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रविवार, 13 मई 2012

एक बाग़ के दो पेड़

एक बाग़ के  दो पेड़

एक बाग़ में दो पेड़ लगे

दोनों साथ साथ बढे
माली ने दोनों को अपना प्रीत जल दिया
साथ साथ सिंचित किया
समय के साथ,दोनों में फल आये
एक वृक्ष के कच्चे फल भी लोगों ने खाये
कच्ची केरियां भी चटखारे ले लेकर खायी 
किसीने अचार तो किसी ने चटनी बनायी
पकने पर उनकी रंगत सुनहरी थी
उनके रस की हर घूँट,स्वाद से भरी थी
उसकी डाली पर कोयल कूकी,
पक्षियों ने नीड़ बनाया
थके पथिकों ने उसकी छाँव में आराम पाया
और वो वृक्ष आम कहलाया
दूसरे वृक्ष पर भी ढेरों फल लगे
मोतियों के सेकड़ों रस भरे दाने,
एक छाल के आवरण में बंधे
कच्चे थे तो कसेले थे,पकने पर रसीले हुए
हर दाना,अपने ही साथियों के संग बांध कर,
अपने में ही सिमट कर रह गया
एक दूजे संग ,कवच में बंध कर रह गया
पर उसकी टहनियों पर,न नीड़ बन पाये
न उसकी छाँव में राही सुस्ताये
उसका हर दाना रसीला था,पर,
हर दाने का अलग अलग  आकार था
वो वृक्ष अनार था
एक बाग़ में,एक ही माली ने लगाए दो पेड़
दोनों में ही फल लगे,रसीले और ढेर
पर दोनों ही पेड़ों की भिन्न प्रवृती है
कुदरत भी कमाल करती है
एक बहिर्मुखी है,एक अंतर्मुखी है
अपने अपने में दोनों सुखी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फितरत

    फितरत
चुगलखोर चुगली से,
चोर हेराफेरी से,
                बाज नहीं आता है
कितना ही भूखा हो,
मगर शेर हरगिज भी,
                घास नहीं खाता है
रंग कर यदि राजा  भी,
बन जाए जो सियार,
                  'हुआ'हुआ' करता है
नरक का आदी जो,
स्वर्ग में आकर भी,
                   दुखी  रहा  करता है
लाख करो कोशिश तुम,
पूंछ तो कुत्ते की,
                   टेडी ही रहती है
जितनी भी नदियाँ है,
अन्तःतः सागर  से,
                    मिलने को बहती है
एक दिवस राजा बन,
भिश्ती भी चमड़े के,
                     सिक्के चलवाता है
श्वेत हंस ,बगुला भी,
एक मोती चुगता है,
                   एक मछली खाता है
अम्बुआ की डाली पर,
कूकती कोयल पर,
                   काग 'कांव 'करता है
फल हो या फलविहीन,
तरुवर तो तरुवर है,
                   सदा छाँव  करता है
महलों के श्वानों की,
बिजली का खम्बा लख,
                   टांग उठ ही  जाती है
जिसकी जो आदत है,
या जैसी  फितरत है,
                    नहीं बदल  पाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ


जब पहला आखर सीखा मैंने
लिखा बड़ी ही उत्सुकता से
हाथ पकड़ लिखना सिखलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

अँगुली पकड़ चलना सिखलाया
चाल चलन का भेद बताया
संस्कारों का दीप जलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

जब मैं रोती तो तू भी रो जाती
साथ में मेरे हँसती और हँसाती
मुझे दुनिया का पाठ सिखाती
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

खुद भूखा रह मुझे खिलाया
रात भर जगकर मुझे सुलाया
हालातों से लड़ना तूने सिखाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
© दीप्ति शर्मा

शनिवार, 12 मई 2012

सफलता

हर मोड़ जिन्दगी का मुश्किल नहीं है साथी
जलती रहेगी ज्योति जीवित रहे जो बाती,
कभी हार न जाना.........................................

 शेष पंक्तियों  के लिए  ब्लॉग- anudalakoti.blogspot.in पर अवश्य जाएँ तथा  अपने सुझाव दें,
 धन्यवाद |

मै- स्वामी डा.मोम बाबा बी.टेक

 मै- स्वामी डा.मोम बाबा बी.टेक.

