बदलाव
दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं
मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई
ना तो कोई धर्मशाला ना सराय है ,
मैं तलाशता, मिलता नहीं बसेरा कोई
कहीं आजकल प्यास बुझाने प्याऊ लगती,
ना मिलता माटी मटके का ठंडा पानी
ना तो कोई कुआं दिखता है ना पनघट है ,
ना ही पानी भरती पनिहारिने सुहानी
कुछ पल मैं, विश्राम करूं ,बैठूं निरांत से
बहुत ढूंढता मिल पाता ना, डेरा कोई
दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं,
मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई
अब संयुक्त परिवार ना रहे पहले जैसे
बिखर गए सब भाई बहन और चाचा ताऊ
अपनों में ही अपनेपन का भाव ना रहा,
सारे रिश्ते ,अब बनावटी और दिखाऊं
जिसके संग जी खोल कर सकूं बातें दिल की ,
ऐसा मुझको नजर न आता मेरा कोई
दिल के टूटे बर्तन किस से ठीक कराऊं
मुझे गांव में मिलता नहीं ठठेरा कोई
मदन मोहन बाहेती घोटू
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