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शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

 जाओ चाय बना कर लाओ 
 
बूढ़े बुढ़िया, मियां बीबी, बैठ बुढ़ापे में क्या करते 
तनहाई में गप्प मारते ,अपना वक्त गुजारा करते 
दुनिया भर की, इधर उधर की, बहुत ढेर सारी है बातें 
कई बार जागृत हो जाती, पिछली धुंधली धुंधली यादें
 मुझे देखने आए थे तुम ,पत्नी जी ने पूछा हंसकर 
ऐसा मुझ में क्या देखा था, जो तुम रीझ गए थे मुझ पर 
क्या वह मेरी रूप माधुरी थी या था वो खिलता चेहरा 
या मेरी मासूम निगाहें, जिन पर पड़ा लाज का पहरा 
या फिर मेरा खिलता यौवन,या मतवाली मुस्कुराहट थी 
चोरी-चोरी तुम्हें देखना या फिर मेरी घबराहट थी
कुछ तो था जो तुम सकुचाए,रहे देखते मुझे एकटक
बढ़ी हुई थी मेरी धड़कन, धड़क रहा मेरा दिल धक धक 
न तो बात की ना कुछ पूछा ना कुछ बोले नही कुछ कहा 
यूं ही फुसफुसा,मां कानों में, तुमने झट से कर दी थी हां 
मैं बोला सच कहती हो तुम,मै था बिल्कुल भोला भाला 
पहली बार किसी लड़की को पास देखकर था मतवाला
 यूं कॉलेज में ,यार दोस्त संग  हम लड़की छेड़ा करते थे 
लेकिन बात बिगड़ ना जाए ,हम घबराते और डरते थे 
पहली बार तुम्हें देखा था जीवन साथी चुनने खातिर 
 तुम सुंदर थी भोली भाली रूप तुम्हारा था ही कातिल 
तुम्हें देख कर परख रहा था ,पत्नी बनी लगोगी कैसी 
फिर तुम्हारी शर्माहट और सकुचाहटभी थी कुछ ऐसी 
तुम जो ट्रे में लिए चाय के ,प्याले आई थी घबराते 
 हाथों के कंपन के कारण, चाय भरे प्याले टकराते उनकी टनटन का वह मधु स्वर मेरे मन को रिझा गयाथा 
 दिया चाय का प्याला जिसमें अक्स तुम्हारा समा गया था
 यह प्यारा अंदाज तुम्हारा, लूट ले गया मेरा मन था पहली चुस्की नहीं चाय की,वह मेरा पहला चुंबन था फिर आगे क्या हुआ पता है तुमको और मालूम मुझे है
 पति पत्नी बन जीवन काटा,मस्ती की और लिऐ मजे हैं 
अपनी पहली मुलाकात को, एक बार फिर से दोहराओ
 वक्त हो गया, तलब लगी है जाओ चाय बना कर लाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 17 अगस्त 2021

शांति का अस्त्र  मोबाइल

याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
 बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में 
 पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम, तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
 
 दूर-दूर हम बैठे रहते ,
नहीं किसी से कुछ भी कहते 
अपने अपने मोबाइल से ,
हम दोनों ही चिपके रहते 
फुर्सत नहीं हमें की देखें 
एक दूजे को उठाकर नजरें 
अपनी अपनी ही दुनिया में ,
खोए रहते हम बेखबरे 
आपस में हम बात करें क्या
,कोई टॉपिक नजर ना आता 
 मेरा वक्त गुजर जाता है, 
वक्त तुम्हारा भी कट जाता 
 बात शुरू यदि कोई होती, 
तू तू मैं मैं बढ़ जाती है 
 मेरे हरेक काम में तुमको ,
कोई कमी नजर आती है 
इसीलिए शांति से जीने 
का पाया यह रस्ता सुंदर 
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,
मोबाइल से खेलो दिनभर 
यह तुम्हारी सुन लेता है ,
दो आदेश ,काम करता है 
उंगली से तुम इसे नचाती ,
चुप रहता, तुम से डरता है 
मैं ये सब ना कर सकता था
 इस कारण होता था झगड़ा 
हम तुम बहुत सुखी है जब से,
 हाथों में मोबाइल पकड़ा 
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,
टोका टाकी  मिट जाती है 
नोकझोंक सब बंद हो जाती,
 घर में शांति पसर जातीहै  
मौन भावना पर हो जाती,
रह जाती है दिल की दिल में 
तुम खुश अपने मोबाइल में, 
मैं कुछ अपने मोबाइल में

मदन मोहन बाहेती घोटू
शांति का अस्त्र  मोबाइल

याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
 बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में 
 पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम, 
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
 
 दूर-दूर हम बैठे रहते ,नहीं किसी से कुछ भी कहते अपने अपने मोबाइल से ,हम दोनों ही चिपके रहते फुर्सत नहीं हमें की देखें एक दूजे को उठाकर नजरें अपनी अपनी ही दुनिया में ,खोए रहते हम बेखबरे आपस में हम बात करें क्या,कोई टॉपिक नजर ना आता 
 मेरा वक्त गुजर जाता है, वक्त तुम्हारा भी कट जाता 
 बात शुरू यदि कोई होती, तू तू मैं मैं बढ़ जाती है 
 मेरे हरेक काम में तुमको ,कोई कमी नजर आती है इसीलिए शांति से जीने का पाया यह रस्ता सुंदर 
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,मोबाइल से खेलो दिनभर 
यह तुम्हारी सुन लेता है ,दो आदेश काम करता है 
उंगली से तुम इसे नचाती ,चुप रहता, तुम से डरता है 
मैं ये सब ना कर सकता था इस कारण होता था झगड़ा 
हम तुम बहुत सुखी है जब से, हाथों में मोबाइल पकड़ा 
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,टोका टाकी  मिट जाती है 
नोकझोंक सब बंद हो जातीघरमेंशांतिपसरजातीहै  मौन भावना पर हो जाती,रह जाती है दिल की दिल में 
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं कुछ अपने मोबाइल में

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 14 अगस्त 2021

किस्मत 

जिस दिन और जहां पर भी है होता जब भी जन्म हमारा 
उसी समय तय हो जाता है, पूरा जीवन चक्र हमारा 
उस पल की ही ,ग्रह स्थिति से, जन्मकुंडली अपनी बनती
चाल ग्रहों की ही जीवन के, पल पल का संचालन करती उसी समय अनुसार हमारा, भाग्य लिखा जाता है सारा जन्म स्थल भूगोल बनाता, कद काठी, रंग गोरा काला भाग्य लिखा रहता मुट्ठी में ,रेखाओं में अंकित होता 
 कब तक जीना, कैसे जीना, कब मरना, सब निश्चित होता 
 पूर्व जन्म के संचित कर्मों का जो भी है लेखा-जोखा इस जीवन में हमें भोगना ,पड़ता है फल उन कर्मों का केवल अच्छे कर्म हमारे ,भाग्य बदलने में सक्षम है इसीलिए सत्कर्म करो तुम ,जब तक बाकी तुम में दम है कामयाबी का ये ही नुस्खा,काम करो जी जान लगन से अपना भाग्य स्वयं लिख लोगे, यदि चाहोगे सच्चे मन से

मदन मोहन बाहेती घोटू
किस्मत वाला पति 

आप प्यार करते हैं जिनसे, उनसे ही कुछ कहते हैं 
बच्चों को मां-बाप इसलिये,कभी डांटते रहते हैं 
ताकि चले वे सही राह पर, गलत राह पर ना भटके
 प्यार भरी यह डाट निराली, होती है सबसे हटके 
जिन्हें समझते हो तुम अपना, ओर जिनसे है प्यार तुम्हे कभी कभी फटकार लगाने, का उन पर अधिकार तुम्हें स्कूल में मास्टर जी डांटे, पाठ याद करवाने को 
 डांट बॉस की दफ्तर में है, ड्यूटी सही निभाने को 
 डांट नहीं यह तो जादू का डंडा, बोले सर चढ़कर 
 जीवन में अनुशासन लाता ,हमें बनाता है बेहतर 
 प्यार प्रदर्शित अपना करने का यह ढंग निराला है 
 जिसे डाटती पत्नी वह पति ,सचमुच किस्मत वाला है 

