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बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

खुशियों के क्षण

खुशियों के क्षण
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नौ महीने तक रखा संग में ,पिया,खाया
जिसकी लातें खा खा कर के,मन मुस्काया
माँ जीवन में,खुशियों का पल ,सबसे अच्छा
रोता पहली बार,जनम लेकर जब  बच्चा
एक बार ही आता है  ये पल जीवन में
जब बच्चा रोता और माँ खुश होती मन में

मदन मोहन बहेती'घोटू'

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

दीन-हीन परदेश, छकाते छोरी-छोरा

दीन-हीन परदेश, छकाते छोरी-छोरा

छोरा होरा भूनता, खूब बजावे गाल ।
हाथी के आगे नहीं, गले हाथ की दाल ।

गले हाथ की दाल, गले तक हाथी डूबा ।
कमल-नाल लिपटाय, बना वो आज अजूबा ।

करे साइकिल  रेस, हुलकता यू पी मोरा ।
दीन-हीन परदेश,  छकाते छोरी-छोरा ।। 

प्रेमोत्सव या प्रेम का व्यापार


आज सुबह समाचार पत्र पर अचानक से नजर पड़ी,
"वेलेनटाईन डे की तैयारी" शीर्षक कुछ अटपटा सा लगा।
हृदय मे कुछ दुविधा उठी,
मन ही मन मै सोचने लगा|

वेलेनटाईन डे के नाम पर ये क्या हो रहा है?
कई फायदा उठा रहे है कईयों का कारोबार चल रहा है।
एक खाश दिन को प्रमोत्सव पता नहीं किसने चुना,
प्रेम अब हृदय से निकल के बाजार मे आ गया है।
व्यापारीकरण के दौर मे प्यार भी व्यापार हो गया है।
ग्रिटिंग्स कार्ड, बेहतरीन गिफ्ट्स, यहाँ तक की फूलो के भी दाम है
हर चीज अब खाश है बस प्रेम ही आम है।

कुछ इसे मनाने की जिद मे अड़ते रहते है,
कुछ संस्कृति के नाम पे इसे रोकने को लड़ते रहते है।
पर सोचने वाली बात है कि सच्चा प्रेम है कहाँ पे?
पार्क में घुमना, होटल में खाना प्रेम का ही क्या रूप है?
भेड़ों की चाल में शामिल हो जाना ही जिन्दगी है तो,
ऐसी जिन्दगी में सोचने की जगह ही कहाँ है?

अगर सच्चा प्रेम है तो क्या उसका कोई खाश दिन भी होता है?
हर दिन क्या प्रेम के नाम नहीं हो सकता?
क्या मानव होकर हर दिन हम मानव से प्यार नहीं कर सकते?
हर दिन किसी  से या देश से प्यार का इजहार नहीं कर सकते?
जो भी हो पर मष्तिष्क की स्थिति यथावत ही है,
मतिभ्रम है और ना थोड़ी सी राहत ही है।
पर किसी न किसी को तो सोचना ही होगा,
आगे आके गलतियों को रोकना ही होगा|
मष्तिष्क मे आया कि जेहन मे ये ना ही आता तो अच्छा था।

लड्डू चालीसा

लड्डू  चालीसा
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प्रस्तावना
चंदा गोल,गोल है सूरज,धरा गोल है प्यारे
इन सब की गोलाई लेकर,लड्डू देव पधारे
इनका ही प्रतिरूप मान कर,हम लड्डू को ध्यायें
एक बार फिर पेट -गुहा में,लड्डू ध्वज फहरायें

