बीते हुए दिन
उन दिनों सीनियर सिटिज़न फोरम की
मीटिंग की तरह ,
लगा करती थी एक चौपाल
सब पूछते थे ,एक दूसरे का हाल
मिल बैठ कर ,हँसते गाते थे
एक दूसरे के सुख दुःख में काम आते थे
न कोई पॉलिटिक्स था ,न अहम का टकराव था
न कोई दुराव था ,न कोई छिपाव था
आपस में प्रेम था ,लगाव था
व्हाट्स एप ग्रुप की तरह ,
एक हुक्का होता था ,जिसे सब गुड़गुड़ाते थे
सब बराबर का मज़ा उठाते थे
न कोई छोटा था न कोई बड़ा था
न कोई एडमिन बनने का झगड़ा था
जिसके मन में जो आता था,,कह लेता था
किसी को बुरा लगता ,तो सह लेता था
हंसी ख़ुशी मेलजोल की आदत थी
बदले की भावनाएं नदारद थी
आज हम भूल वो ख़ुशी के पल गए है
क्या हमें नहीं लगता की हम बदल गए है
आज हम जो जी रहे है ,बोनस में मिली जिंदगी
क्यों न इसे गुजार दे ,हंसी ख़ुशी करके दिल्ल्गी
जिसके मन में जो आये,कहने दो
व्हाट्स एप पर जो संदेशे आते है,आते रहने दो
क्या पढ़ना ,क्या न पढ़ना ,ये आपकी चॉइस है
आपसी मतभेद मिटाने की काफी गुंजाईश है
जैसा चल रहा था ,वैसा चलने दो
ये आपका लगाया पौधा है,
इसे फूलने फलने दो
भुला दो कौन है एडमिन और कौन होगा एडमिन
प्लीज् ,लौटा दो ,वो ही बीते हुए दिन
घोटू
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2017) को "झूल रही हैं ममता-माया" (चर्चा अंक-2666) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
satik likha hai
जवाब देंहटाएं