मदन मोहन बाहेती घोटू

 फेंकू

तुम भी फेंकू,मैं भी फेंकू

रूप तुम्हारा, प्यारा सुंदर और नयना हिरनी से चंचल 
एक नज़र जिसपर भी फेंको,कर देती हो उसको घायल
 एक मीठी मुस्कान फेंक दो , बड़ी आस से तुम को देखूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू 

ऊंची ऊंची फेंका करता, मैं तुम्हारे  प्यार का मारा 
कैसे भी मैं तुम्हें पटा लूं और जीत लूं दिल तुम्हारा 
प्रणय निवेदन करूं ,तुम्हारे आगे अपने घुटने टेंकू
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू

हम दिल की फेंकाफेंकी में,उलझे कुछ ना कर पाए पर 
फेंकू नेता, ऊंचे ऊंचे ,वादे फेंक ,जमे कुर्सी पर 
भाषण और आश्वासन फेंके ताकि वोट उन्हीं को दे दूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू

हम सब बातों के फेंकू पर ,असली फेंकू निकला नीरज 
भाला फेंक,स्वर्ण ले आया और लहराया भारत का ध्वज 
स्वर्ण पदक टोक्यो में जीता ,बड़े गर्व से  उसको देखूं
 तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

ऐसा साज मुझे दे दो तुम

 जब भी दिल के तार छिड़े तो ,
 निकले मधुर रागिनी मोहक ,
 जो अंतर तक को छू जाए 
 ऐसा साज  मुझे दे दो तुम 
 बीती खट्टी मीठी यादों,
 के सब पन्ने बिखरे बिखरे 
 उन्हें समेट, सजा फिर से,
 जिल्दसाज ऐसा दे दो तुम  
  
भटक रहे बादल से मन को, घनीभूत कर जो बरसा दे सूखे अपनेपन की खेती ,को नवजीवन दे, सरसा दे शुष्क पड़ी जो मन की सरिता, बह निकले ,उसमें कल कल हो 
है सुनसान पड़ी यह बस्ती, दिल की, इसमें कुछ हलचल हो
 इस दुनिया में बहुत त्रसित हूं
 परेशान हूं, रोग ग्रसित हूं,
  मेरे मुरझाए चेहरे पर 
  खुशियां आज मुझे दे दो तुम 
  जो अंतरतर तो छू जाए ,
  ऐसा साज मुझे दे दो तुम 
  
एक जमाना था जब हम भी, फूलों से महका करते थे उड़ते थे उन्मुक्त गगन में, पंछी से चहका करते थे 
सूरज जैसा प्रखर रूप था , धूप पहुंचती आंगन आंगन सावन सूखे, हरे न भादौ, मतवाला था हर एक मौसम फिर से फूल खिले बासंती 
फिर आए जीवन में मस्ती 
खुशी भरे जीवन जीने का,
 वो अंदाज मुझे दे दो तुम 
 जो अंतरतर को छू जाए ,
 ऐसा साज मुझे दे दो तुम

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैंने जीना सीख लिया है 

यह बीमारी वह बीमारी 
रोज-रोज की मारामारी 
यह मत खाओ, वह मत खाओ 
मुंह पर अपने मास्क लगाओ 
गोली ,कैप्सूल ,इंजेक्शन 
खाओ दवाएं, फीका भोजन
 हर एक चीज पर थी पाबंदी
 पाचन शक्ति पड़ गई मंदी
 मेरी हालत बुरी हो गई 
 चेहरे की मुस्कान खो गई 
 मुझे प्यार से समझा तुमने,
 मेरे मन को ठीक किया है 
 मैंने जीना सीख लिया है 
   
तुमने बोला ,सोच सुधारो 
यू मत अपने मन को मारो 
मनमाफिक, सब खाओ पियो 
लेकिन घुट घुट कर मत जियो 
तन अनुसार ,ढाल लो तुम मन 
आवश्यक पर कुछ अनुशासन
 मज़ा सभी चीजों का लो पर 
 रखो नियंत्रण तुम अपने पर
 मौज मस्तियां खूब मनाओ 
 मित्रों के संग नाचो गाओ 
 नई फुर्ती और नए जोश ने ,
 कर मुझ को निर्भीक दिया है 
 मैंने जीना सीख लिया है 
  
जिस दिन से यह शिक्षा पाई 
नव जीवन शैली अपनाई 
बीमारी सारी गायब है 
चेहरे पर आई रौनक है 
फुर्तीला हो गया चुस्त हूं
लगता है मैं तंदुरुस्त हूं 
मेरी सोच सकारात्मक है
और जीने की बढ़ी ललक है 
बाकी जितनी बची उमर है 
अब जीना सुख से ,हंसकर है 
मेरे मन के वाद्य यंत्र ने ,
सीख गया संगीत लिया है 
मैंने जीना सीख लिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

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शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  
जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया 
पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते 
असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते 
हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे 
चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका 
कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
कलदार रुपैया

याद जमाना आता कल का ,होता था कलदार रुपैया कितना नीचे आज गिर गया, देखो मेरे यार रुपैया

एक तोला चांदी का सिक्का,एक रुपैया तब होता था चलता तो खनखन करता,यह सबका ही मन मोहता था 
जब यह आता था हाथों में, सब के चेहरे खिल जाते थे कभी टूटता ,तो तांबे के चौंसठ पैसे मिल जाते थे 
इसके हाथों में आने से ,आया करते सोलह आने 
इतनी ज्यादा क्रयशक्ति थी, हम सब थे इसके दीवाने इसके छोटे भाई बहन थे,, एक अधन्ना,एक इकन्नी
 एक दुअन्नी,एक चवन्नी,अच्छी लगती मगर अठन्नी लेकिन इसने धीरे-धीरे अवनति का है दामन थामा 
लुप्त हो गए भाई बहन सब,बचा सिर्फ हैअब आठआना इतना ज्यादा सिकुड़ गया है,ना चलता ना होती खनखन अबतो जाने कहां उड़गया हल्का फुल्का कागज का बन इतना ज्यादा टूट गया वह, बदले सौ में ,चौंसठ पैसे 
कोई सिक्का नजर आता, इसके दिन बिगड़े हैं ऐसे 
दो हजार के नोटों में भी अब इसका अवतार हो गया नेताओं ने भरी तिजोरी, इसका बंटाधार हो गया 
 बेचारा अवमूल्यन मारा ,है कितना लाचार रुपैया
 याद जमाना आता कल का, होता था कलदार रुपैया

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 9 अगस्त 2021

प्रतिशत 

सारे नेता, सारे अफसर, रहते हैं बस इस जुगाड़ में 
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल,बाकी दुनियाजाएभाड़में

 यह प्रतिशत वाली बीमारी इतनी ज्यादा फैल रही है 
 हर कोई इसका शिकार है जनता इसको खेल रही है चपरासी बाबू या अफसर पंच विधायक मंत्री नेता 
 काम कराने का कोई भी बस अपना कुछ प्रतिशत लेता सड़क बनाने से लेकर के ,बड़े-बड़े रक्षा के सौदे 
 हमने देखा शत-प्रतिशत ये, बिना प्रतिशत के ना होते साहब जी को नगद चाहिए नेता मांगी कहकर चंदा बहुत अधिक कब फैल रहा है ,सभी तरफ ये गोरखधंधा काम कराना प्रतिशत दे दो,सब कुछ नगद न कुछ उधार में
सारे नेता सारे अफसर ,रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल बाकी दुनिया जाए भाड़ में 

