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बुधवार, 12 जुलाई 2017

बीते हुए दिन

उन दिनों सीनियर सिटिज़न फोरम की
 मीटिंग की तरह ,
लगा करती थी एक चौपाल  
सब पूछते थे ,एक दूसरे का हाल 
मिल बैठ कर ,हँसते गाते थे 
एक दूसरे के सुख दुःख में काम आते थे 
न कोई पॉलिटिक्स था ,न अहम का टकराव था 
न कोई दुराव था ,न कोई छिपाव था 
आपस में प्रेम था ,लगाव था 
व्हाट्स एप ग्रुप की तरह ,
एक हुक्का होता था ,जिसे सब गुड़गुड़ाते थे 
सब बराबर का मज़ा उठाते थे 
न कोई छोटा था न कोई बड़ा था 
न कोई एडमिन बनने का झगड़ा था 
जिसके मन में जो आता था,,कह लेता था 
किसी को बुरा लगता ,तो सह लेता था 
हंसी ख़ुशी  मेलजोल की आदत थी 
बदले की भावनाएं नदारद थी 
आज हम भूल वो ख़ुशी के पल गए है 
क्या हमें नहीं लगता की हम बदल गए है 
आज हम जो जी रहे है ,बोनस में मिली जिंदगी 
क्यों न इसे गुजार दे ,हंसी ख़ुशी करके दिल्ल्गी 
जिसके मन में जो आये,कहने दो 
व्हाट्स एप पर जो संदेशे आते है,आते रहने दो 
क्या पढ़ना ,क्या न पढ़ना ,ये आपकी  चॉइस है 
आपसी मतभेद मिटाने की काफी गुंजाईश है 
जैसा चल रहा था ,वैसा चलने दो 
ये आपका लगाया पौधा है,
इसे फूलने फलने दो 
भुला दो कौन है एडमिन और कौन होगा एडमिन 
प्लीज् ,लौटा दो ,वो ही बीते हुए दिन 

घोटू 

सोमवार, 10 जुलाई 2017

खुल जा सिम सिम 

१ 
अलीबाबा और चोर का ,किस्सा कर लो याद 
एक खजाना लग गया ,अलीबाबा के  हाथ 
अलीबाबा के हाथ ,हुई थी धन की रिमझिम 
खुले खजाना ,जब वो कहता ,खुल जा सिम सिम 
कह घोटू कवि ,भरे हुए थे ,हीरा,मोती 
वो ले आता लाद ,उसे जब जरूरत होती 
२ 
वैसे ही एक खजाना ,पास हमारे आज 
सिम सिम याने डबल सिम ,छुपा इसी में राज 
छुपा इसीमे राज ,खजाना है मोबाइल 
और इस सिम सिम से लूटो जितना चाहे दिल 
दुनिया भर का ज्ञान,सूचना सब मिल जाते  
अपनों से दिन रात करो, जी भर कर बातें 

घोटू 
मज़ा उठालो जीवन के हर पल का


जब होता है समय ,हमें ना मिलती फुरसत ,
जब होती है फुरसत ,बचता समय नहीं है 
इसीलिए हम इस जीवन के एक एक पल का,
पूर्ण रूप से मज़ा उठाले, यही सही  है 
जब तक दूध पड़ा था ताज़ा ,पी ना पाए,
वक़्त गुजरने पर फट जाता या जम जाता 
फटे दूध को तुम पनीर कह मन बहला लो ,
जमे दूध में ,कभी दही सा स्वाद न आता 
मित्रों ,समय हुआ करता है एक पतंग सा ,
जरा ढील दी ,छूटा ,हाथ नहीं आता है 
गयी हाथ से निकल डोर और पतंग उड़ गयी ,
साथ पतंग से मांजा भी सब उड़ जाता है 
जब तक तन में शक्ति थी तुम जुटे काम में,
रत्ती भर भी मज़ा उठाया ना जीवन का 
अब जब थोड़ा वक़्त मिला तो बची न शक्ति ,
ढीला ढाला पड़ा हुआ हर पुर्जा तन का 
हरे  आम होते  है  खट्टे  और सख्त भी,
पक जाने पर ,हरे आम ,पीले पड़ जाते 
सही समय पर उसका मीठा स्वाद उठालो,
अगर देर की ,तो फिर आम सभी सड़ जाते 
जब हो लोहा गरम चोंट तुम तब ही मारो ,
ठन्डे लोहे पर होता कुछ असर नहीं है 
इसीलिये हम इस जीवन के एक एक पल का 
,पूर्ण रूप से मज़ा उठाले,यही सही है 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ऐसा भी होता है 

एक कोने में पलंग के ,हम रहते मजबूर 
उस कोने में पलंग के ,पत्नी सोती दूर 
पत्नी सोती दूर ,नींद ना आती ढंग से 
एक रात करवट बदली,वो गिरी पलंग से
तबसे मुझसे लिपटी चिपटी वो सोवे है  
हर मुश्किल का अंत सदा अच्छा होवे है 

