हाथों से,
माखन रोटी छीन सकता था
सीता माता के चरणों  में चोंच मार सकता था
वो काकभुशंडी कि तरह,भक्त और  विद्वान् है
कौवा सचमुच महान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

शहीदे आजम रहा पुकार


("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

आपकी परछाईयां

              आपकी परछाईयां
सुबह सुबह जब उगता है सूरज,
परछाईयाँ लम्बी  होती है
उसी तरह ,जीवन का सूरज  उगता है,
यानी की बचपन,
आप सभी को डेक कर मुस्काते है
किलकारियां भरते है
खुशियाँ लुटाने में,
कोई  भेदभाव नहीं करते है
आपकी मुस्कान का दायरा,
सुबह की परछाईं की तरह,
बड़ा लम्बा होता है
और दोपहरी में,
याने जीवन के मध्यान्ह में,
आपकी परछाईं,आपके नीचे,
अपने में ही सिमट कर रह जाती है
वैसे ही आप जब,
अपने उत्कर्ष की चरमता पर होते है,
अहम से अभिभूत होकर,
स्वार्थ में लिपटे हुए,
सिर्फ अपने आप को ही देखते है
और दोपहर की परछांई की तरह,
अपने में ही सिमट कर रह जाते है
और शाम को,
जब सूरज ढलने को होता है,
आपकी परछांई,लम्बी होती जाती है,
वैसे ही जब जीवन की शाम आती है,
आपकी सोच बदल जाती है
आपकी भावनाओं का दायरा,
पुरानी यादों की तरह,
उमड़ते जज्बातों की तरह,
तन्हाई भरी रातों की तरह,
लम्बा होता ही जाता है
जब तक सूरज ना ढल जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू

अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो  देख तू     

अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू

प्यार के दो बोल मीठे  , बोल कर तो देख तू
            मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर  मुस्करा
             खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे  बढ़ा
            सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
             और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
             महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
             जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे ,  बोल कर तो देख   तू
             धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी 
             तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
             और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
              मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
              मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा  बदन
              तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक  तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो  देख तू
              क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
              स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ  माया मोह में
              कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर  देख ले
              लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर   देख ले
              किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
              सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार  में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 26 सितंबर 2012

♥♥♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥♥♥


चाहो मुझे इतना कि पागल ही हो जाए हम,
हम टूट कर भी याद सिर्फ तुझे करे सनम |

रतजगों में भी मेरे अब बस तेरा ही नाम हो,
खुशियों में मेरे बस अब तेरा ही एहसान हो |

तेरे मेरे दरमियान न हो किसी दूरी का एहसास,
जब तक जियूं रहे तू मेरे दिल के आस-पास |

एक-दूजे के भूल को भी खुले दिल से माफ करें,
आओ, कि चाहत से अपने अब इंसाफ करें |

खुने-जिगर से लिख दूँ तेरी धडकनों में अपना नाम,
मोहब्बतों से भरा अपना ये रिश्ता है अनाम |

स्याही की जगह कलम में अपने लहू मैं भर दूँ,
ख्वाबों को भी अपने आज आ, तेरे नाम मैं कर दूँ |

चाहो मुझे इतना कि मैं खुद को ही भूल जाऊँ,
चाहो मुझे इतना कि तुझ बिन एक पल न रह पाऊँ |

चाहो मुझे इतना कि उसकी तपिश में जला दो,
चाहो मुझे इतना कि मेरी हर दुनिया भुला दो |

चाहो मुझे इतना कि ये पल यहीं पे रुक जाए,
चाहो मुझे इतना कि ये आसमान भी झुक जाए |

चाहो मुझे इतना कि हर तरफ तुम ही नजर आओ,
चाहो मुझे इतना कि तुम आज मुझमे समा जाओ |

चाहो मुझे इतना कि भूलूँ जो भी कोई दुःख हो,
कि गेसूओं तले तेरी कोई जन्नत -सा सुख हो |

चाहो मुझे चाहो तुम बस, मैं भी तुम्हें चाहूँ,
चाहत में तेरी मैं अब बस सब कुछ ही भुलाऊँ |

-♥♥"दीप"♥♥

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