खुद को कहें देश का सेवक ,जड़े देश की खोद रहे हैं निजी स्वार्थ की सिद्धि करने, यह प्रगति को रौंद रहे हैं घटिया माल खरीद रहे हैं, गुणवत्ता पर ध्यान न देते प्रतिशत देखकर काम कराते, उनके अपने कई चहेते सब्जबाग दिखलाने वाले ,अपना बाग उजाड़ रहे हैं 
और बाद में भोले बनकर ,अपना पल्ला झाड़ रहे हैं प्रतिशत है दस्तूर बन गया कुछ दफ्तर में यह रूटीन में किसी एक को प्रतिशत दे दो, बंट जाता है सभी टीम में भले आज जो चीज खरीदी,अगले दिन बिकती कबाड़ में 
सारे नेता सारे अफसर रहते है बस इस जुगाड़ में 
उनका प्रतिशत जाए उन्हें मिल,बाकी दुनिया जाए भाड़ में

 यह कोटेशन ,टेंडर बाजी,खानापूर्ति है कागज की 
 सांप मरे, लाठी ना टूटे , जान बची रहती है सबकी प्रतिशत लेकर काम कराते,खोट नहीं इनके इमान में कोई दूध का धुला नहीं है, सब के सब नंगे हमाम में कोई अपने हाथ न गंदे ,करता ,चमचों से खाता है 
उसको उसका प्रतिशत मिलता और पेट जबभर जाताहै  काम ठीक से तब होता है जब वह ले लेता डकार है कोई बगुला भगत बन रहा, खुद ही मच्छी रहा मार है और जब फसंते,तो फिर चक्की पीसा करते हैं तिहाड़ में
सारे नेता, सारे अफसर, रहते हैं बस इस जुगाड़ में
उनका प्रतिशत जाएं उन्हे मिल,बाकी दुनिया जाए भाड़ में

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 8 अगस्त 2021

प्यार और समझ

सोच समझ कर कदम बढ़ा तू, दिल ने कितना ही समझाया
 बिन समझे ही  प्यार हुआ पर , बिन समझे ही साथ निभाया 

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं ,जिनको हम तुम नहीं बनाते 
ईश्वर द्वारा निर्मित होते ,और ऊपर से बनकर आते इसीलिए हम सोच समझकर उन्हें निभाए समझदारी है एक दूसरे को हम समझे, रहना संग उमर सारी है 
कुछ तो नयन नयन से उलझे,और कुछ दिल से दिल उलझाया
बिन समझे ही प्यार हो गया, बिन समझे ही साथ निभाया 

 प्यार हुआ करता है दिल से ,नहीं समझ की जरूरत पड़ती 
 जितना साथ साथ हम रहते ,प्रीत दिनों दिन जाती बढ़ती 
 सामंजस्य बना आपस में ,जीवन सुख से जी सकते हैं अगर समर्पण हो आपस में, सुख का अमृत पी सकते हैं प्रेम भाव में डूब गया जो, जीवन का आनंद उठाया 
 बिन समझे ही प्यार हो गया, बिन समझे ही साथ निभाया

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

तेरी जय जय 

 तू तारों सी झिलमिल झिलमिल 
 तू चंदा सी चम चम चम चम 
 मस्त हवा सी शीतल शीतल 
खिली धूप सी आंगन आंगन 

तू पर्वत की ऊंची ऊंची 
तू गहरी गहरी सागर सी
 तू बादल सी भरी-भरी सी 
 दिल पर छाई नीलांबर सी 
 
तू गंगा सी निर्मल निर्मल 
तू नदिया सी बहती कलकल
तू झरने सी झरती झर झर  
प्यार बरसता क्षण क्षण पल पल 

तेरा मन है सावन सावन 
 बरसा करती रिमझिम रिमझिम 
 तेरी छवि है नयन नयन में ,
 श्वास श्वास में तेरी सरगम
 
तू राधा की भोली भोली
तू कान्हा सी माखन माखन 
तेरी खुशबू मधुबन मधुबन 
महक रही तू चंदन चंदन 

खिली कली सी नवल नवल तू 
तू गुलाब सी कोमल कोमल
 तेरा तन है कंचन कंचन 
 तेरा मन है चंचल चंचल 
 
सरस्वती सी सरस सरस तू 
तू लक्ष्मी सी वैभव वैभव 
तू दुर्गा सी निर्भय निर्भय 
तेरी जय जय तेरी जय जय

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

पत्नी जी और उनका मोबाइल 

प्रियतमे
कई बार यह शिकायत रहती है तुम्हें 
कि तुम्हारा मोबाइल फोन 
बार-बार हो जाता है मौन 
कई बार ठीक से आवाज भी नहीं सुनाती है 
उसकी बैटरी जल्दी डिस्चार्ज हो जाती है 
कम मेमोरी है और बॉडी पर स्क्रेच भी है आ गए आजकल बाजार में रोज आ रहे हैं मॉडल नए
और यह मुआ खराब होकर तंग करता है, मुसीबत है अब मुझे नए मोबाइल की जरूरत है 
हमने कहा डियर 
मैं देखता हूं कि दिन भर 
तुम अपने मोबाइल को उंगलियों से सहलाती रहती हो कभी गाल से चिपकाती रहती हो 
होठों के पास ले जाकर फुसफुसा कर बात करती हो 
और वह भी दिन रात करती हो 
अब तुम ही बताओ,
 जब तुम मुझे थोड़ा सा सहलाती हो 
 या होठों के पास आती हो 
तो मेरी हालत कैसी बिगड़ जाती है 
मेरी नियत खराब हो जाती है 
डर के मारे मैं धीरे बोलता हूं मेरी आवाज नहीं निकलती मेरी एनर्जी क्षीण हो जाती और मेरी  एक नहीं चलती 
जब कुछ क्षण मे हो जाता है मेरा हाल ऐसा
तो दिन भर तुम्हारा साथ पाकर ,अगर मोबाइल हो जाता है खराब,तो अचरज कैसा
 दरअसल वह खराब नहीं होता ,उसकी नियत खराब हो जाती है, वह खो देता अपने होंश हैं 
 यह मोबाइल का दोष नहीं, यह तुम्हारा दोष है

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 4 अगस्त 2021

Re:

शानदार वाह वाह,,,,,,,,

On Wed, Aug 4, 2021, 7:32 AM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
अच्छा लगता है

कभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता है 
बात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता है 
यूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती हो 
कभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता है 
त्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,
लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता है  
नये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,
यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता है 
अपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में, 
मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता है 
पहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता है 
काली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,
कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता है 
मेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,
 मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
अच्छा लगता है

कभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता है 
बात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता है 
यूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती हो 
कभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता है 
त्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,
लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता है  
नये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,
यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता है 
अपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में, 
मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता है 
पहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता है 
काली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,
कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता है 
मेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,
 मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
चिंतन 

चिंतन बदलो ,तन बदलेगा
जीवन का कण कण बदलेगा 

कई व्याधियां है जो अक्सर ,
तन के आसपास मंडराती 
इनमें से आधी से ज्यादा ,
चिंताओं के कारण आती 
गुस्से में ब्लड प्रेशर बढ़ता, 
हो अवसाद, नींद उड़ती है 
किडनी, लीवर की बीमारी ,
मानस स्थिति से जुड़ती है 
यदि तुम सोचो मैं बीमार हूं 
तो बुखार भी चढ़ जाएगा 
यदि तुम सोचो मैं स्वस्थ हूं,
 जीवन में सुख बढ़ जाएगा 
 परेशानियां इस जीवन में ,
 सब पर आती, मत घबराओ 
 बड़े धैर्य से उनसे निपटो,
 चिंता में मत स्वास्थ्य गमाओ 
 तिथि मौत की जब तय है तो,
  रोज-रोज क्यों जीना घुट कर 
  हंसी खुशी से क्यों न गुजारें,
   हम अपने जीवन का हर पल 
   