घोटू 
वो पुराना जमाना 

आज जब जीवन,
 बड़ी तेजी से बदलता जा रहा है 
हमें रह रह कर ,
वो पुराना जमाना याद आ रहा है 
तब जब न सर्फ़ था ,न एरियल था ,न टाइड था 
बस सिर्फ  एक साबुन सनलाइट  था ,
जिससे  घर भर के सारे कपडे धुला करते थे 
और कुछ लोग उससे नहा भी लिया करते थे 
वैसे नहाने के लिए ,लाइफबॉय की लाल बट्टी 
आया करती थी काम 
या फिर कुछ लोग काम में लेते थे जय और हमाम 
वैसे उन दिनों  लक्स साबुन भी पॉपुलर था ,
जिसे विज्ञापन सिने तारिकाओं के सौंदर्य का 
रहस्य बतलाते थे 
भले ही उससे डेविड,शेट्टी और ओमपूरी भी नहाते थे 
बचे हुए साबुन की चीपटों से ,
शौच के बाद हाथ साफ़ किये जाते थे 
वैसे इस काम के लिए ,मिट्टी और राख  ,
काम में लिए जाते थे 
औरते,काली मिटटी और दही मिला कर ,
सर के बालों को धोने के लिए काम में लाती थी 
और मेकअप के लिए अफगान स्नो लगाती थी 
न तरह तरह के शेम्पू होते थे ,न कंडीशनर थे 
सिर्फ ब्राह्मी आंवला तेल ,लगाते सर पर थे 
न परफ्यूम थी या सेंट या डियो थे 
लोग कान में रखते इत्र के फुहे थे 
उन दिनों कूलर और ए सी नहीं होते थे 
रात को लोग ,खुली छतों पर सोते थे 
गर्मी में हाथ से पंखा डुलाते थे 
और गर्मी से निजात पाते थे
 मटके और सुराही का पानी पीते थे 
और खुश होकर जीवन जीते थे 
न कोकोकोला था ,न पेप्सी थी ,
न थम्सअप का जोश था 
फिर भी सबके मन में संतोष था 
थोड़ी सी पगार और बहुत बड़ा परिवार 
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी लेते थे जीवन गुजार 
छोटा भाई,बड़े भाई के छोटे हुए कपडे पहनता था 
टीवी के सीरियल नहीं थे ,
दादी,नानी की कहानियों से मन बहलता था 
रोज दाल रोटी खाते थे ,
बस कभी कभी ही पकवान छनते  थे 
त्योंहारों पर ही ,
पूरी और पूवे बनते थे  
पिज़्ज़ा,पास्ता या बर्गर 
या फिर दो मिनिट में बनने वाले नूडल 
लोग इन सबके नाम से भी अनजान थे 
सीधीसादी  जिंदगी थी,भोले भाले  इंसान थे 
पर जबसे इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने डेरा डाला है 
नई नई ब्रांडों के चक्कर ने ,
सारा बजट ही बिगाड़ डाला है 
हर काम के लिए ,अलग अलग प्रोडक्ट ,
और अलग अलग ब्रांड आ गए है 
विज्ञापन के बल पर लोगों के ,
दिलो दिमाग पर छा गए है 
ब्रांडेड चीजों का उपयोग ,
एक स्टेटस सिम्बल बन गया है 
सब लोग खोजते है,क्या नया है 
इसी चक्कर में चीजों  के दाम,
 आसमान पर चढ़ गए है 
 खरचे  बेहताशा बढ़ गए है 
 मंहगी वस्तुए ,लोगो की पसंद हो  गयी है 
और जबसे ये माल खुल गए है,
छोटी दुकाने बंद हो गयी है 
चार आने वाली चाट ,बड़े बड़े रेस्टारेंट में 
चालीस रूपये की मिलती है 
और फिर भी खरीदने के लिए
 लोगों की लाइन लगती है 
देखिये ,कैसे दिन आ रहे है 
लोग जेब कटवा कर भी मुस्करा रहे है 
जीवनशैली का ये परिवर्तन ,
हमे कहाँ से कहाँ ले जा रहा है 
मुझे आज फिर वो पुराना जमाना याद आरहा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

टॉवर एक की रंगीन किट्टी 
१ 
किट्टी टावर एक की ,करती है इम्प्रेस 
थीम रखी सबआएँगी ,पहन कलरफुल ड्रेस 
पहन कलरफुल ड्रेस ,रंग जो ज्यादा लावे
 प्राइस की हक़दार वही महिला कहलावे 
कह घोटू कविराय ,खेल कुछ ऐसा खेला 
होटल में लग गया ,कई रंगों का मेला 
२ 
वैसे ही सब सुंदरी ,एक से बढ़ कर एक 
आयी बन कर कलरफुल पहने रंग अनेक 
पहने रंग अनेक ,लगी जब वे सब सजने 
चूड़ी,कुर्ती पहन ,लिपस्टिक से लब रंगने 
घोटू बोले ,हाथों में  मेंहदी  रचवालो 
और शरमा कर,गाल गुलाबी ,निज कर डालो 
३ 
घोटू पत्नी ने लगा ,रंगों का अम्बार 
कहा आत्मविश्वास से,जीतूंगी इस बार 
जीतूंगी इस बार ,देख कर अटल इरादा 
पत्नी के उन्नीस रंग थे सबसे ज्यादा 
रंग बीसवां था रंगीन मिजाजी वाला 
और इक्कीसवाँ रंग ,चढ़ा प्रीतम का प्यारा 

घोटू 

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

नदिया  यूं बोली सागर से 

तुम्हारा विशाल वक्षस्थल ,देख उछलती लहरें मन में 
इतनी थी मैं हुई बावरी, दौड़ी  आयी तुमसे मिलने 
तुम्हारा पहला चुम्बन जब ,लगा मुझे कुछ खारा खारा 
मैंने सोचा ,हो जाओगे ,मीठे हो जब मिलन  हमारा  
अपना सब मीठापन लेकर ,रोज आई  मैं पास तुम्हारे 
लेकिन तुम बिलकुल ना बदले ,रहे वही  खारे  के खारे  
तुमने तप कर ,बादल बन कर ,उड़ा दिया मीठापन सारा 
जन और जगती के जीवन हित ,देखा जब ये त्याग तुम्हारा 
तमने अपना स्वार्थ न देखा ,किया समर्पित अपना जीवन  
देख परोपकारी अंतर्मन ,भूल गयी मैं सब  खारापन 
इसीलिए बस दौड़ी दौड़ी ,तुमसे मिलने भाग रही हूँ 
पूर्ण रूप से ,तुम्हे समर्पित , निज मीठापन  त्याग रही हूँ 

