एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

तेरी संगत


          तेरी संगत

तेरा स्पर्श पा मेंहदी ,बदल निज रंग देती है ,
               हरी रंगत हिना की भी,है रच कर लाल हो जाती
तुझे छू  तैरने लगते ,गुलाबी डोरे आँखों में ,
              उबलता खूं है,हालत  बावरी ,बदहाल हो जाती
तेरे होठों की लाली जब,मेरे होठों से लगती है ,
               तबियत मस्तियों से मेरी  मालामाल हो जाती
बड़ी सजती संवरती है ,तू मेरा दिल लुभाने को ,
               मगर बाहों में बंध सजधज,सभी बेकार हो जाती
खफा मुझसे तू जब होती,मज़ा आता मनाने में ,
                कभी तू फूल सी  कोमल,कभी तलवार  हो जाती
बताऊँ क्या ,मेरे दिल पर कि उस दिन क्या गुजरती है ,
                 किसी दिन प्यार की अपने,अगर हड़ताल जाती
रंग लिया इस कदर तूने,मुझे है रंग में अपने ,
                 नहीं मिलती अगर तू जिंदगी दुश्वार   हो जाती
तेरे क़ानून ही चलते है सारी जिंदगी मुझ पर,
                  उमर की कैद ,शादी कर,है जब एकबार हो जाती
हमारे देश की सरकार बनती ,पांच सालों की ,
                  मगर तू जिंदगी भर के लिए , सरकार  हो जाती
आदमी अपनी शख्सीयत तलक भी भूल जाता है ,
                   डूब कर प्यार में ये जिंदगी  गुलजार  हो जाती
तुम हो दुल्हन,हम है दलहन,पकाती हो हमें तब तक ,
                    तुम्हारे स्वाद के माफ़िक़ ,न जब तक दाल हो जाती 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नहले पर दहला

           नहले पर दहला

एक दिन  अपनी बीबी को,कहा मैंने चिढ़ाने को,
                गया हूँ मैं बहुत बोअर  ,बदलने टेस्ट जाना है
इसलिए सोचता हूँ मैं ,चला ससुराल ही जाऊं ,
                 मज़ा संग छोटी साली के ,मुझे दूना ही आना है
ससुर और सास का कुछदिन, मिलेगा लाड़  भी मुझको,
                  संग सलहज के मस्ती में,मुझे टाइम  बिताना है 
कहा पत्नी ने खुश होकर ,बताओ जा रहे कब,
                   मेरे जीजाजी को भी थोड़े दिन ,मुझ संग बिताना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                          

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

मॉर्निग वाक

              मॉर्निग वाक

सवेरे गर्मियों की छुट्टियों में घूमते बच्चे ,
क्योंकि एक तंदुरस्ती में ,हज़ारों ही नियामत है
जवां कुछ मर्द ,महिलायें ,भी अक्सर घूमते मिलते ,
जिन्हे है फ़िक्र फिगर की,और सेहत की जरूरत है
बुढ़ापे में भी  सुबह उठ   घूमना  बेहद  जरूरी  है ,
शुगर कंट्रोल में रहती ,नहीं बढ़ता है ब्लडप्रेशर
सवेरे घूमते,दिख अगर जाते ,कुछ हसीं चेहरे ,
ख़ुशी होता है मन और तन,तरोताज़ा रहे दिन भर

घोटू  

सबसे अच्छा केरियर

          सबसे अच्छा केरियर

हमसे ये पूछा बेटे ने ,करू क्या काम लाइफ में ,
               कमाऊँ खूब पैसा और मेरा नाम  हो जाये
न तो मुझको ,पड़े करनी ,रातदिन ,रोज की मेहनत ,
               करूं थोडा परिश्रम ,जिंदगी आसान हो जाये
बात सुन कर ये बेटे की,पिताजी मुस्करा बोले ,
               कि ऐसा केरियर तो बेटे केवल राजनीति है ,
इलेक्शन  में करो तुम भागादौड़ी सिर्फ दो महीने ,
               एम पी बन गए तो उम्र भर ,आराम  हो जाये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंहगा पानी

          मंहगा   पानी
दिल्ली में मंहगा हो गया है ,पानी इस कदर
मुश्किल से शुद्ध पानी , होता है  मयस्सर 
पूरा जो पानी भरवाना तो रेट अलग है ,
जाते है भरे गोलगप्पे ,आधे आजकल