   मस्त रहोगे, मन बदलेगा 
   मुस्कराओ,मौसम बदलेगा 
   चिंतन बदलो, तन बदलेगा 
   जीवन का कण कण बदलेगा

  मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं की मैं मैं 

तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं तुमको दे दूंगा अपना मैं रहे प्रेम से हम मिलजुल कर ,बंद करें अब तू तू मैं मैं 

जब तक तुममें मैं, मुझमें मैं ,अहम अहम से टकराता है 
अहम अगर जो हम बन जाये,तो जीवन में सुख आता है अपनी मैं का विलय करें जो,हम में, सोच बदल जाएगी रोज-रोज की खींचातानी, हम होने से थम जाएगी 
और जिंदगी बाकी अपनी फिर बीतेगी मजे मजे में 
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं दे दूं तुमको अपना मैं

 दुनिया में सारे झगड़ों की, जड़ है ये मैं की बीमारी 
 मैं के कारण ही होती है, जग में इतनी मारामारी  मैं सब कुछ हूं,मेरा सब कुछ,सोच सोच हम इतराते हैं खाली हाथ लिए है आते,खाली हाथ लिये जाते हैं  
तो फिर क्यों झगड़ा करते, क्या मिल जाता हमको इसमें तुम मुझको अपना मैं दे दो ,मैं तुमको दे दूं अपना मैं 
 रहे प्रेम से, हम मिलजुल कर,बंद करें अब तू तू मैं मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
बारिश तब और अब 

अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले

 अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की, 
 ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
 नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
  नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
  
 अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना 
  पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का, 
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना

 वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती  
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना 
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी  मिलती  

तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी 
तब बारिश में जीवन होता, मेह के संग था नेह बरसता,
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी

मदन मोहन बाहेती घोटू
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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

बारिश तब और अब 

अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले

 अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की, 
 ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
 नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
  नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
  
 अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना 
  पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का, 
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना

 वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती  
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना 
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी  मिलती  

तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी 
तब बारिश में बारिश होती ,तब बारिश में जीवन होता
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी

मदन मोहन बाहेती घोटू
,

 बरसा है पानी
दबे पांव आ गया बुढ़ापा 

मैंने कितना रोका टोका बात न मानी 
दबे पांव आ गया बुढ़ापा गई जवानी 

मैंने लाख कोशिशें की, कि यह ना आए 
फूल जवानी का न कभी भी मुरझा पाए 
कितने ही नुस्खे अपनाएं, पापड़ बेले 
जितने भी हो सकते थे, सब किये झमेले
च्यवनप्राश के चम्मच चाटे, टॉनिक पिए 
किया फेशियल और बाल भी काले किये
 रंग-बिरंगे फैशन वाले कपड़े पहने 
 बन स्मार्ट, लगा तेज फुर्तीला रहने 
 जिम में जाकर करी वर्जिशें,भागा दौड़ा 
 लेकिन ये ना माना, आकर रहा निगोड़ा 
 मैं जवान हूं, सोच सोच कर मन बहलाया
  हुई कोशिशें लेकिन मेरी सारी जाया 
  धीरे धीरे थी मेरी आंखें धुंधलाई
  और कान से ऊंचा देने लगा सुनाई
  तन की आभा क्षीण, अंग में आई शिथिलता 
  मुरझाया मुख, जो था कभी फूल सा खिलता 
  शनेःशनेःचुस्ती फुर्ती में कमी आ गयी
  मेरे मन में बेचैनी सी एक छा गयी
  और लग गई, तन पर कितनी ही बिमारी
 थोड़ी थोड़ी मैंने भी थी हिम्मत हारी
 पर फिर मैंने,अपने मन को यह समझाया 
 यह जीवन का चक्र, रोक कोई ना पाया
 इस से डरो नहीं तुम बिल्कुल मत घबराओ
 बल्कि उम्र के इस मौसम का मजा उठाओ 
 क्योंकि यही तो बेफिक्री की एक उमर है 
 ना चिंता है, भार कोई भी ना सर पर है
  जो भी कमाया,जीवन में,उपभोग करो तुम
   मरना सबको एक दिवस है, नहीं डरो तुम 
   समझदार अंतिम पल तक है मजा उठाता 
  डरो नहीं , इंज्वॉय करो तुम यार बुढ़ापा

मदन मोहन बाहेती घोटू
घर के झगड़े 

घर के झगड़े ,घर में ही सुलझाए जाते 
लोग व्यर्थ ही कोर्ट कचहरी को है जाते 

संग रहते सब ,कुछ अच्छे, कुछ लोग बुरे हैं 
यह भी सच है ,नहीं दूध के सभी धुले हैं 
छोटी-छोटी बातों में हो जाती अनबन
एक दूसरे पर तलवारे ,जाती है तन
वैमनस्य के बादल हैं तन मन पर छाते
घर के झगड़े घर में ही सुलझाए जाते 

कुछ में होता अहंकार, कुछ में विकार है 
इस कारण ही आपस में पड़ती दरार है 
होते हैं कुछ लोग,हवा जो देते रहते 
आग भड़कती है तो मज़ा लूटते रहते 
जानबूझकर लोगों को है लड़ा भिड़ाते
घर के झगड़े ,घर में ही  सुलझाए जाते 

पर जबअगला है थोड़ी मुश्किल में आता 
सब जाते हैं खिसक कोई ना साथ निभाता
 इसीलिए इन झगड़ों से बचना ही हितकर 
 जीना मरना जहां ,रहे हम सारे मिलकर 
 बादल हटते , फूल शांति के है खिल जाते 
 घर के झगड़े घर में ही सुलझाए  जाते

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 2 अगस्त 2021

जीने की ललक

 जिस्म गया पक , पैर कब्र में रहे लटक है 
 फिर भी लंबा जिएं, मन में यही ललक है 
 
 तन के सारे अंग, ठीक से काम न करते 
 तरह-तरह की बीमारी से हम नित लड़ते 
 कभी दांत में दर्द ,कभी है मुंह में छाले 
 पर मन करता,सभी चीज का मजा उठा ले
 खा लेते कुछ,पाचन तंत्र पचा ना पाता 
 सांस फूलती ,ज्यादा दूर चला ना जाता 
 लाख दवाई खाएंगे, टॉनिक पिएंगे 
 लेकिन मन में हसरत है, लंबा जिएंगे 
 हुस्न देख, आंखों में आती नयी चमक है
 फिर भी लंबा जिएं, मन में यही ललक है 
 
कोई अपंग अपाहिज है ,चल फिर ना सकता 
फिर भी उसका मन लंबा जीने को करता 
 इस जीने के लिऐ न जाने क्या क्या होता 
 कोई चलाता रिक्शा, कोई बोझा ढोता 
 कोई अपना जिस्म बेचता ,जीने खातिर 
 कोई चोरी करता ,कोई बनता शातिर 
 इस जीने के चक्कर में कितने मरते हैं 
 जो जो पापी पेट कराता ,सब करते हैं 
 गांव-गांव में गली-गली में रहे भटक है 
 फिर भी लंबा जिएं,मन में यही ललक है 
 
कोई वृद्ध है, नहीं पूछते बेटी बेटे 
दिन भर तन्हा यूं ही रहते घर में बैठे 
बड़े तिरस्कृत रहते ,होता किन्तु अचंभा 
उनके मन में भी चाहत, वो जिए लंबा 
बंधा हुआ मन है मोह माया के चक्कर में 
उलझा ही रहता है बच्चों में और घर में 
हैं बीमार अचेत,सांस वेंटीलेटर पर 
फिर भी चाहें, बढ़ जाएं जीवन के कुछ पल 
दुनिया में क्यों रहते सब के प्राण अटक  है 
फिर भी लम्बा जिएं मन में यही ललक है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 31 जुलाई 2021