मेरे पिताजी चाहते थे मै इंजीनियर  बनू,मैंने बी.टेक.पास किया

मेरी माताजी चाहती थी मै डॉक्टर बनू,सो मैंने करेस्पोंडेंस कोर्स से
होमियोपेथी पढ़ कर अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाया.
मेरे दादाजी चाहते थे कि मै  कर्मकांडी पंडित बनू,तो उन्होंने मुझे
बचपन से कर्मकांड सिखलाया .मेरी दादीजी चाहती थी कि मै
कथावाचक संत बनू,तो मैंने उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर
भागवत,रामायण और शास्त्रों का अध्ययन किया.और फिर
सभी की अपेक्षाओं पर खरा उतर कर,मैंने हर प्रोफेशन को ट्राय
किया और अंत में  इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मेरी दादीजी कितनी सही थी
और आज मै स्वामी डा.मोम बाबा बी.टेक.,कथावाचक संत हूँ.
इंजिनियर रहता तो रेत,बजरीऔर सीमेंट मिला कर बड़ी बड़ी
इमारतें खड़ी करता पर आज मै अपने प्रवचनों में कथा, भजन,और
संस्मरण मिला कर ऐसी कांक्रीट बनाता हूँ कि भक्तों के दिल में
जम कर ,स्वर्ग के सपनो कि ईमारत खड़ी हो जाती है-बीच बीच में,
मै थोड़े थोड़े घरेलू नुस्खे और चुटकुलों की छोटी छोटी,मीठी मीठी,
गोलियां देकर अपनी डाक्टरी के ज्ञान प्रदर्शन की भड़ास भी पूरी
कर लेता हूँ.कथा के पहले और बाद के कर्मकांडों व कुछ भक्तों की
विपदाओं को हरने के लिए की गयी विशेष पूजाएँ भी दादाजी के
आशीर्वाद से काफी धनप्रदायिनी होती है-और दादीजी के आशीर्वाद ने
मुझे एक प्रख्यात कथावाचक संत बना दिया है जिसके अमृत वचन
टी.वी. के कई चेनलों पर  दिन रात प्रसारित होते रहते है.अब मै एक पूजनीय
संत हूँ,-भक्त मुझे माला पहनाने को और मेरा आशीर्वाद पाने को
आयोजकों को मोटा चढ़ावा चढाते है
.मै इवेंट मेनेजर हूँ ,मेरी कथा में लाखों की उमड़ती भीड़ के लिए
पंडाल,टी.वी.,लाउड स्पीकर आदि की व्यवस्था मेरे ही लोग करते है
मै एम.बी.ए. की तरह अपने पूरे बिजनेस का मेनेजमेंट कुशल और
 लाभ दायक तरीके से करता हूँ जैसे भजन और प्रवचन के केसेट और
सी.डी.बना कर बेचना,मासिक पत्रिका छपवा कर अपने फोटो युक्त
फ्रोंट पेज पर अपने विचार और भक्तों के अनुभव छपवा कर अपना प्रचार
करना,या अपनी हर कथा पर १०८ या अधिक महिलाओं की कलश यात्रा
को बेंड बाजों के साथ शहर में घुमा कर अपना प्रचार करना आदि आदि-
मै    सी.ए. याने चार्टर्ड अकाउंटटेंट हूँ-मै जनता हूँ की  चढ़ावे  की इतनी कमाई को,
किस तरह टेक्स फ्री किया जाए या विदेशी रूट से काले पैसे को सफ़ेद बनाया जाये
कथा के साथ साथ और भी पैसे कमाने के कई गुर मैंने सीख लिए है ,जैसे,
भागवत कथा में रुकमनी विवाह पर भक्त महिलाओं से रुकमनी जी के दहेज़ में
साडी और आभूषण चढ़वाना,या कृष्ण सुदामा के मिलन प्रसंग पर भक्तों  से चावल
चढ़ा कर असीम दौलत प्राप्ति  का लालच देना आदि-इस तरह का चढ़ावा इतना आ जाता है
की समेटना मुश्किल हो जाता है अत:दूसरे दिन वही चढ़ावा कथा स्थल के बाहर भगवान
का प्रसाद बतला कर अच्छे दामो में बिक जाता है-इस तरह 'हींग लगे ना फिटकड़ी,रंग भी चोखो आय'
की कहावत को चरितार्थ करता हूँ.
प्रभू की असीम कृपा से ,कई तीर्थ स्थलों में मेरे आश्रम चल रहे है और मेरे पास अपार धन सम्पदा है
जो कदाचित इंजिनियर या डाक्टर बन कर मै नहीं कमा सकता था.-सत्ता और विपक्ष के कई
नेता मेरे परम भक्त है जिससे मेरे वर्चस्व  की वृद्धि होती है-मेरी तस्वीरें कितने ही भक्तों के
पूजा गृह में सु शोभित है. और अब मेरे बच्चों को अपने केरियर के बारे में सोचने की
कोई जरुरत ही नहीं है क्योंकि वो बाप की विरासत ही संभालेंगे अत :अभी से मेरी संतति
संत गिरी की ट्रेनिंग ले रही है.अरे हाँ,एक बात तो ना आपने पूछी,न मैंने बताई,-आप उत्सुक होंगे
मै मोम बाबा कैसे बना-इस नाम करण के पीछे कई कारण है-पहला ,जब भी कथा में कोई मार्मिक
प्रसंग आता है,मै अपने हाथो की कुशलता से अश्रु दायक द्रव अपनी आँखों पर लगा लेता हूँ
और मेरे चक्षुओं से आंसू की बरसात होने लगती है-भक्त समझते है की मै भाव विव्हल होकर
 मोम की तरह पिघल रहा हूँ पर असल में मै भाव विव्हल होकर अपने भाव बढाता हूँ.दूसरा,
मोम बत्ती की तरह मै लोगों के अन्धकार मय जीवन में प्रकाश भरता हूँ और तीसरा मुख्य
कारण है  की मेरा नाम मदन मोहन है जो काफी लम्बा है और भक्तों की जुबान पर छोटे नाम
जल्दी चढ़ते है सो मैंने ही अपने नाम के प्रथम अक्षरों से पहले म मो बाबा  सोचा पर थोडा अटपटा
लगा तो उलट कर मोम बाबा कर दिया जो सार्थक भी था.-आज मै जो भी हूँ,जनता की धर्म
के प्रति जागरूकता और पुन्य लाभ की आकांक्षा का प्रतिफल हूँ और आदरणीया दादीजी की
दूर दर्शिता,प्रेरणा और आशीर्वाद से हूँ-तो भक्तों !प्रेम से बोलो-राधे  राधे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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