घोटू 
सुख दुःख बाँटें 

नहीं हमको सिर्फ मीठा सुहाता ,सिर्फ हम नमकीन  खा  सकते नहीं 
मीठे और नमकीन का जब मेल हो,मज़ा आता खाने का ,तब ही सही 
वैसे जीवन में किसी को सुख सिरफ ,और किसी को दुःख सिरफ मिलते रहे 
रहे कोई मुश्किलों से जूझता ,फूल खुशियों के कहीं खिलते रहें 
अपने सुख ,दुःख और समस्याएं सभी ,मीठे और नमकीन सी हम बाँटले 
मुश्किलों के सारे दिन काट जायेंगें , जिंदगी का मज़ा मिल कर साथ  लें 

घोटू  
खारा समंदर कर दिया 

नदियों ने तो मीठा जल ही ,समंदर में भरा था,
उसका मीठापन सभी पर गुम हुआ जाने कहाँ 
कभी मंथन करने पर जो ,उगला करता रत्न था ,
बात ऐसी क्या हुई अब पहले जैसा ना  रहा 
हंस के मिल के ,संग रहती ,सब की सब जो मछलियां ,
हुई एक दूजे की दुश्मन ,भय था अंदर भर दिया 
इस तरह से अहम जागा ,मित्रता गायब हुई  ,
आपसी टकराव ने ,खारा समंदर  कर दिया 

घोटू 

रविवार, 2 जुलाई 2017

दामाद का दर्द 

अपनी पत्नी से परेशान 
एक शादीशुदा  नौजवान 
जब अपनी पत्नी की ज्यादतियों को,
झेल नहीं पाया 
तो अपने ससुर के पास जाकर,
अपना दुखड़ा  रोते हुये  गिड़गिड़ाया 
ससुरजी ,आपने भी बनाया है क्या आइटम 
जो मेरा ही सर खाती  रहती है हरदम 
छोटी छोटी बात पर झगड़ती रहती है 
मेरे माबाप से लड़ती रहती है 
घर को परेशानियों से भर दिया है 
मेरा जीना दूभर कर दिया है 
हो गया मेरा बड़ा गर्क है 
मेरा जीवन बन गया नर्क है 
आप प्लीज ,अपनी बेटी को समझाओ ,
और दे दो थोड़ा ज्ञान 
मुझे चैन से जीने दे ,ना करे परेशान 
जमाई की बात सुन कर ,
ससुरजी सेंटीमेंटल होने लगे 
और दामाद के आगे ,
अपना दुखड़ा रोने लगे 
बोले बेटा ,मै तेरा दर्द समझ सकता हूँ 
क्योंकि मै भी इसी पीड़ा में जलता हूँ 
मुझे तेरी पीड़ाओं का ज्ञान है 
क्योंकि जिस कपडे के टुकड़े तू परेशान है 
पिछले कई वर्षों से मेरे पास ,
उस कपडे का पूरे का पूरा थान है 
अब जैसे भी है,काम चलाले 
जैसे मैंने निभाई  है ,तू भी निभाले 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुढ़ापे की एक शाम ,ऐसे भी कट जाती है 

दो वरिष्ठ वृद्धजन ,
अपनी तन्हाई की शामे ,
इस तरह बिताते है 
शहर की व्यस्त सड़क पर ,
फैशन गारमेंट की दूकान के सामने,
सीढ़ियों पर बैठ कर ,
इधर उधर नज़रें घुमाते है 
और घंटो बतियाते है 
उनका यह अड्डा और ये दिनचर्या ,
यार दोस्तों में चर्चा का विषय बन गया है 
आखिर  एक दिन हमने पूछ ही लिया ,
रोज घंटो करते ,इतनी बातें होती ही क्या है 
उनमे से एक मुस्कराया और बोला 
यार हम तो वहां बैठ कर,नज़रें सेकते है 
आती जाती हुई महिलाओं को देखते है 
अगर महिला जवान हुई ,
तो उसके रूप की चर्चा करते है 
और उसकी हुलिया और चालढाल ,
फिल्म की किस हीरोइन से मिलती जुलती है ,
यही सोचा करते है 
अगर वो महिला,प्रोढ़ा या ढलती उमर की हुई,
तो गौर से निहारते है उसकी हालत 
और खंडहर को देख कर ,
ये अंदाज लगाने की कोशिश करते है  
कि अपने पूर्ण वैभव के दिनों में,
कितनी बुलंद रही  होगी वह इमारत 
और अगर वो बढ़ती हुई उमर की ,
कमसिन किशोरी हुई तो कयास लगाते है ,
कि बड़ी होकर वो कैसी नज़र आएगी 
अपने हुस्न के जादू से कितनो पर सितम ढायेगी 
यही नहीं ,दूकान में और भी ,
कितनी ही जोड़ियां आती जाती है 
उनकी गतिविधियां ,
उनके पारिवारिक जीवन के बारे में ,
काफी कुछ बतलाती है 
पति पत्नी की जोड़ी  दूकान के अंदर ,
साथ साथ तो जाती है 
पर थोड़ी देर बाद पति,
 बाहर निकल कर ,टहलने लगता है 
औरपत्नी अंदर ही रह जाती है
इससे पता लगता है मियां बीबी में ,
थोड़ी कम ही बनती है 
और अपनी अपनी पसंद को लेकर ,
दोनों में  में काफी ठनती है 
और कुछ पति पत्नी जब  बाहर आते है और 
पति का हाथ, शॉपिंग बैग्स से होता है लदा 
इससे पता लग जाता है ,
कि उनका वैवाहिक जीवन  
खुशियों से भरा रहेगा सदा 
बस यही हमारा शगल है 
मस्ती से वक़्त जाता गुजर है 
इन सब चीजों पर चर्चाएं ,
हमारे मन को बहलाती है 
और बुढ़ापे की एक और शाम ,
मस्ती से  कट जाती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 28 जून 2017