देर लगा करती है 

इस जीवन में काम बहुत से ,
धीरज धर कर ही होते हैं ,
किंतु लालसा जल्दी पाने की,
तो दिन रात लगा करती है 
बेटा बेटी भाई बहन तो ,
पैदा होते ही बन जाते हम,
पर दादा या नाना बनने 
में तो देर लगा करती है 

काम बहुत से बिन मेहनत के 
हो जाते हैं जल्दी जल्दी 
भले आप कुछ करो ना करो,
 तन का हो जाता विकास है 
 लेकिन ज्ञान तभी मिलता है,
 जब मिल जाता कोई गुरु है 
 जो करता है मार्ग प्रदर्शित 
 जीवन में आता प्रकाश है 
 इस शरीर में सात चक्र हैं
  उन्हें जागृत करना पड़ता,
  बिना तपस्या योग साधना ,
  कुंडलिनी नहीं जगा करती है 
  इस जीवन में काम बहुत से
  धीरज धड़कन ही होते हैं 
  किंतु लालसा जल्दी पाने,
  की दिनरात लगी रहती है 
  
पहले दांत दूध के गिरते,
है फिर नए दांत आते हैं ,
अकल दाढ़ के आने में पर, 
फिर भी लग जाते हैं बरसों 
हरेक फसल उगने ,पकने का,
 अपना अपना टाइम होता ,
 यूं ही हथेली पर पल भर में ,
 नहीं उगा करती है सरसों 
 इस मरुथल में हम सब के सब 
 माया पीछे भाग रहे हैं 
 ललचाती मृगतृष्णा हमको,
 ये दिनरात ठगा करती है
  इस जीवन में काम बहुत से
 धीरज धर कर ही होते हैं 
 किंतु लालसा जल्दी पाने 
 की दिन रात लगी रहती है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बदलाव 

दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं
मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई 
ना तो कोई धर्मशाला ना सराय है ,
मैं तलाशता, मिलता नहीं बसेरा कोई 

कहीं आजकल प्यास बुझाने प्याऊ लगती,
 ना मिलता माटी मटके का ठंडा पानी 
 ना तो कोई कुआं दिखता है ना पनघट है ,
 ना ही पानी भरती पनिहारिने सुहानी 
 कुछ पल मैं, विश्राम करूं ,बैठूं निरांत से
 बहुत ढूंढता मिल पाता ना, डेरा कोई 
 दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं,
 मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई 
 
अब संयुक्त परिवार ना रहे पहले जैसे
 बिखर गए सब भाई बहन और चाचा ताऊ 
 अपनों में ही अपनेपन का भाव ना रहा,
 सारे रिश्ते ,अब बनावटी और दिखाऊं
 जिसके संग जी खोल कर सकूं बातें दिल की ,
 ऐसा मुझको नजर  न आता मेरा कोई 
 दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं
 मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं स्वस्थ हूं 

हाथ पांव है काम कर रहे चलता फिरता ,
खुश रहता हूं मौज मनाता और मस्त हूं
 मैं स्वस्थ हूं 
 ना जोड़ों में दर्द, न  मुझको बीपी शुगर ,
 नहीं फूलती सांस, दमा है ना खांसी है 
 जमकर के मैं सुबह शाम, खाना खाता हूं 
 और खुराक भी मेरी अच्छी ही खासी है 
 ना बनती है गैस ,नहीं पाचन में दिक्कत ,
 तन कर चलता, कमर जरा भी झुकी नहीं है 
 मेरी पूरी दिनचर्या पहले जैसी है ,
 जीवन की गति कहीं जरा भी रुकी नहीं है 
 आया ना बदलाव वही जीवन जीता हूं ,
 जिस जीवन शैली का अब तक अभ्यस्त हूं
 मैं स्वस्थ हूं 
 माना खाने पीने पर कुछ पाबंदी है ,
 फिर भी चोरी चुपके थोड़ा  चख लेता हूं 
 आंखें थोड़ी धुंधली पर लिख पढ़ लेता हूं ,
 आती-जाती सुंदरियों को तक लेता हूं 
 काम-धाम कुछ नहीं, सवेरे पेपर चाटू,
 और रात को टीवी सदा देखता रहता 
 इसी तरह से वक्त काटता हूं मैं अपना,
 सुनता रहता सबकी अपनी कभी न कहता
 कुछ ना कुछ तो हरदम करता ही रहता हूं,
 रहूं न खाली ,रखता खुद को सदा व्यस्त हूं
  मैं स्वस्थ हूं
  पर ऐसी ना बात कि सब पहले जैसा है ,
  कुछ तन में और कुछ मन में बदलाव आ गया
  मुझ में जो आया है सो तो आया ही है ,
  अपनों के अपनेपन में बदलाव आ गया 
  क्योंकि रहा ना कामकाज का,ना कमाऊं हूं,
   इसीलिए है कदर घट गयी मेरी घर में 
   क्यों हर वृद्ध इस तरह होता सदा उपेक्षित,
    परेशान हो सोचा करता हूं अक्सर मैं
 अब ना पहले सी गर्मी है नहीं प्रखरता,
    ढलता सूरज हूं, अब होने लगा अस्त हूं 
    मैं स्वस्थ हूं

  मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 26 जुलाई 2021

बस दो मीठे बोल बोल दो

मैं लूखी रोटी खा लूंगा, मत खिलाओ तुम पूरी तलवां
 भले जलेबी ना खाने दो ,ना खिलाओ गाजर का हलवा 
मीठा खाने की पाबंदी, डायबिटीज में लगा रखी है
कई दिनों से मैंने टुकड़ा ,भर मिठाई भी नहीं चखीहै किंतु प्यार पर लगा रखी है, जो पाबंदी उसे खोल दो
 प्यार भरे और मीठे मीठे, मुंह से बस दो बोल बोल दो 

एक नजर जो भरी प्यार से मुझ पर डाल अगर तुम दोगी 
थोड़ी सी राहत पा लेगा ,यह बीमार,तड़पता रोगी   
मिश्री सी मुस्कान तुम्हारी, कुछ उसका मीठा पन दे दो 
भरे चासनी वाले मुख से ,एक मीठा सा चुंबन दे दो 
छूट जरा सी तो दे दो ,मत इतना ज्यादा कंट्रोल दो 
 प्यार भरे और मीठे मीठे,मुंह से बस दो बोल ,बोल दो
 
 डॉक्टर ने जो भी लगाया है उनमें कोई पथ्य न छूटे 
 ना तो लागे हींग फिटकरी , सांप मरे, लाठी  ना टूटे
अपनी काजू की कतली से,कोमल कर से बस सहला दो 
रसगुल्ले जैसे अधरों से कुछ रस टपका ,मन बहला दो  
डाल शरबती नजरें मुझ पर ,मुंह में मिश्री मेरे घोल दो 
प्यार भरे और मीठे मीठे, मुंह से बस दो बोल, बोल दो

मदन मोहन बाहेती घोटू
बूढ़े बुढ़िया , लिव इन रिलेशन 

मैं कुछ कहता,वो ना सुनती, 
वो कुछ कहती ,मैं ना सुनता 
एक दूसरे को आपस में ,यूं ही सहते हैं 
लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते हैं 

है थोड़ी कमजोर न, ज्यादा चल फिर पाती है 
काम जरा सा कर लेती है, तो थक जाती है 
मैं कितना भी कुछ बोलो तो चुप चुप रहती है ,
बात समझ में ना आती तो भी मुस्कुराती है 
मैं खासूं, वह दवा खिलाए 
वह खांसे,मैं दवा पिलाऊं ,
ख्याल एक दूजे का ,ऐसे रखते रहते हैं 
लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते है