घोटू 

हम और तुम

          हम  और तुम

तुम हलवे सी नरम,मुलायम ,और करारा मैं पापड़ सा,
                 खाकर देखो , पापड़ के संग ,हलवा बड़ा मज़ा देता है
तुम आलू का गर्म परांठा,और  दही मैं ताज़ा  ताज़ा ,
                 साथ दही के,गरम परांठा ,सारी  भूख मिटा  देता है
तुम मख्खन की डली तैरती ,और मैं हूँ मठ्ठा खट्टा सा,
                 मख्खन में वो चिकनापन है,जो सबको फिसला देता है
हम दोनों में  फर्क बहुत है ,हैं विपरीत स्वभाव  हमारे , 
                फिर भी तेरा मेरा मिलना ,तन मे आग लगा देता है
 
   मदन मोहन बाहेती'घोटू'                             

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

चुनाव के प्रत्याशी-तरह तरह के

         चुनाव के प्रत्याशी-तरह तरह के
                            १
               हम भी लड़े प्रत्याशी 
प्रत्याशी बारह  तरह,किसका करे बखान
'हम भी लड़े चुनाव में,हो जाएगा नाम 
                           २
             पब्लिसिटी प्रेमी
टी वी और अखबार में,हो जाएगा नाम
इसीलिये चुनाव में,उतरे कुछ अनजान
                     ३
          पेराशूट प्रत्याशी
जिनने पहले ना कभी ,देखा था जो गाँव
उतरे  पेराशूट से ,लड़ने  वहाँ  चुनाव
                      ४
          बहुत बूढ़े प्रत्याशी
उम्र पिचासी कब्र में ,लटके जिनके पाँव
पर सत्ता के मोह में ,लड़ते रहें चुनाव
                      ५
             दलबदलू प्रत्याशी
बांह दूसरी थाम ली ,    देख डूबती नाव
टिकिट मिला परसाद में,लड़ने लगे चुनाव
               ६ 
     रिजर्व   प्रत्याशी 
सरकारी नीती करे ,कोई सीट रिजर्व
वो भी लड़े चुनाव है,जो ना करे डिजर्व
                     ७
        वोट काटू प्रत्याशी
कौमी लीडर कर रही ,जाति  जिसे सपोर्ट
उस जाति को दे टिकिट,काटो उसके वोट
                      ८
         लालची प्रत्याशी
होते खड़े चुनाव में,लेकिन दे  जो माल
देकर उसे सपोर्ट ये ,कर लेंते  विड्राल 
                     ९
        पुश्तेनी प्रत्याशी
दादा फ्रीडम फाइटर ,नेता है माँ  बाप
पोते पोती ले रहे,देखो इसका  लाभ 
                      १०
               शहीद प्रत्याशी 
मोटी हस्ती सामने ,होगी हार नसीब
फेंके जाते जंग में ,होने वहाँ  शहीद
                       ११
             निर्दलीय प्रत्याशी
जिनको पार्टी ने दिया ,नहीं टिकिट इस बार
निर्दलीय  बन इलेक्शन , वो,लड़ने तैयार
                           १२
                   रईस प्रत्याशी        
   गाँव गाँव घूमो फिरो,अपना खून जलाओ
राज्य सभा का टिकिट तुम,कुछ करोड़ में पाओ                     
        
मदन मोहन बाहेती'घोटू'                  

