बारिश तब और अब
अब भी पानी बरसा करता, अब भी छाते बादल काले पर अब आते मजे नहीं है, वह बचपन की बारिश वाले
अब ना घर के आगे कोई, बहती है नाली पानी की,
ना कागज की नाव बनाकर बच्चे उसमें छोड़ा करते
नहीं भीगने से डर लगता, बारिश का थे मजा उठाते,
नंगे पैरों छप छप छप छप ,उसके पीछे दौड़ा करते
अब न कबेलू वाली छत है ,जिससे टप टप टपके पानी जहां-जहां चूती छत ,नीचे बर्तन और पतीला रखना
पूरे परिवार के संग, बैठ मजा लेना बारिश का,
और वह मां का बड़े प्यार से, गरमा गरम पकौड़े तलना
वह बारिश में भीग नाचना,उछल कूद और करना मस्ती, जब स्कूल की रेनी डे की छुट्टी की थी घंटी बजती
बना घिरोंदे गीली माटी से, खुश होना खेला करना
हरी घास पर लाल रंग की बीरबहूटी जब थी मिलती
तब बादल की गरज और थी, तब बिजली की चमकऔरथी ,
रिमझिम मस्त फुहारों में जब ,नाचा करती वर्षा रानी
तब बारिश में जीवन होता, मेह के संग था नेह बरसता,
अब तो केवल आसमान से, बस बरसा करता है पानी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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