पियक्कड़
नहीं अप्सरा बूढ़ी होती , हूरें रहे जवान
वृद्ध देवता कभी न होते ,करे सोमरस पान
दवा और दारू से होते ,सारे मर्ज सही है
कभी कभी दो घूँट चढालो,इसमें हर्ज नहीं है
भूलो दुनिया भर के सब गम और चिंताएं सारी
डूब जाओ मस्ती में शामे हो गुलजार तुम्हारी
कोई इसको मदिरा कहता ,कोई कहता हाला
कोई घर के अंदर पीता ,कोई जा मधुशाला
चाहे देशी हो कि विदेशी ,मज़ा सभी में आता
हम अपने पैसे की पीते ,कोई का क्या जाता
हम दारू के सच्चे प्रेमी ,कोई से न डरे है
फिर क्यों हमें पियक्कड़ कह कर सब बदनाम करे है
घोटू
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