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

शादी के बाद

               शादी के बाद
                         १

आते है हमको याद ,जवानी के प्यारे  दिन,
                  मस्ती थी मन में,मौज थी,अपने भी ठाठ थे
मरती थी हमपे लड़कियां,कॉलेज की  सभी,
                    हम चुलबुले थे,तेज थे, लगते स्मार्ट थे 
उनसे जब मिले ,जाल में हम उनके फंस गए ,
                     शादी हुई और बने उनके स्वीटहार्ट  थे
वो मीठी प्यारी रसभरी ,रसगुल्ले की तरह,
                      चटखारे लेके खानेवाली,हम भी चाट थे
अब हाल ये है ,टोकती हर बात पर हमें,
                      हरदम हमारी बीबी हमें ,रखती डाट के
दफ्तर में पिसें ,घर में  भी सब काम करें हम,
                      धोबी के गधे बन गए,घर के न घाट  के
                               २
किस्मत ने  हमारी ये चमत्कार दिखाया
बीबी ने हमपे इस तरह उपकार दिखाया
होटल से खाना आएगा ,बरतन तुम मांझ लो,
कम काम का बोझा किया और प्यार दिखाया
                        ३
वो जा रही थी रूठ कर के,मइके ,माँ के घर,
       हमने जो छींका,अपशकुन कह कर ठहर गयी
जाता है टूट छींका भी बिल्ली के भाग्य से ,
         'घोटू' हमारी  छींक ,ऐसा  काम  कर  गयी
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

सोमवार, 31 मार्च 2014

मेरे मन की भी सुन लेते

       मेरे मन की भी सुन लेते

तुमने जो भी किया ,किया बस,जो आया तुम्हारे मन में ,
अपने मन की सुनी ,कभी तो,मेरे मन की भी सुन लेते

जब हम तुम थे मिले,मिल गए ,बिन सोचे और बिना विचारे
 तब तुम तुम थे ,और मैं ,मैं थी,अलग अलग व्यक्तित्व हमारे
शायद ये विधि का लेखा था , किस्मत से मिल गए ,आप,हम
तुम गंगा थे,मैं जमुना  थी, किन्तु हुआ जब अपना  संगम
 हम मिल कर एक सार हो गए ,दोनों  गंगा धार हो गए ,
 अपना ही वर्चस्व जमाया ,जमुना के भी कुछ गुन लेते
अपने मन की सुनी ,कभी तो ,मेरे मन की भी सुन लेते
ये सच है कि हम तुम मिल कर, विस्तृत और विराट हो गए               
कितनो को ही साथ मिलाया , चौड़े  अपने  पाट  हो गए
मैं अपने  बचपन की यादें,राधा और कान्हा  की बातें
वृन्दावन में छोड़ आ गयी ,तुम संग भागी ,हँसते ,गाते
पकड़ तुम्हारी ऊँगली तुम संग, चली जहां तुम मुझे ले गए,
मिलना था खारे सागर से ,किसी और का संग  चुन लेते
अपने मन की सुनी कभी तो,मेरे मन की भी सुन लेते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्यार और बीमारी

         प्यार और बीमारी

दे मीठी मीठी पप्पियाँ ,बचपन से आजतक,
                      लोगों ने मेरे खून में मिठास बढ़ाया
तेजी से इतनी तरक्की की चढ़ी सीढ़ियां ,
                      धड़कन ने बढ़ कर, खून का दबाब बढ़ाया
उनसे मिलन की चाह में ,ऐसा जला बदन,
                       लोगों को लगा ,हमको है बुखार हो गया
 जबसे है उनके साथ  हमने  नज़रें  लड़ाई ,
                        ऐसी लड़ी  लड़ाई है कि प्यार हो गया
यूं देखते ही देखते ,दिल का सुकून गया ,
                        हम सो न पाते ,रात की नींदें है उड़ गयी
रहते हैं खोये खोये हम उनके ख़याल में ,
                        जोड़ी हमारी ,जब से उनके साथ जुड़ गयी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                       

सच्चा प्यार

          सच्चा प्यार

कहा गदहे ने गदही से ,उठा कर प्यार से टांगें,
 तेरे चेहरे में ,मुझको ,चाँद का  दीदार होता है
तेरी आहट भी होती है ,महक जाती मेरी दुनिया ,
गदही  बोली ये होता है जब सच्चा प्यार होता है
ढेर से कपड़ों का बोझ ,दिया जब लाद  धोबी ने ,
वो बोली क्यों हमारे साथ ये हर बार होता है
हमारे प्यार में हरदम अड़ंगे डालता  रहता ,
बड़ा बेरहम ,जालिम कितना ये संसार होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'



