देश की कुंडली
एक तरफ तो भ्रष्ट सारी मंडली है
और दूजी तरफ भज भज मंडली है
क्या नहीं विकल्प कोई तीसरा है,
किस तरह की देश की ये कुंडली है
यहाँ पर सियार है,सारे रंगे है
लूटने में , देश को, मिल कर लगे है
कोई भी एसा नज़र आता नहीं है
लुटेरों से जिसका कुछ नाता नहीं है
किस तरह से पेट भर पाएगी जनता,
जो भी रोटी उठाते है,वो जली है
किस तरह की देश की ये कुंडली है
हर तरफ है,भ्रष्टता का बोलबाला
लक्ष्मी ,स्विस बेंक में ,मुंह करे काला
बढ़ रही मंहगाई अब सुरसा मुखी है
परेशां ,लाचार सी जनता दुखी है
कहाँ जाए,रास्ता दिखता नहीं है,
आज काँटों से भरी ,हर एक गली है
किस तरह की ,देश की ये कुंडली है
सह रहे क्यों,इस तरह,ये मार है हम
पंगु क्यों है,हुए क्यों लाचार है हम
क्यों हमारा खून ठंडा पड़ गया है
आत्म का सन्मान क्यों कर मर गया है
फूटना ज्वालामुखी का है सुनिश्चित,
लगी होने धरा में कुछ खलबली है
किस तरह की देश की ये कुंडली है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बड़े दिन की कविता
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बड़े दिन की कविता ईसा ने कहा था चट्टान पर घर बनाओ रेत पर नहीं क्या ‘मन’ ही
हमारा असली घर नहीं क्या हर कोई मन में नहीं रहता आपस में जुड़े हैं मनमन
वस्तुओं ...
8 घंटे पहले