एक दिन तुम ना रहोगे 


कब तलक यूं ही घुटोगे और आंसूं बन बहोगे 
एक दिन मै ना रहूँगा ,एक दिन तुम ना रहोगे 

हर इमारत की बुलंदी ,चार दिन की चांदनी है 
जहाँ पर रौनक कभी थी ,आज स्मारक बनी है 
पुराने महलों ,किलों से ,खंडहर बन कर ढ़होगे 
एक दिन मै ना रहूँगा,एक दिन तुम ना रहोगे 

तुमने तिनका तिनका चुन कर ,घोंसला था जो बनाया 
तिनका तिनका हो गया वो ,चार दिन बस  काम आया 
जाएंगे उड़ सब परिंदे ,  तुम बिलखते ही रहोगे 
एक दिन मै ना रहूंगा ,एक दिन तुम ना रहोगे 

वक़्त किसके पास है,कर कोई रहता व्यस्त हरदम 
सभी पीड़ित,व्यथित ,चिंतित,कोई ज्यादा तो कोई कम 
नहीं कोई भी सुनेगा ,वेदना किससे  कहोगे 
एक दिन मै ना रहूँगा,एक दिन तुम ना रहोगे 

बहुत गर्वित हो रहे हो,कर कमाई ढेर सारी 
लाख तुम करलो जतन पर जाओगे बस हाथ खाली 
बन के एक तस्वीर,कुछ दिन,दीवारों पर ,टंग रहोगे 
एक दिन मै ना रहूँगा,एक दिन तुम ना रहोगे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खोट 

खोट थोड़ी हवाओं में है ,खोट कुछ मौसम में है 
खोट थोड़ी तुम में भी है, खोट थोड़ी हम में है 

दूसरों की कमियां ही हम सदा रहते  आंकते 
फटे अपने  गरेबाँ में ,कभी भी ना झांकते 
नाच ना आता ,बताते ,खोट कुछ आंगन में है 
खोट थोड़ी तुम में हैं और खोट थोड़ी हम में है 

खोट आयी दूध में तो ,फट गया ,छेना बना 
विचारों में खोट आयी ,हो गया मन अनमना 
घटा घिर यदि ना बरसती ,खोट क्या सावन में है 
खोट थोड़ी तुम में है और खोट थोड़ी हम में है 

जिंदगी में कुछ गलत हो और बुरे हो हाल गर 
दोष मढ़ते कुंडली पर ,और ग्रहों की चाल पर 
जो दहेज़ लाइ नहीं तो ,खोट क्या दुल्हन में है 
खोट थोड़ी तुम में है और खोट थोड़ी हम में है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पियक्कड़ 


नहीं अप्सरा   बूढ़ी  होती ,   हूरें  रहे  जवान 
वृद्ध देवता कभी न होते ,करे सोमरस पान 
दवा और दारू से होते ,सारे मर्ज  सही है 
कभी कभी दो घूँट चढालो,इसमें हर्ज नहीं है 
भूलो दुनिया भर के सब गम और चिंताएं सारी 
डूब जाओ मस्ती में शामे हो गुलजार तुम्हारी 
कोई इसको मदिरा कहता ,कोई कहता हाला 
कोई घर के अंदर पीता  ,कोई जा मधुशाला 
चाहे देशी हो कि विदेशी ,मज़ा सभी में आता 
हम अपने पैसे की पीते ,कोई का क्या जाता  
हम दारू के सच्चे प्रेमी ,कोई से न डरे है 
फिर क्यों हमें पियक्कड़ कह कर सब बदनाम करे है 

घोटू 

शुक्रवार, 23 जून 2017

मीरा और  गोविन्द 
ए  मीरा अब छोड़  दे,जपना गोविंद नाम 
गोविंद तो कोविंद हुए ,कृष्ण हो गये राम 
कृष्ण हो गए राम ,देख कलयुग की माया 
राष्ट्रपति बनने का  उनने  दांव   लगाया 
कोविंद ,गोविंद भेद न जाने हृदय अधीरा 
कह 'घोटू' कवि ,पीछे पीछे  दौड़ी  मीरा 
२ 
आठ रानियों के पति ,फिर भी ना संतोष 
बनने को पति राष्ट्र का ,दिखा रहे है जोश
दिखा रहे है जोश ,प्रेम में  जिनके पागल 
बनी दीवानी ,मीरा ,भटकी ,जंगल जंगल 
प्रेम दिवानी मीरा ने पर आस न छोड़ी 
भाग रही है उनके पीछे  ,दौड़ी  दौड़ी 

घोटू  
 

सोमवार, 19 जून 2017

फादर डे 

हमारा बेटा ,अपनी व्यस्तता के कारण ,
फादर डे पर मिलने तो नहीं आया 
पर याद रख के एक पुष्पगुच्छ भिजवाया 
हमने फोन किया बरखुरदार 
धन्यवाद,भेजने को ये उपहार 
और दिखाने को अपना प्यार 
साल में एक बार जो इस तरह ,
फादर डे  मना लोगे
एक पुष्पगुच्छ भेज कर ,
अपना कर्तव्य निभा लोगे 
क्या इससे ही अपना पितृऋण चूका लोगे 
तुम्हारी माँ ,तुम्हारे इस व्यवहार से ,
कितना दुखी होती है 
छुप छुप कर रोती  है 
तुम्हे क्या बतलायें ,बुढ़ापे में ,माँ बाप को,
संतान के प्यार और सहारे की 
कितनी जरूरत होती है 
बेटे का जबाब आया 
पापा,हमने एक दिन ही सही ,
फादर डे तो मनाया 
पर क्या कभी आपने 'सन डे 'मनाया 
हमने  कहा बेटा ,हम सप्ताह में एक बार ,
और साल में बावन बार ,'सन डे 'मनाते है 
तुम्हे मिस करते है ,मन को बहलाते है 
और रिटायरमेंट के बाद तो,
हमारा हर दिन ही 'सन डे 'जैसा है 
हर माँ बाप के दिल में ,
बचपन से लेकर अंत तक ,
अपनी संतान के प्रति प्यार ,
भरा रहता  हमेशा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यादें पुरानी