राज़ की बात

         राज़ की बात

मैं अपनी बीबी की जब खामियां उनको बताता हूँ,
              वो कहती है पसंद कर ,आप ही तो मुझको लाये थे
देखने आये थे जब मुझको अपने मम्मी पापा संग ,
               देख कर हमको कितने खुश हुए थे,मुस्कराये थे
कहा हमने कि बेगम , राज़ की एक बात  बतलायें ,
                तुम्हारी मम्मी के जलवे ,पसंद पापा को आये  थे
और ये सोच करके कि मज़ा समधन का लूटेंगे ,
                 उन्होंने 'हाँ' करी और ,हम तेरे    चंगुल  में आये थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 30 मार्च 2014

आतंकवादी

             आतंकवादी 

खुले से वस्त्र पहने, बदन वो अपना दिखाते है ,
जरा सा छू लिया तो हमको वो बदनाम करते है
दिखा कर नाज और नखरे ,हमें पहले रिझाते है,
पटाने हम को सजते ,कितने ताम और झाम करते है
अगर शादी करो तो घर की सत्ता  ले के हाथों में,
नचा कर उँगलियों पर पति को,गुलाम करते है
अदा से मुस्करा कर ,लूट लेते है ये मर्दों को ,
ये वो आतंकवादी है  जो कत्लेआम  करते है

घोटू
 

न्यूक्लियर फॅमिली


         न्यूक्लियर फॅमिली

मियां और बीबी दोनों आजकल ,इतना कमाते है
दिन भर काम करते ,रात तक हो  पस्त जाते है
नहीं हिम्मत किसी में कि पकाये गर्म वो खाना ,
गरम कर माइक्रो में फ्रीज़ का ,खाना वो खाते है
नहीं है चैन ना आराम इतने व्यस्त  रहते है ,
प्यार करने का बस दस्तूर वे केवल निभाते है
एक सन्डे ही मिलता है ,देर तक उठते है सो कर ,
किसी होटल में जाकर गर्म खाना ,मिल के खाते है
अगर बच्चा हुआ पैदा ,कौन, कैसे ,संभालेगा ,
इसलिए बच्चे के ही नाम से वो  घबरा जाते है
लगाई उनसे उम्मीदें थी उनके मम्मी पापा ने ,
मदर  और फादर डे पर ,कार्ड देकर के निभाते है
है 'घोटू' न्यूक्लीयर बम से खतरा सारी दुनिया को ,
मगर हम 'न्यूक्लीयर फॅमिली'को खतरा बताते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

प्यार का सबूत

          प्यार का सबूत

गए वो दिन कि अपना प्यार उनसे कितना दिखलाने ,
चीर कर सीना ,दिल में बसी है, तस्वीर  दिखलाओ
आजकल  प्यार दिखलाने का ,सीधा सा तरीका है ,
अपने मोबाइल पे 'वाल पेपर' उनका  लगवाओ

घोटू



घोटू

युग परिवर्तन

         युग परिवर्तन
हमें है याद बचपन में ,पिता से इतना डरते हम ,
कभी मुश्किल से उनके सामने भी सर उठाया था
और बच्चे  आजकल के हो गये है  स्मार्ट अब इतने ,
पूछते बाप से कि मम्मी को कैसे पटाया  था ?

घोटू

अबकी बार- मोदी सरकार

          अबकी बार- मोदी सरकार
  
आदमी आम जो कि बेचता था चाय बचपन में ,
                      हमारे देश का वो एक दिन पी एम  हो जाए
कभी सेना के जनरल थे,बने मंत्री  सुरक्षा के ,
                      हमारे देशकी सरहद पे अमन-ओ-चैन हो जाए
विदेशों में जमा पैसा ,हमारा लौट कर अाये ,
                      तरक्की देश की हो फले फूलें,सभी मुस्काये
घटे मंहगाई ,चीजें सस्ती हो,सबको मुहैया हो,
                       बंद हो रिश्वतखोरी और करप्शन बेन हो जाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'       

शनिवार, 29 मार्च 2014

तीन चतुष्पदियाँ

         तीन  चतुष्पदियाँ
                   १
                 बीमा
अपने संतानों के खातिर ,सोचते  है कितना  हम
मर के भी उनके लिए , कुछ न कुछ कर जाएँ हम 
काट कर  के पेट अपना ,भरते बीमा  प्रीमियम
मिलेगा बच्चों को पैसा ,जब हमें ले जाए   यम
                              २
                      फल
जिंदगी अपनी लुटाते है  हम जिनकी चाह मे
जीते जी, पर  बुढ़ापे में , पूछते  ना   वो   हमें
सोचते ये देख मुझको,आम्र के तरु  ने कहा ,
बोया तुम्हारे पिता ने , दे रहा हूँ , फल तुम्हे
                              ३
                      दान पुण्य
बोला पंडित ,दान करले ,काम ये ही आयेगा
मरने पर इस पुण्य से ही,मोक्ष को तू पायेगा
मैंने  सोचा जन्म अगला,मेरा सुधरे या नहीं ,
दान पाकर,जन्म पंडित का सुधर ,पर ,जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रिजर्वेशन -स्वर्ग का