उसकी धुंधलाई आंखों की चमक निराली है 
झुर्राए है गाल ,अभी भी उन में लाली है 
कभी प्यार से शरमा करके जब मुस्काती है ,
फूल खिलाती हंसी ,बहुत लगती मतवाली है 
अब भी मुझको बहुत सताती 
याद जवानी की दिलवाती 
कभी पुरानी यादों के जब झरने में बहते हैं 
 लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते है
 
मेरा सर दुखता तो उससे मैं दबवाता हूं ,
उसे पीठ में खुजली होती, मैं खुजलाता हूं 
बढ़े हुए नाखून ,एक दूजे के पांव के,
उसके मैं काटूं,अपने, उससे करवाता हूं 
रोज यहीं होता कुछ-कुछ है 
जब तक संग है ,हम खुश खुश हैं
 ख्याल बिछड़ने का आता ,तो आंसू बहते हैं 
 लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते है


मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 25 जुलाई 2021

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 बचपन का क्या मजा लिया है 
 
माटी में यदि हुए मैले,बेफिक्री खाया न पिया है 
बचपन के अनमोल क्षणों का फिर तुमने क्या मजा लिया है 

बचपन में मां के हाथों से, रोटी चूरी, दूध में खाई 
उंगली डाल दूध में तुमने ,जमी मलाई, नहीं चुराई 
बासी रोटी के टुकड़ों को, डूबो छाछ मे ना जो खाया पापड़ सी सूखी रोटी पर ,लगा मसाला स्वाद न पाया 
यूं ही बिस्किट कुतर कुतर कर,तुमने बचपन बिता दिया है
बचपन के अनमोल क्षणों का ,फिर तुमने क्या मजा लिया है 
बारिश की बहती नाली में यदि ना दौड़े छपक छपक कर
ना कागज की नाव बहाई,पीछे भागे लपक लपक कर
 यार दोस्तों के संग मिलकर ,अगर नहीं जो कंचे खेलें 
सारा बचपन यूं ही गुजारा, बैठे, सिमटे हुए,अकेले  इधर उधर जाने कि तुम पर लगी अगर पाबंदियां हैं 
 बचपन के अनमोल क्षणों का, फिर तुमने क्या मजा लिया है 

 ना घुमाए सड़कों पर लट्टू ,और ना खेले गिल्ली डंडे
 ना ही गेंद की हूल गदागद,बैठे रहे यूं ही तुम ठंडे 
 ना पेड़ों चढ़ जामुन तोड़े ,ना बगिया से आम चुराए 
 ढूंढ रसोई में  डब्बे से ,चुपके चुपके लड्डू खाए 
अपने भाई बहन से तुमने ,कभी कोई झगड़ा न किया है 
बचपन के अनमोल क्षणों का फिर तुमने क्या मजा लिया है 

 मां पल्लू से चुरा के पैसे, चुपके-चुपके कुल्फी खाई
 अपने घर की छत पर चढ़कर, पेंच लड़ाए, पतंग उड़ाई 
बना बहाना पेट दर्द का, स्कूल से छुट्टी ले ली पर 
 अपने यार दोस्तों के संग,चोरी चोरी देखा पिक्चर
 अपनी जिद मनवाने खातिर ,घर भर में उत्पाद किया है 
बचपन के अनमोल क्षणों का फिर तुमने क्या मजा लिया है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
मुझको तुमसे बात नहीं करनी

मैं कुछ बोलूं तुम जवाब दो ,
इससे तो है बात बिगड़नी
मुझको तुमसे बात न करनी 

आज सुबह से, बिना वजह के मुंह सुझाएअपना बैठी हो समझ ना आता,बात हुई क्या,जिससे तुम इतना ऐंठी हो बिना बात और बिन मतलब के, हंगामा सा रखा मचा है बात बात में बहा टेसुवे, स्वांग नया तुमने ये रचा है
नहीं शांति से कभी बैठती करती रहती सदा कुचरनी मुझको तुमसे बात न करनी

 बात-बात पर रूठ बैठना ,अपना त्रिया चरित्र दिलाना परेशान और दुखी पति को रह रह करके रोज सताना ढूंढ ढूंढ कर रहे बहाने ,कैसे भी लड़ाई करती हो
 सारा दोष मुझ पर मढ़ती, चाहे खुद की ही गलती हो मेरी बात काटती हरदम ,जीभ तुम्हारी चले कतरनी मुझको तुमसे बात न करनी 
 
देखो बढ़ती उमर हमारी, तबीयत ठीक नहीं रहती है बीमारी कोई ना कोई, हमको घेरे ही रहती है 
जब तक जिंदा,एक दूजे का ख्याल अगर जो रख पायेंगे जितना मिलजुल और प्रेम से, साथ रहेंगे सुख पाएंगे आपस में हम बने सहारा ,अब ऐसे ही उमर गुजरनी 
मुझको तुमसे बात न करनी

मदन मोहन बाहेती घोटू
बोलो मुझे खरीदोगे क्या

बोलो मुझे खरीदोगे क्या मैं बिकाऊ 
गारंटी है तीन माह की ,मैं टिकाऊ हूं
 मैं बिकाऊ हूं
 घर घर मेरी पहुंच ,मीडिया मुझको कहते 
 पुलिस और सब अफसर मुझसे डर कर रहते
  मैं जिसकी भी चाहूं उसकी हवा बहा दूं
  कभी अर्श से फर्श ,फर्श से अर्श चढ़ा दूं 
  जो खरीदता ,काम में उसके, बहुत आऊं हूं
   बोलो मुझे खरीदोगे क्या , मैं बिकाऊ हूं 
   मैं बिकाऊ हूं 
   मैं ,मौसम वैज्ञानिक हूं ,दल बदलू नेता 
   शामिल होता उस दल में ,जो कुर्सी देता 
   अपनी जाति वर्ग में मेरी बड़ी कदर है 
   मैं रहता जिस ओर,वोट सब पढ़े उधर है 
   राजनीति का चतुर खिलाड़ी ,मैं कमाऊं हूं 
   बोलो मुझे खरीदोगे क्या, मैं बिकाऊ हूं
    मैं बिकाऊं हूं
     मैं प्रसिद्ध हूं ,बुद्धिजीवी ,कलाकार हूं 
     उल्टे सीधे ,वामपंथी रखता विचार हूं 
     अब मुशायरे कम होते ,ना रही कमाई 
     जो कुछ देता ,कह देता, उसकी मनचाही 
     इसी बहाने ,चर्चा में, मैं आऊं जाऊं हूं 
     बोलो मुझे खरीदोगे क्या ,मैं बिकाऊ हूं
     मैं बिकाऊ हूं

   मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

तीरंदाज हो गए 

हम मोह में जिनके बंधे उन्ही के दर्शन को मोहताज हुये 
 जाने क्या बात हुई ऐसी , वो हमसे है नाराज हुये 
हमने जिन से रिश्ता जोड़ा, वो बीच राह में छोड़ गए, 
 चलता न किसी पर भी बस है,हम इतने बेबस आज हुये
हम प्यार में जिनके पागल हैं, नित मानमनौव्वल करते है ,
हर बात पर आपा खो देते, वो इतने तुनक मिजाज हुये 
हम बड़ी शान से पहन रहे, है तार तार हो रही जींस, 
तन दिखलाऊऔर फटे वस्त्र,अब फैशन के आगाज हुये 
मॉडर्न बनने के चक्कर में ,हमने ऐसा यू-टर्न लिया  
हम भूल संस्कृति को अपनी अब पश्चिम के मोहताज हुऐ 
जिनके दादा और परदादा ,ना मार सके एक भी मेंढक, 
क़िस्मत देखो उनके बेटे अब तीखे तीरंदाज हुये
साबुन जैसी उनकी यादें ,घिसघिस के झाग में बदल गई,
कुछ मन का मैलापन निकला ,कुछ साफ पुराने राज हुऐ
 घोटू ठोकर खा सब गिरते,हम ठोकर खाकर संभल गए, 
जीवन में सफलता पाने के, हम सीख गए अंदाज नये