यादें पुरानी कितनी ,जब साथ दौड़ती है 
तुम लाख  करो कोशिश,पीछा न छोड़ती है 
रातों को जब अचानक ,जाती है आँख खुल तो,
फिर सोने नहीं देती,इतना  झंझोड़ती  है 

कुछ घड़ियाँ वो ख़ुशी की ,कुछ पल पुराने गम के,
जो दबे ,छुप के  रहते , कोने में किसी  मन के 
कुछ घाव  पुराने से ,हो जाते फिर हरे  है 
जिनकी कसक से आंसू ,आखों में फिर भरें है 
रह रह के वो हमारे ,मन को मरोड़ती है 
तुम लाख करो कोशिश,पीछा न छोड़ती है 

 वो प्यार पहला पहला ,जब नज़र लड़ गयी थी 
रातों को जागने की , आदत सी   पड़  गयी थी 
 वो उनका रूठ जाना ,वो दिल का टूट जाना 
वो चुपके अकेले में ,आंसू का   फिर  बहाना 
कोई की बेवफाई ,जब दिल को  तोड़ती है 
तुम लाख करो कोशिश ,पीछा न छोड़ती है 

वो भूल जवानी की ,रो रो के फिर संभलना 
बंधन में बंध किसी संग ,फिर साथ साथ चलना 
बच्चों की करना शादी,और उनके घर बसाना 
फिर सारे परिंदों का ,पिंजरे को छोड़  जाना 
  तनहाई बुढ़ापे में , मन को कचोटती है 
तुम लाख करो कोशिश,पीछा न छोड़ती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
लिमिट में प्यार करो बीबी से 

अपनी बीबी से करो प्यार मगर बस इतना 
कि जो आसानी से पच जाये केवल बस उतना 
मिठाई ही मिठाई जो ,मिले  रोज खाने को 
विरक्ति मीठे से होती ,मिठाई के दीवाने को 
इस तरह प्यार का जो 'ओवर डोज' मिलता हो 
बिना मांगे ही अगर  रोज रोज  मिलता  हो 
सोच कर ये कि इससे बीबी रीझ जाती है 
हक़ीक़त ये है इससे बीबी खीझ  जाती  है 
इसलिए ढेर सारा प्यार नहीं बरसाओ 
थोड़ा सा प्यार करो,थोड़ा थोड़ा तरसाओ 
हमेशा पत्नी का पल्लू पकड़ के मत बैठो 
लिमिट में प्यार करो,थोड़ा झगड़ो और ऐंठो 
मिठाई साथ में ,नमकीन भी ,जरूरी है 
बढाती प्यार की है प्यास ,कभी दूरी है 
सताओ ऐसे ,उसके मन में आग लग जाए 
प्यार पाने उसके मन में तलब  जग जाए 
आग हो दोनों तरफ ,मज़ा जलने में  आता 
चाह हो दोनों तरफ,मज़ा मिलने में  आता 

मदन मोहन बाहत'घोटू' 
पिताजी आप अच्छे थे 

संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना 
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना 
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये 
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये 
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम 
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम 
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे 
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे 
तुम्हारे रौब डर  से ही,सीख पाए हम अनुशासन 
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन 
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे 
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तीन चौके 
१ 
अभी तो झेलना हमको, कई  तूफ़ान  बाकी  है 
चुकाने लोगों के अब तक,किये अहसान बाकी है 
जिन्होंने पीठ के पीछे,किया है  वार चुपके से ,
बहुत से ऐसे मित्रों की ,अभी पहचान  बाकी  है 
२ 
बड़े स्वादिष्ट होते ,दिल ,सभी का लूटते लड्डू 
अगर पुरसे हो थाली में,नहीं फिर  छूटते  लड्डू 
ख़ुशी,शादी के मौके पर ,सभी में बांटे जाते है,
हसीना कोई मुस्काती  ,तो मन में फूटते लड्डू 
३ 
अभी तक ये मेरी समझ में ये न आया 
 मेरी पोस्ट पर तुमने ,'थम्प्सअप 'लगाया     
ये मेरे विचारों की  तारीफ़ की  है ,
या फिर तुमने मुझको ,अंगूठा दिखाया 

घोटू 

गुरुवार, 15 जून 2017

रंग भेद की दरार

एक गेंहूं है ,एक चावल है ,
दोनों ही सबका पेट भर रहे है
दोनों ही अन्न है ,
पर लोग उनमे अंतर कर रहे है
गेंहूं का रंग भूरा है और चावल सफ़ेद है
इसलिए गेंहूं के साथ ,हमेशा होता रंगभेद है
वह बेचारा गौरवर्णी नहीं,
इसलिए हमेशा उसका दलन किया जाता है
उसे पीसा जाता है ,
उसका उत्पीड़न किया जाता है
और जब वो पिस कर आटे या मैदा जैसा ,
सफ़ेद नहीं हो जाता है
तब ही वो खाने के काम में आता है
हिन्दुस्थान में उससे रोटी,पूरी,परांठा ,
और हलवा बनाते है
विदेशी उसकी ब्रेड ,नूडल ,पिज़ा और पास्ता ,
बना कर खाते है
गेंहू ,अपना आकार खोकर  ,
हमेशा देते है अपना बलिदान
और सबका पेट भरते है ,
सेवा भावी है महान
पर फिर भी पूजा में उसे कलश के नीचे बिछाते है
और गौरवर्णी चावल को ,प्रभु पर चढ़ाते है
गेहूं पिस कर होता है क्षत विक्षत
और चावल रहता है अक्षत
गोरा,सफ़ेद ,सुन्दर,
पूरा का पूरा ही  पकाया जाता है
कभी पुलाव,कभी बिरयानी ,और अक्सर,
सादा  ही खाया जाता है
खिली खिली सी उसकी रंगत ,
और उसकी मुलायम सी सूरत
अनोखा स्वाद देती है ,जो मन को भाता है
और जब उसे दूध में पकाते है ,
तो खीर बन कर चौगुना स्वाद आता है
कभी मीठे केसरी भात ,
या कभी खिचड़ी बना कर उसे जाता है परोसा
तो कभी उससे इडली बनती है
और कभी बनता है डोसा
मस्तक पर तिलक लगा कर अक्षत से सजाते है
चावल के खाने को राजसी बतलाते है
देख कर के इस तरह का रंग भेद
और पक्षपाती व्यवहार
गेंहूं के मन में पद गयी है दरार
जिसका असर बाहर से भी
,उसके हर दाने पर है दिखता
जाने कब जायेगी ,हमारे दिलों से,
रंगभेद की ये मानसिकता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