               रिजर्वेशन -स्वर्ग का

बोला पंडित ,स्वर्ग में ,बहलायेगी मन अप्सरा ,
और नरक की यातना से,मुक्ती  भी पा लीजिये
चढ़ा  मंदिर में चढ़ावा,  ब्राह्मणो को दान दे,
रिजर्वेशन ,स्वर्ग का ,खुल्ला है ,करवा लीजिये
हमने पंडितजी से बोला ,इतनी जल्दी ना हमें ,
जिंदगी का ले रहे सुख ,हम हैं खुश इस हाल में
आएगा  जब वक़्त वो,पैसा तो ज्यादा लगेगा ,
रिजर्वेशन  स्वर्ग का ,मिल जायेगा 'तत्काल' में   

घोटू

बिना मौसम के बरसात

      देहली की असमय बरसात पर
            देश के तीन नेताओं के ,
                सामयिक भाषण
                         १
         राहुल गांधी का बयान
दोस्तों! गर्मी में हमने ,ऐसी ठंडक लायी है ,
    गर्मियों में बारिशों का  भी  मज़ा  ले लीजिये
'बारिश के अधिकार ' का बिल पास हम करवाएंगे ,
      इसलिए इस इलेक्शन में बोट हमको दीजिये 
                           २
          अरविन्द केजरीवाल का बयान
मित्रो !ये कांग्रेस और बी जे पी तो पहले से ही मिली थी ,
अब इन्होने 'इन्द्र देवता 'को भी अपने साथ मिला लिया है
आम आदमी का गरीबी में यूं ही आटा गीला था ,
इन्होने बारिश करवा के और भी गीला करवा दिया है
ये मै नहीं कह रहा हूँ,ये देश की जनता कह रही है
इसलिए आप पार्टी को बोट देना ही सही है
                        ३
          नरेंद्र मोदी  का बयान
 भाइयों और बहनो !ये शहजादा घबराता है ,
जब इतने लोगों की भीड़ मेरी रैली में आती है
इसलिए उसने मौसम विभाग से मिल कर,
बिना मौसम के बरसात करवा दी है
वो चाहता है करना बर्बाद
मेरी गर्म गर्म चाय का स्वाद
इसलिए बोट देते समय ,
हमेशा बी जे पी को रखे याद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

कुछ दोहे आज के हालात पर


अब हाशिये पे हम

            अब हाशिये पे हम

अब क्या सुनाएँ आपको ,अपनी कहानी हम
आँखें न कहीं आपकी ,हो जाए सुन के नम
बचपने में बड़े भोले और  मासूम से थे हम
आयी जवानी ,शोखियों का ,था गजब आलम
आया है मगर जब से ,बुढ़ापे का ये मौसम
ना तो इधर के ही रहे और ना उधर के हम
लड़ते ही रहे जमाने से जब तलक था दम
देखें है हमने हर तरह के बदलते  मौसम
कुछ इस कदर से ,बुढ़ापे ने ढायें है सितम  
सचमुच परेशां ,अपनोकी ही बेरुखी से हम
और लिखते लिखते जिंदगी की दास्ताने गम
पन्ना है पूरा भर गया अब  हाशिये पे हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