मदन मोहन बाहेती घोटू

हम मियां बीवी 

हम कितने ही लड़े और क़िस्मत को कोसे 
पर रहना है एक दूजे के सदा भरोसे 
अपना दिल से दिल का रिश्ता  बहुत करीबी 
हमें बनाया है ईश्वर ने मियां बीबी

सुनते हैं कि सभी जोड़ियां, पति पत्नी की ,
बना भेजता, आसमान से ,स्वयं विधाता 
उसे निभाया करते हैं हम पूरा जीवन ,
जब आपस में यह प्यारा बंधन बंध जाता 
अब तुम चाहे रहो प्यार से या फिर झगड़ो,
सुलह अंत में पर होती ही होती अक्सर 
जरा प्यार की गर्मी मिलती , पिघला देती, 
भले बर्फ से जमे हुए हो, तीखे तेवर 
एक दूजे हम साथ ,हमारी खुश ये नसीबी 
हमे बनाया है ईश्वर ने मियां बीबी

जब दो बर्तन साथ रहे टकराते ही हैं ,
पर उनकी खटपट का है संगीत निराला 
कभी रूठना, कभी मनाना ,टोका टाकी ,
अच्छा लगता नोकझोंक का चाट मसाला 
बिन तकरार, प्यार का पूरा मजा ना आता,
 कुछ नमकीन ,जरूरी होती ,मीठे संग है 
 समझौते की ताजी चटनी, स्वाद बढ़ाती,
 और जीवन के भोजन में आती उमंग है 
 इस जीवन का स्वाद बदल पाए न कभी भी 
 हमे बनाया है ईश्वर ने भी मियां बीबी

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 21 जुलाई 2021

कोविड में

 कोविड में कुछ कर न सके हम,दूरी रखनी थी कायम ,
  चुपके-चुपके, इनसे उनसे,नैन लड़ाना सीख गए
 मुख पर उनके मास्क,हमारे मुख पर भी था मास्क चढ़ा 
बातचीत तो हो ना पायी, बात बढाना सीख गए 
 अब जब मुख से मास्क हटा तो यह पहचान नहीं होती
 थे वे कौन रसीले नैना, जिनसे नयन लड़ाए थे ,
 निश्चित शोख हसीना होगी, अच्छा टाइम पास हुआ,
 लॉकडाउन में दिल पर अपने लॉक लगाना सीख गए

मदन मोहन बाहेती घोटू
माता रानी के भक्त हो गए

बंधे हुए रहते थे मोह माया बंधन में 
दुनियादारी से वह आज विरक्त हो गए 
कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
 वह देखो माता रानी के भक्त हो गए

 तन पर नहीं लुनाई रही, आई जर्जरता,
 निर्बलता में अंकपाश में घेर लिया है 
 चिकने तन पर लगी झुर्रियां झलक मारने ,
 धीरे-धीरे यौवन ने मुंह फेर लिया है 
 अपनो  का अपनापन भी है लुप्त हो रहा,
 घर में हम अनचाहे से अब फक्त हो गए 
 कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में 
 अब देखो मातारानी के भक्त हो गए
 
 मन तो बहुत चाहता पर तन साथ ना देता,
 सांप छछूंदर गति हुई कुछ कर ना सकते 
  फूल महकते हैं गुलशन में सुंदर सुंदर,
  मन मसोसकर अपना केवल उनको तकते
  कल तक हरे भरे थे छाया ,फल देते थे 
  पातहीन अब  सूखे हुए दरख़्त हो गए
  कल तक रहते लिप्त भोग मेंऔर लिप्सा में,
  अब देखो माता रानी के भक्त हो गए
    
    ऐसा ना है कि उनमें कुछ कमी नहीं है ,
    रस्सी भले जल गई, लेकिन बट न गया है 
    अब भी सब पर रौब पुराना दिखलाते हैं ,
    बात बनाने का अपनी पर हठ गया है 
    जिद्दी, अड़ियल, नहीं किसी की कोई सुनते,
     अपने थोथे सिद्धांतों में सख्त हो गए 
     कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
     वह देखो माता रानी के भक्त हो गए

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

मिलन यात्रा

तुम भी थोडी पहल करोगे 
मैं भी थोड़ी पहल करूंगा 
बात तभी तो बन पाएगी 
धीरे हो या जल्दी-जल्दी 
पास हथेली जब आएगी 
तब ही ताली बज पाएगी 

तुम भी चुप चुप, मैं भी चुप चुप 
कोई कुछ भी नहीं बोलता 
तो फिर बात बनेगी कैसे 
तुम उस करवट मैं इस करवट
 दोनों में बनी दूरियां
 तो फिर रात कटेगी कैसे 
 यूं ही शर्म हया चक्कर में 
 मिलन रात में मिलन न होगा 
 यूं ही रात निकल जाएगी 
  तुम भी थोड़ी पहल करोगे
   मैं भी थोड़ी पहल कर लूंगा 
   बात तभी तो बन पाएगी
   
   दीवारे जब तलक हिचक की ,
   खड़ी रहेगी बीच हमारे 
   कैसे मिल पाएंगे तुम हम 
   गंगा और जमुना की धारा 
   अगर बहेगी दूर-दूर ही 
   तो फिर कैसे होगा संगम
    कैसे मैं  मधुपान करूंगा
    यदि चेहरे पर चंदा से 
    यूं ही बदली अगर छाएगी 
    तुम भी थोड़ी पहल करोगे 
    मैं भी थोड़ी पहन कर लूंगा 
    बात तभी तो बन पाएगी

   मदन मोहन बाहेती घोटू
जीवन चर्या 

होती भोर,निकलता सूरज ,धीरे-धीरे दिन चढ़ता है  
हर पंछी को दाना चुगने, सुबह निकलना ही पड़ता है

बिना प्रयास सांस ही केवल ,जब तक जीवन, आती जाती
 किंतु उदर में जब कुछ पड़ता , तब ही जीवन ऊर्जा आती
 चाहे चींटी हो या हाथी, सबको भूख लगा करती है इतने संसाधन प्रकृति में, सबका पेट भरा करती है लेकिन अपना हिस्सा पाने ,सबको कुछ करना पड़ता है 
  हर पंछी को दाना चुगने ,सुबह निकलना ही पड़ता है
  
 कितने ही भोजन के साधन, विद्यमान है ,आसपास है अपने आप नहीं मिलते पर ,करना पड़ता कुछ प्रयास है ज्यादा उर्जा पाने ,थोड़ी उर्जा करना खर्च जरूरी बैठे-बैठे नहीं किसी की ,कोई इच्छा होती पूरी 
 भूख लगे ,मां दूध पिलाएं, बच्चे को रोना पड़ता है 
 हर पंछी को दाना चुगने, सुबह निकलना ही पड़ता है 

     मदन मोहन बाहेती घोटू
चतुर्भुज 

चार भुजाएं जब ऐसे मिलती है
कि उनके बीच में बनने वाला क्षेत्र 
आयताकार या वर्गाकार हो जाता है 
तो वह चतुर्भुज कहलाता है 
पर चार भुजाएं हैं जब शंख चक्र गदा, पद्म 
धारण कर लेती है 
तो भगवान का चतुर्भुज रूप दिखलाता है
एक चतुर्भुज का दायरा सीमित होता है 
एक चतुर्भुज अपरिमित होता है 
सीमित दायरे वाला इंसान है 
अपरिमित दायरे वाला भगवान है 
इसीलिए हम अपनी भुजाएं इस तरह काम में लाएं
कि सिर्फ आयताकार होकर सीमित न रह जाएं 
बल्कि ईश्वर की तरह विश्वरूपी, 
व्यापक और वृहद आकार में,
 अपनी सीमाओं को फैलाएं
 चर्तुभुज हो जाएं

