तुलसीदल
कल मैं कुछ लाचार और बदहाल लोगों से मिला ,
दोस्त मेरे सब के सब ,पागल मुझे कहने लगे
माटी,माटी ठीक थी और पानी,पानी ठीक था ,
मिले दोनों जब तो सब ,दलदल उसे कहने लगे
गंदा नाला बहते बहते ,जा के गंगा से मिला,
बदली किस्मत ,लोग गंगाजल उसे कहने लगे
काट कर जंगल उगाली ,ऊंची अट्टालिकाएं,
और फिर कांक्रीट का ,जंगल उसे कहने लगे
मीठा जल नदियों का खारे समन्दर से मिला पर,
धूप में तप जब उड़ा ,बादल उसे कहने लगे
लड्डू का परशाद सारा ,पुजारी चट कर गए,
प्रभु के हित जो बचा ,तुलसीदल उसे कहने लगे
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
बहुत खूब
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