आज अगर जो तुम मिल जाते …

        आज अगर जो तुम मिल जाते   …

आज अगर जो तुम मिल  जाते ,दिल मेरा खिल जाता
होती दूर वेदना दिल को ,कुछ सुकून मिल जाता
शीतल मस्त पवन के झोंके से आ मुझसे मिलते ,
तप्त ह्रदय बेचैन बहुत था ,कुछ तो राहत   पाता
               हम पागल से इंतजारमें ,बैठे पलक बिछाए
               लेकिन तुमको ना आना था ,और नहीं तुम आये
               इतने बेदर्दी निकलोगे ,ये विश्वास नहीं था ,
                प्रीत लगा कर ,तुमसे प्रीतम,हम कितने पछताए 
ना तो होली,ना दीवाली,ना बसंत ना सरदी
हर मौसम में याद तुम्हारी ,आई मुझे बेदरदी
इतनी अगर आरजू करती ,ईश्वर भी मिल जाता,
पर तुमने तो बेगानेपन की ,सचमुच हद करदी
               बहुत दिनों से तरस रही हूँ,पर अब मत तरसाओ
                अब गरमी का मौसम आया,प्रीतम तुम आ जाओ
                विरह ताप से सूख रही है,प्रेमलता  दीवानी ,
               बन  कर प्यार फुहार बरस कर अब इसको सरसाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दास्ताने इश्क़


          दास्ताने  इश्क़

ऐसा तुम्हारे इश्क़ का छाया जूनून था ,
                 हम पागलों से ,आप के पीछे थे पड़ गये
एक दिन हमारी आशक़ी ,रंग लायी इस कदर,
                 आकर हमारी बाहों में ,तुम खुद  सिमट गए
दावत तो दी थी आपने और भूखे भी थे हम,
                 लेकिन ये मन ,माना नहीं और हम पलट गए
बदनाम ना कर दे तुम्हे बेदर्द ज़माना ,
                    ये सोच कर   के हम  ही थोड़े पीछे हट गए

घोटू  
   

लेन -देन

          लेन -देन

            जिससे तुमको कुछ मिलता है ,   
                 उसको  कुछ  देना  पड़ता है,
    ये लेन देन की रीत पुरानी ,मगर निभानी पड़ती है
                     जो कुत्ते पाला करते है ,
                     वो ही ये बात जानते है ,
स्वामीभक्तों की विष्ठा तक भी ,उन्हें उठानी पड़ती है
   
घोटू

बुधवार, 26 मार्च 2014

जाने क्या मैंने कही ------- ----जाने क्या तूने कही

जाने क्या मैंने कही -------    ----जाने क्या तूने कही
             
तुम मेरा सच्चा पेशन हो -----तुम उम्र  भर की पेंशन हो
 तुम मेरी स्वीट हार्ट हो   ------तुम मेरा क्रेडिट कार्ड हो
तुम मेरे जीवन का हर्ष हो  ---- तुम मेरा प्रीविपर्स   हो
तुम खुशियों की खान हो ------तुम सोने की खदान हो
तुम स्वादिष्ट और लजीज हो ----तुम बड़े कामकी चीज हो
तुम मेरे दिल की रानी  हो -------तुम बहुत बड़ी  हैरानी  हो
तुम मर्सीडीज कार सुन्दर हो ---तुम ट्रक का पुराना मॉडल हो
तुम पूनम चाँद सी ब्राइट हो ---- तुम फ्यूज होती ट्यूब लाइट हो
तुम चटपटी केरी मज़ेदार हो ---तुम आम का पुराना अचार  हो
तुम स्वाद माखनी दाल हो ------तुम बेंगन का भड़ता ,कमाल हो
तुम मदिरा की बोतल हसीन हो ---तुम बोतल में बंद जिन   हो
 हम कितने विपरीत  नज़र आते है --पर एक दूजे के काम आते है
                    तभी तो जीवन साथी कहलाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सितम-गर्मियों का

         सितम-गर्मियों का

गाजरों में रस बहुत कम हो गया है,
                        संतरे भी सूखने अब लग गए है
कल तलक थे सख्त कच्ची केरियों से ,
                        डालियों पर आम पकने लग गए है  
अब गरम चाय की चुस्की ना सुहाती ,
                        ठंडी लस्सी दही की मन भा रही है
कभी चिकनी हुआ करती थी कमल सी, 
                        वो त्वचा  भी आजकल कुम्हला रही है
इस तरह हालत बदले गर्मियों में,                  
                        गर्म मौसम मगर, हम ठन्डे पड़े है 
पेड़ से पत्ते ज्यों गिरते पतझड़ों में ,
                         उस तरह अरमान इस दिल के झड़े है
घटे कपडे ,बदन खुल्ला देख कर के ,
                         भावनाएं दिल की तो भड़का करे है 
सर्दियोंमे दुबकते थे पास आकर ,
                          गर्मियों में दूर ,वो रहते परे   है
नींद यों भी ठीक से आती नहीं है ,
                           उस पे मच्छर भिनभिनाते,काटते है
क्या बताएं गर्मियों की रात कैसे,
                            बदल कर के करवटें ,हम काटते है
तपन गर्मी की जलाती है बदन को ,
                             पसीने से चिपचिपा तन हो गया है
इस तरह ढाये सितम है गर्मियों ने ,
                             अब मज़ा सारा मिलन का  खो गया है