घोटू
रिमझिम और रोमांस 

जैसे ही नभ में छाते हैं बादल थोड़े 
चाह तुम्हारी होती है कि बने पकोड़े 
कैसे तुमको समझाऊं मैं साजन मोरे ,
चाय पकौड़े से आगे भी कुछ होता है 

हम बोले कि हमें पता, पर सकुचाते हैं 
अपने दिल की हसरत नहीं बता पाते हैं
 साथ पकोड़े के मिल जाए गरम जलेबी,
 या हो हलवा गरम गरम तो मन मोहता है 
 
पत्नी बोली जब देखो तब खाना पीना 
दिल तुम्हारा इससे ज्यादा कहे कभी ना 
रिमझिम वाले इस प्यारे प्यारे मौसम में ,
चलो जरा सा रोमांटिक भी हम हो जाए  

हमने बोला जी तो मेरा भी है करता 
ना होता रोमांस ,पेट जब तक ना भरता
आओ करें रोमांस, बदन में गर्मी लायें
इसीलिए हम पहले गरम-गरम कुछ खायें

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 18 जुलाई 2021

हे मेरे आदर्श आलू और परम प्रिय प्याज 
देश के हर रसोई में आज 
तुम्हारा ही है साम्राज्य 
तुम हो बड़े महान 
तुम्हे कोटि कोटि प्रणाम
अन्य सब्जियां तो दो-चार दिनों में ही हो जाती है खराब पर स्वाद तुम्हारा, हमेशा रहता है लाजवाब 
 क्योंकि तुम जमीन से जुड़े हो 
 धरती मां की कोख से हुए बड़े हो
 खुद कट जाते हो, हो जाते हो कुर्बान 
 पर लोगों के स्वाद का लगते हो बड़ा ध्यान
 हर भोजनप्रेमी के दिल पर करते हो राज
 हे मेरे आदर्श आलू और परमप्रिय प्याज
 तुम हो बड़े महान
 तुम्हे कोटि कोटि प्रणाम
 तुम्हारी सहज उपलब्धता और मिलनसार स्वभाव
  डाल देता है सब पर बडा ही प्रभाव
 तुम्हारा सब के साथ मिलजुल स्वाद बढ़ाने का करिश्मा 
   बढ़ा देता है तुम्हारे व्यक्तित्व की गरिमा 
  आज हर सब्जी में प्याज का प्रमुख स्थान है 
  और चाट और समोसे में आलू जी रहते विद्यमान हैं बरसती बरसात में जब कट पिट कर 
  बेसन से लिपट कर 
  उबलते तेल में कूदकर 
  जब पकोड़े का अवतार लेकर निकलते हो 
  सच बड़े प्यारे लगते हो 
  तुम्हारा यह बलिदान 
  बना देता है तुम्हें महान 
 हे आलू हे प्याज तुम हो महान
  तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम

मदन मोहन बाहेती घोटू
हे मेरे आदर्श आलू और परम प्रिय प्याज 
देश के हर रसोई में आज तुम्हारा ही है साम्राज्य 
तुम हो बड़े महान 
तुम्हेकोटि कोटि प्रणाम
अन्य सब्जियां तो दो-चार दिनों में ही हो जाती है खराब पर स्वाद तुम्हारा, हमेशा रहता है लाजवाब 
 क्योंकि तुम जमीन से जुड़े हो 
 धरती मां की कोख से हुए बड़े हो
 कुछ कट जाते हो, हो जाते हो कुर्बान 
 पर लोगों के स्वाद का लगते हो बड़ा ध्यान 
 हे मेरे आदर्शआलू और परमप्रिय प्याज
 तुम हो बड़े महान
 तुम्हारी सहज उपलब्धता और मिलनसार स्वभाव
  डाल देता है सब पर सहज ही प्रभाव
 तुम्हारा सब के साथ मिलजुल कर उसका स्वाद बढ़ाने का करिश्मा 
   बढ़ा देता है तुम्हारे व्यक्तित्व की गरिमा 
  आज हर सब्जी कितनी में प्याज का प्रमुख स्थान है और हर चाट और समोसे में आलू जी रहते विद्यमान हैं बरसती बरसात में जब कट पिट कर 
  बेसन से लिपट कर 
  उबलते तेल में कूदकर 
  जब पकोड़े का अवतार लेकर निकलते हो 
  सच बड़े प्यारे लगते हो 
  तुम्हारा यह बलिदान 
  बना देता है तुम्हें महान 
 हे आलू हे प्याज तुम हो महान
  तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

पुरानी यादें 

याद आते हैं वह दिन जो तुम्हारे साथ बीते थे 
सवेरे गैलरी में बैठ कर ,संग चाय पीते थे 

बड़ी मन में तसल्ली थी कोई जल्दबाजी थी 
बड़ा उन्मुक्त जीवन था ,खुशी थी,खुशमिजाजी थी
न थी ज्यादा तमन्नायें,और सपने में थोड़े थे 
शाम की चाय के संग मिलते बोनस में पकौड़े थे 
न चिंता ना परेशानी ,बड़ी मस्ती से जीते थे 
याद आते हैं वह दिन जो तुम्हारे साथ बीते थे 
सबेरे गैलरी में बैठ कर ,संग चाय पीते थे

पुरानी दास्ताने, दोस्तों की ,याद करते थे 
गया गुजरा न था, गुजरा जमाना ,बात करते थे निकलता दिन सवेरे कब, शाम को कैसे ढल जाता लगाकर पंख सारा वक्त था, कैसे निकल जाता 
न उलझन थी, न झंझट थे,सभी सुख और सुभीते थे
याद आते हैं वो दिन जो तुम्हारे साथ बीते थे 
सवेरे गैलरी में बैठ कर , संग चाय पीते  थे

मदन मोहन बाहेती घोटू 

अपने ही मेहमान हो गए

अपने घर में अपने वाले ही अपने मेहमान हो गए 
बस दो दिन के लिए आ गए समारोह की शान हो गए

अब शादी और समारोह में ,भीड़ जुटाना बड़ी भूल है
यूं ही वक्त की बरबादी है और खर्चा करना फिजूल है
पास किसी के समय नहीं है फिर भी पड़ जाता है आना हो करीब की रिश्तेदारी, पड़ता है व्यवहार निभाना
 वैसे रहते व्यस्त सभी है ,किंतु व्यस्तता इनकी ज्यादा
 मिलती नहीं जरा भी फुरसत,काम बोझ ने ऐसा बांधा 
फिर भी जैसे तैसे करके,वक्त निकाला और वो आए इतना था इसरार प्यार का , कि वो टाल उसे ना पाए
आए सबसे मिले,कृपा की,और फिर अंतर्ध्यान हो गए
 अपने घर में, अपने वाले, ही अपने मेहमान हो गए

घोटू
 
  

रविवार, 4 जुलाई 2021

अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल 
 लड़की एक जिया को भायी,दिल ना सक्यो संभाल खुशी फिरयो मैं नाच्यो नाच्यों, अपना जियो उछाल
 हुई सगाई सखा संग नाच्यो,खूब मचाई धमाल 
 शादी में ,बारात में नाच्यो,गले पड़ी वरमाल 
 बाद इशारन पर पत्नी के ,नाच रयो हर हाल
 शादी बाद गृहस्थी को फिर ऐसो फस्यो जंजाल
 अब दिन रात फिरत हूं नाच्यो, लाने रोटी दाल
 अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल

घोटू

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