तेरी संगत
तेरा स्पर्श पा मेंहदी ,बदल निज रंग देती है ,
हरी रंगत हिना की भी,है रच कर लाल हो जाती
तुझे छू तैरने लगते ,गुलाबी डोरे आँखों में ,
उबलता खूं है,हालत बावरी ,बदहाल हो जाती
तेरे होठों की लाली जब,मेरे होठों से लगती है ,
तबियत मस्तियों से मेरी मालामाल हो जाती
बड़ी सजती संवरती है ,तू मेरा दिल लुभाने को ,
मगर बाहों में बंध सजधज,सभी बेकार हो जाती
खफा मुझसे तू जब होती,मज़ा आता मनाने में ,
कभी तू फूल सी कोमल,कभी तलवार हो जाती
बताऊँ क्या ,मेरे दिल पर कि उस दिन क्या गुजरती है ,
किसी दिन प्यार की अपने,अगर हड़ताल जाती
रंग लिया इस कदर तूने,मुझे है रंग में अपने ,
नहीं मिलती अगर तू जिंदगी दुश्वार हो जाती
तेरे क़ानून ही चलते है सारी जिंदगी मुझ पर,
उमर की कैद ,शादी कर,है जब एकबार हो जाती
हमारे देश की सरकार बनती ,पांच सालों की ,
मगर तू जिंदगी भर के लिए , सरकार हो जाती
आदमी अपनी शख्सीयत तलक भी भूल जाता है ,
डूब कर प्यार में ये जिंदगी गुलजार हो जाती
तुम हो दुल्हन,हम है दलहन,पकाती हो हमें तब तक ,
तुम्हारे स्वाद के माफ़िक़ ,न जब तक दाल हो जाती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'