जाओ चाय बना कर लाओ
बूढ़े बुढ़िया, मियां बीबी, बैठ बुढ़ापे में क्या करते
तनहाई में गप्प मारते ,अपना वक्त गुजारा करते
दुनिया भर की, इधर उधर की, बहुत ढेर सारी है बातें
कई बार जागृत हो जाती, पिछली धुंधली धुंधली यादें
मुझे देखने आए थे तुम ,पत्नी जी ने पूछा हंसकर
ऐसा मुझ में क्या देखा था, जो तुम रीझ गए थे मुझ पर
क्या वह मेरी रूप माधुरी थी या था वो खिलता चेहरा
या मेरी मासूम निगाहें, जिन पर पड़ा लाज का पहरा
या फिर मेरा खिलता यौवन,या मतवाली मुस्कुराहट थी
चोरी-चोरी तुम्हें देखना या फिर मेरी घबराहट थी
कुछ तो था जो तुम सकुचाए,रहे देखते मुझे एकटक
बढ़ी हुई थी मेरी धड़कन, धड़क रहा मेरा दिल धक धक
न तो बात की ना कुछ पूछा ना कुछ बोले नही कुछ कहा
यूं ही फुसफुसा,मां कानों में, तुमने झट से कर दी थी हां
मैं बोला सच कहती हो तुम,मै था बिल्कुल भोला भाला
पहली बार किसी लड़की को पास देखकर था मतवाला
यूं कॉलेज में ,यार दोस्त संग हम लड़की छेड़ा करते थे
लेकिन बात बिगड़ ना जाए ,हम घबराते और डरते थे
पहली बार तुम्हें देखा था जीवन साथी चुनने खातिर
तुम सुंदर थी भोली भाली रूप तुम्हारा था ही कातिल
तुम्हें देख कर परख रहा था ,पत्नी बनी लगोगी कैसी
फिर तुम्हारी शर्माहट और सकुचाहटभी थी कुछ ऐसी
तुम जो ट्रे में लिए चाय के ,प्याले आई थी घबराते
हाथों के कंपन के कारण, चाय भरे प्याले टकराते उनकी टनटन का वह मधु स्वर मेरे मन को रिझा गयाथा
दिया चाय का प्याला जिसमें अक्स तुम्हारा समा गया था
यह प्यारा अंदाज तुम्हारा, लूट ले गया मेरा मन था पहली चुस्की नहीं चाय की,वह मेरा पहला चुंबन था फिर आगे क्या हुआ पता है तुमको और मालूम मुझे है
पति पत्नी बन जीवन काटा,मस्ती की और लिऐ मजे हैं
अपनी पहली मुलाकात को, एक बार फिर से दोहराओ
वक्त हो गया, तलब लगी है जाओ चाय बना कर लाओ
मदन मोहन बाहेती घोटू
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