     बच्चों को बचपन जीने दो

आज बच्चों की ये हालत हो गयी है
बचपने की मौज मस्ती खो गयी है
कॉम्पिटिशन से डरे,सकुचाये मन में
आज बच्चे ,जी रहे है ,टेंशन में
माँ पिता भी जाने क्या क्या सोचते है
अपने सपने,बच्चो पर वो थोपते है
कार्बाइड से पके ज्यों आम कच्चा
ले रहा इस तरह कोचिंग हरेक बच्चा
कभी हमने भी तो था बचपना जिया
माँ की छाती  से लगे थे ,दूध पिया
बोतलों का उन दिनों  फैशन नहीं था
मातृत्व से बड़ा तब  यौवन  नहीं था
लोरियां सुनते थे आती नींद तब थी
पालने में झूलने की उमर  जब थी
उन दिनों ना क्रेच थे ना नर्सरी थी
घर की रौनक ,भाई बहनो से भरी थी
 जिद पे आते ,रखते थे सबको नचा के
खेलते थे ,झुनझुना ,खुश हो बजा के
 सीधासादा  ,प्यारा सा ,बचपन वही था
हाथ में बच्चों के  मोबाईल नहीं था
बड़े हो स्कूल जब जाने लगे हम
गिल्ली डंडा और कबड्डी ,खेले हरदम
स्कूलों में ही सिर्फ करते थे पढाई
नहीं कोचिंग या कोई ट्यूशन लगाईं
फर्क इतना आगया हालात में अब
एक मोबाईल सभी के हाथ में अब
उसी पर ऊँगली घुमाकर व्यस्त रहता
पढाई के बोझ से वो त्रस्त रहता
कॉम्पिटिशन भूत सर पर चढ़ रहा है
खेलता ना,सिर्फ बच्चा पढ़ रहा है
डॉक्टर ,इंजीनियर सब चाहे बनना
इसलिए दिनरात पड़ता उन्हें खटना
और फिर भी कितने है जो चूक जाते
उनके देखे ,सभी सपने ,टूट जाते
और 'डिप्रेशन' उन्हें फील सालता है
मगर इसमें उनकी होती क्या खता है
सब के सब उत्तीर्ण तो हो नहीं सकते
बोझ क्षमता से अधिक ढो नहीं सकते
अतः बेहतर,नहीं थोंपे खुद को उन पर
मन मुताबिक़ ,बनाने दे ,अपना फ्यूचर
बोझ ज्यादा ,पढाई का ,नहीं लादें
जीने उनको ,प्रेम से निज बचपना दे
क्योंकि बचपन ,नहीं आता लौट कर है
जिंदगी की,सबसे प्यारी ,ये उमर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


सभी को अपनी पड़ी है
सभी को अपनी पड़ी है ,
कौन किसको पूछता है
पालने को पेट अपना,
हर एक बंदा जूझता है
कोई जुट कर जिंदगी भर ,
है सभी साधन जुटाता
कोई पाता विरासत में ,
मौज जीवन भर मनाता
कोई जीवन काटता है,
कोई जीवन जी रहा है
कोई रहता है चहकता ,
कोई आंसू पी रहा है
अपनी अपनी जिंदगी का,
नज़रिया सबका अलग है
कोई तो है मस्त मौला ,
कोई चौकन्ना,सजग है
कोई जाता मंदिरों में ,
लूटने दौलत धरम की
ये जनम तो जी न पाता ,
सोचता अगले जनम की
गंगाजी में लगा डुबकी,
पाप कोई धो रहा है
और वो इस हड़बड़ी में,
आज अपना खो रहा है
कोई औरों के फटे में ,
मज़ा लेकर झांकता है
अपनी कमियों को भुलाकर ,
दूसरों की ,आंकता है
नहीं नियति बदल सकती ,
भाग्य के आधीन सब है
उस तरह से नाचते है ,
नचाता जिस तरह रब है
बहा कर अपना पसीना ,
तुमने जो दौलत कमाई
वो भला किस कामकी जो ,
काम तुम्हारे न आयी
इसलिए अपनी कमाई,
का स्वयं उपभोग कर लो
जिंदगी जितनी बची है,
उतने दिन तक मौज कर लो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नयन

नयन जिनमे बसते है सपने सुनहरे ,
नयन मिलते ,परिणिती होती मिलन में
नयन जो कि चमकते है ,हर ख़ुशी में,
नयन जो कि छलकते है हरएक गम में
नयन जिनमे भरे है  आंसूं  हजारों
नयन जो कि नींद के काफी सगे  है
नयन कजरारे सदा मन मोहते है ,
नयन जिससे दुनिया ये सुन्दर लगे है
नयन जिनमे छवि जब बसती किसी की ,
प्रेम की अनुभूति का आनंद होता
नयन खुलते ,जागृत होता है जीवन ,
नयन होते बंद,जीवन  अंत होता
नयन जो की आइना है भावना का,
नयन का रंग क्रोध में है लाल होता
नयनो  में छाती गुलाबी डोरियाँ जब ,
प्रेमियों का मिलन और अभिसार होता
नयन जब निहारते है ,अपलक तो,
बने भँवरे,रूप का रसपान करते
नयन आधे बंद ,करते सोच चिंतन,
बंद होकर ,योग करते,ध्यान धरते
नयन से ही किसी की पहचान होती ,
नयन से ही हम किसी को आंकते है
नयन नटखट ,बावरे शैतान भी है,
चुप न रहते ,सदा इत उत झांकते है
नयन खोये खोये रहते प्यार में है,
नयन रोये रोये रहते , रार में है
नयन से ही हमें गोचर है सभी कुछ,
प्रभु का वरदान ये संसार  में है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 13 जून 2017