श्री लड्डू चालीसा
   --दोहा-
खा चूरन पत्थर हज़म,अपनों पेट सुधार
दो दिन तक उपवास रख,यदि लड्डू से प्यार
घर जा कर जजमान के,बैठो पाँव पसार
सौ लड्डू का भोग कर,लेना मती डकार
      चोपाई
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जय मोदक ,जय मोतिचूरा
प्यारा लगता लड्डू पूरा
सभी प्यार से तुमको खाते
खाकर तुम्हे तृप्त हो जाते
क्या क्या गाँउ गुण तुम्हारे
हो मिष्ठान बड़े ही प्यारे
पेढा,बर्फी,घेवर फीनी
तुम्हारे आगे है भीनी
रसगुल्ले ,चमचम भी चाखे
मज़ा न आया लेकिन खा के
सोहन हलवा हमने खाया
पर मनमोहन हमें न भाया
केला,आम,सेव,नारंगी
तुम्हारे आगे बेढंगी
काजू,किशमिश,सूखा मेवा
लगे न अच्छा लड्डू देवा
जब थाली में आप बिराजे
क्यों कर चीज दूसरी खाजे
महिमा अहे तुम्हारी ,न्यारी
जाऊं तुम पर मै बलिहारी
आगम निगम पुराण बखाना
लड्डू ,मिष्ठानो के  मामा
श्री गणपति ,गजानन देवा
करे आपका रोज कलेवा
करे आचमन श्री भगवाना
तुम हो अति प्यारे पकवाना
ले बरात शिव चले ब्याहने
हुए इकट्ठे सभी पाहुने
नये नये पकवान बनाये
आप सभी के मन को भाये
पिता आपके श्री हलवाई
चाची है श्री चीनी  माई
चंदा सूरज से  चमकीले
मीठे भी हो,बड़े रसीले
गोल गोल हो पृथ्वी जैसे
करूं बखान कीरती कैसे
मोती सी है सूरत  प्यारी
धन्य धन्य हो तुम अवतारी
है कितने  अवतार तुम्हारे
सभी रूप में लगते प्यारे
भक्त गजानन ,मोदक रूपा
भोग करे जगती के भूपा
न्यारा रूप ,धन्य पंचधारी
मोतीचूर रूप सहकारी
बूंदी ने मिल संघ बनाया
मोतीचूर सामने  आया
हर बूंदी है रस का प्याला
स्वाद आपका बड़ा निराला
बेसन,मूंग,गोंद भी प्यारा
मगद ,चासनी और कसारा
माखन मिश्री ,मोदक,मावा
देवों का हो तुम्ही चढ़ावा
धानी,रूप और अति नाना
 कब तक कीरत करूं बखाना
जब भी नाम आपका आवे
मुंह में पानी भर भर जावे
चूहा  दौड़ पेट में भागे
आप बड़े ही प्यारे लागे
जजमानो की तुम परसादी
होय तुम्हारे बिना न शादी
घी से खूब पौष्टिक  देवा
करूं आपका रोज कलेवा
ब्राह्मन गुण गाये तुम्हारा
जय जय प्रभू,भूख संहारा
पूरी,खीर कछु ना भावे
लड्डू जब थाली में आवे
भूख शांत होवे पितरों की
इच्छा पूरी हो मितरों की 
नासे भूख,चखावे मेवा
जपत निरंतर लड्डू देवा
सभी प्रेम से लड्डू खावे
भगवन उनका पेट बढ़ावे
ब्राह्मन,पंडों के रखवाले
भूख निकंदन,पेट दुलारे
पकवानों के तुम हो राजा
धन्य धन्य लड्डू महाराजा
जो  ध्यावे 'लड्डू चालीसा'
भरे पेट साखी गौरीसा
'घोटू''सदा आपका चेरा
कीजे दास पेट में   डेरा
   --दोहा--
लड्डू चालीसा पढो,जनम जनम की टेव
मेरे भूखे पेट  को, भरना  लड्डू  देव
  इति श्री  लड्डू चालीसा सम्पूर्ण

दौड़े यदि जो 'रेट 'पेट में
सबसे सुन्दर चीज भेट में
डालो कोई 'केट' पेट में
वह है लड्डू पेट 'गेट' में

 



रविवार, 12 फ़रवरी 2012

डोर मेरी है तुम्हारे हाथ में
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मै तुम्हारे पास में हूँ,तुम हो मेरे साथ में
उड़ रहा मै,डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
    तुम पवन का मस्त झोंका,जिधर हो रुख तुम्हारा
     तुम्हारे संग संग पतंग सा,रहूँ उड़ता  बिचारा
तुम लचकती टहनी हो और थिरकता पात  मै
उड़ रहा मै, डोर मेरी पर  तुम्हारे  हाथ  में 
       नाव कागज की बना मै,तुम मचलती  धार हो
       जिधर चाहो बहा लो या डुबो दो या तार दो
संग तुम्हारा न छोडूंगा किसी  हालात में
 उड़ रहा मै, डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
      बांस की पोली नली ,छेदों भरी मै बांसुरी
       होंठ से अपने लगालो,बनूँ सुर की सुरसरी  
मूक तबला,गूंजता मै,तुम्हारी हर थाप में
उड़ रहा मै,डोर मेरी ,पर तुम्हारे हाथ में
     घुंघरुओं की तरह मै तो तुम्हारे पैरों बंधा
      तुम्हारी हर एक थिरकन पर खनकता मै सदा
तुम शरद की पूर्णिमा की रात हो और प्रात मै
उड़ रहा मै,डोर मेरी, पर तुम्हारे   हाथ  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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