टमाटर

टमाटर महान होता है
सब्जियों की शान होता है
यह एक बहु उपयोगी चीज है
जो भोजन को बनाती लजीज है
'सेंडविच' में दबाकर खाया जाता है
पीज़ा पर भी बिछाया जाता है
सभी प्रेम से पीते टमाटर का सूप है
सेहत के लिए अच्छा और स्वाद अनूप है
टमाटर की ग्रेवी के बिना ,
सब्जियों में स्वाद नहीं आता है
और टमाटर का ज्यूस भी,
काफी पसंद किया जाता है
इसके रस में ,'वोदका 'नामक मदिरा मिला ,
'ब्लडी मेरी' नामक कॉकटेल प्रेम से पी जाती है
और सुन्दर सुन्दर रक्तिम कपोलों को ,
लाल टमाटर जैसे गालों की तुलना दी जाती है
पर ऐसे गाल ,अक्सर ठन्डे मुल्कों के ,
गोर लोगों के ही पाए जाते है
पर हम बचपन का अपना अनुभव सुनाते है
जब हमारी गलती पर ,मास्टरजी या पिताजी,
जब गालों पर जोरदार चपत लगाते थे
हमारे गाल भी टमाटर जैसे लाल हो जाते थे
हनुमान जी भी,बचपन में ,उगते सूरज को ,
टमाटर समझ कर,खाने को दौड़े थे
दुनिया में त्राहि त्राहि मच गयी थी,और
देवताओं की विनती पर बड़ी मुश्किल से छोड़े थे
टमाटर ,कराता है शादी का अहसास
क्योंकि शादी के बाद ही मिलती है सास
और टमाटर होता है ,तभी सॉस बन पाती है
बड़ी चटपटी और मजेदार होती है और ,
समोसे और पकोड़ों का स्वाद बढाती है
जैसे हम ,एक दूसरे पर रंग फेंक कर ,
होली का त्योंहार मनाते है
स्पेन देश में ,'टोमेटिनो' उत्सव में ,
एक दूसरे पर पके टमाटर फेंके जाते है
टमाटर की उपयोगिता ,तब भी नहीं घटती ,
जब कि यह सड़ जाता है
विपक्षी नेताओं के भाषण के समय ,
विरोध प्रदर्शन के लिए ,इसे फेंका जाता है
टमाटर होते बड़े मिलनसार है
लगभग सभी सब्जियों से इनका दोस्ताना व्यवहार है
सच तो ये है कि टमाटर के बिना ,
सब्जियों में स्वाद नहीं आता है
इसीलिए टमाटर ,सब्जियों का राजा कहलाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 8 जून 2017

तुलसीदल 

कल मैं कुछ लाचार और बदहाल लोगों से मिला ,
दोस्त मेरे सब के सब ,पागल मुझे  कहने लगे 
माटी,माटी ठीक थी और पानी,पानी ठीक था ,
मिले दोनों जब तो सब ,दलदल उसे कहने लगे 
गंदा नाला  बहते बहते  ,जा के गंगा से मिला,
बदली किस्मत ,लोग गंगाजल  उसे कहने लगे 
काट कर जंगल उगाली ,ऊंची अट्टालिकाएं,
और फिर कांक्रीट का ,जंगल  उसे कहने लगे 
मीठा जल नदियों का खारे समन्दर से मिला पर,
धूप में तप जब उड़ा ,बादल  उसे कहने  लगे 
लड्डू का परशाद सारा ,पुजारी  चट कर गए,
प्रभु के हित जो बचा ,तुलसीदल उसे कहने लगे 

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

बुधवार, 7 जून 2017

नयन की डोर 

नयन जिनमे बसते है सपने सुनहरे ,
नयन जो की डोर बांधे है मिलन में
नयन जो कि  चमकते है हर ख़ुशी में ,
नयन जो कि  छलकते है हरेक गम में 
नयन जिनमे कि भरा है अश्रु का जल ,
नयन जो कि नींद के  लगते  सगे  है 
नयन जो सज ,रूप करते चौगुना है,
नयन जिनसे दुनिया ये सुन्दर लगे है 
नयन जिनमे छवि जब बसती किसीकी ,
प्रेम की अनुभूति का आनंद  होता 
नयन खुलते ,जागृत होता है जीवन,
नयन होते बंद ,जीवन अंत  होता 
नयन जो कि भावना का आइना है,
नयन का रंग क्रोध में है लाल होता 
नयन में छाती गुलाबी डोरियां जब,
प्रेमियों का मिलन औरअभिसार होता 
नयन जब निहारते है अपलक तो,
बने भँवरे ,रूप का रसपान  करते 
नयन आधे बंद ,करते सोच ,चिन्तन ,
बंद होकर ,योग करते,ध्यान धरते 
नयन जब झुकते ,समझलो भरी हामी,
अधमुंधे से नयन ,समझो छायी मस्ती 
छवि जिसकी बसा करती है नयन में ,
चुरा लेती हृदय ,ऐसी दिल में बसती 
चुराते है हम कभी नयना  किसी से,
दिखाते है हम कभी नयना किसी को 
मिलाते है जब नयन हम जो किसी से 
कोई अच्छा बहुत लगने लगता जी को 
नयन से ही किसी की पहचान होती ,
नयन से ही हम किसी को आंकते है 
नयन नटखट ,बावरे  शैतान भी है,
चुप न रहते ,सदा  इत उत झांकते है  
नयन खोये खोये रहते प्यार में है ,
नयन रोये रोये रहते   रार में है 
नयन से ही हमे  गोचर है सभी सुख ,
प्रभु का वरदान ये संसार में  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जी का कमाल 

हमने उनसे पूछा कुछ तो उनने हमसे ' जी' कहा 
हमने कुछ माँगा तो जैसी आपकी मरजी   कहा 
उनकी इस छोटीसी 'जी' ने ,ऐसा जी में घर किया 
हमको एक उत्साह से और एनर्जी से  भर दिया 
झट से राजी हो गए हम ,भुगतते है  उसका फल 
उनकी 'हाँ जी ,हाँ जी'करते कटते है दिन आजकल

घोटू  
बीबी लगती है परी 

उमर ने ढाया कहर ,ना  रही  काया  छरहरी 
मगर बीबी सबको अपनी ,हमेशा लगती परी 
क्योंकि वो ही इस उमर में,घास तुमको डालती 
बिमारी में और मुश्किल में तुम्हे  संभालती 
सर जो दुखता ,तो दबाती,बाम सर पर मल तुम्हे 
चाहते जब ,चाय संग ,देती पकोड़े  तल  तुम्हे 
पीठ खुजलाती तुम्हारी और दबाती पैर  है 
मंदिरों में पाठ  पूजा ,कर मनाती खैर है  
तुम्हारे खर्राटों में भी ,ठीक से सो पाए जो 
तुम्हारी तकलीफ ,पीड़ा में बहुत घबराये जो 
हमेशा जो चाहती है ,तुम्हारी लम्बी उमर 
रहती पूरे दिवस भूखी,बरत करवा चौथ कर 
टाइम टाइम पर दवाई की ,वो दिलाती याद है 
जिसके कारण छाई खुशियां सारा घर आबाद है  
काम घर के करे सारे ,चाहे कितना भी थके 
सारे रीति रिवाजों का ,ध्यान जो पूरा रखे 
जवानी में काम में हम सदा रहते व्यस्त थे 
याद करिये ,बीबी को हम ,देते कितना वक़्त थे 
सिर्फ आकर बुढ़ापे में ,होती ऐसी बात है 
मियां बीबी साथ में रहते सदा ,दिन रात है 
उसकी सब अच्छाइयों का ,हमें होता भान है 
पूर्ण जो तुम पर समर्पित बीबी गुण की खान है 
पसंदीदा खाना मिलता ,समय पर,उसकी वजह 
इस उमर मे हम हैं  उस पर आश्रित ,पूरी तरह 
भले उसको अब न भाते ,जवानी के चोंचले 
मगर फिर भी बुलंदी पर रहते उसके हौंसले 
होश अब भी ,उड़ा देती, उसकी नज़रें मदभरी 
इसलिए ही बीबी अपनी ,सबको लगती है परी 

मदन मोहन बाहेती' 'घोटू'
छेड़छाड़  

आज सवेरे छेड़छाड़ का ,
एक नया मामला नज़र आया 
लड़कियों के कॉलेज आगे ,
एक काला सा रोमियो ,बादल था मंडराया 
आतीजाती लड़कियों पर ,
छींटाकशी  रहा था कर  
लड़कियां भाग रही थी ,
दुपट्टे से छुपा कर ,अपना सर 
पर वो अपनी हरकत से ,
बाज नहीं आ रहा था 
कभी आवाजे निकालता था ,
कभी खीसें निपोर ,दांत चमका रहा था 
तभी 'रोमियो स्कवाड 'की इंस्पेक्टर 
हवा आयी और ले गयी ,
बादल को अपने साथ पकड़ कर 
समझ में आया आज है 
कैसा  रोमियो मुक्त ,योगी का राज है 

घोटू 

मंगलवार, 6 जून 2017

यूं ही उहापोह में 

उलझते ही रहे हम आरोह और अवरोह में 
जिंदगी हमने बिता दी,यूं ही उहा पोह में 

दरअसल क्या चाहिये थी नहीं खुद को भी खबर 
कहाँ जाना है हमें और कहाँ तक का है सफर 
डगर भी अनजान थी और हम भटकते ही रहे ,
कभी इसकी टोह में और कभी उसकी टोह में 
जिंदगी हमने बिता दी ,यूं ही उहापोह  में 

दोस्त कोई ,कोई दुश्मन ,लोग कितने ही मिले 
दिया कोई ने सहारा ,किसी ने दी मुश्किलें 
हाल कोई ने न पूछा ,नहीं जानी खैरियत,
उमर सारी ,हम तड़फते रहे जिनके मोह में 
जिंदगी हमने बिता दी ,यूं ही उहापोह में 

बेकरारी में दुखी हो, दिन गुजरते ही रहे 
रोज हम जीते रहे और रोज ही मरते रहे 
ऐसी स्थिरप्रज्ञ अब हालत हमारी होगयी ,
अब मिलन में सुख न मिलता,और गम न विछोह में 
जिंदगी हमने बिता दे ,यूं ही उहापोह में 

घोटू 
आशिक़ी का मजा 


ठीक से ना देख पाते  ,नज़र भी कमजोर  है 
अस्थि पंजर हुए ढीले ,नहीं तन में जोर है 
खाली बरतन  की तरह हम खूब करते शोर है
दिल की इस दीवानगी का मगर आलम और है 
देख कर के हुस्न को बन जाता आदमखोर है 
हमेशा ये दिल कमीना ,मांगता कुछ 'मोर ' है 
शाम ढलती है ,उमर का ,आखिरी ये छोर है 
बुढ़ापे की आशिकी का ,मज़ा ही कुछ और है 

घोटू 

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