मदनमोहन बाहेती'घोटू'   

रविवार, 23 मार्च 2014

हम सभी टपकने वाले है

 हम सभी टपकने वाले है

विकसे थे कभी मंजरी बन, हम आम्र तरु की डाली पर ,
         धीरे धीरे फिर कच्ची अमिया ,बन हमने  आकार  लिया
थोड़े  असमय ही टूट गए,आंधी में और तूफ़ानो में,
          कुछ को लोगों ने काट, स्वाद हित, अपने बना अचार लिया
कुछ लाल सुनहरी आभा ले ,अपनी किस्मत पर इतराये ,
            कुछ पक कर चूसे जायेंगे ,कुछ पक कर कटने वाले है 
कुछ बचे  डाल पर सोच रहे ,कल अपनी बारी आयेगी ,
           सब ही बिछुड़ेगें डाली से  ,हम सभी  टपकने वाले  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

न होली ना दिवाली है

                 न होली ना दिवाली है

अजब दस्तूर दुनिया का ,प्रथा कितनी निराली है
खता खुद करते, लेकिन दूसरों को देते गाली है
न तो जलती कहीं होली,न ही दीपक दिवाली  के,
भूख से पेट जब जलता ,न होली ना  दिवाली  है
अगर खींचो ,चढ़े ऊपर ,ढील दो तो जमीं पर है,
हवा में उड़ रही कोई ,पतंग तुमने सम्भाली है
पराया माल फ़ोकट में ,बड़ा ही स्वाद लगता है,
मज़ा बीबी से भी ज्यादा ,हमेशा देती साली है
अगर वो कोठरी काली है जिससे हम गुजरते है,
सम्भालो लाख ,लेकिन लग ही जाती लीक काली है 
भले एक बार खाते पर, मज़ा दो बार लेते  है ,
मनुज से तो  पशु अच्छे ,वो जो करते जुगाली है
जमा करने की आदत में,ऊँट हम सबसे अव्वल है ,
 खुदा ने  पानी की टंकी ,जिस्म में उनके  डाली है
छोड़ बाबुल का घर जाती ,किसी की बन वो घरवाली ,
किसी औरत के जीवन की ,प्रथा कितनी निराली है
सुनो बस बात तुम मीठी ,मिठाई ना मयस्सर है ,
खुदा  ने चाशनी 'घोटू 'के खूं  में, इतनी  डाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

इस देश को तो बस आम औरत चलायेगी.....


सुनो जी, 
सुना है तुमने 
चुनाव चिन्ह 
हमारा झाड़ू चुना है?
हम भी 
चुनाव चिन्ह
अपना बेलन चुने क्या?
सड़क पर सरेआम
तुम्हारे सिर पर 
धुनें क्या?
गंदगी करो तुम 
और सफाई करे हम?
झाड़ू ले के भर रहे
आम आदमी का दम?
घर तो संभलता नहीं
देश क्या सँभालोगे,
दो बच्चे तो पलते नहीं 
करोड़ों तुम क्या पालोगे?
इस देश को तो बस
आम औरत चलायेगी,
संसद में ढंग से
अब चूल्हा जलायेगी...
नेता निकम्मों पे 
अब चिमटा चलेगा,
मक्कारों के सिर पे
अब बेलन बजेगा...
सरकारी कचरे पे
झाड़ू लगा देंगे,
जहां दाग-धब्बे हों
पोछा लगा देंगे...
रिश्वत जमाखोरी 
कालाबाजारी,
निपटेगी इनसे
अब सैन्डल हमारी...
हरामखोरी बंद अब
काम सब करेंगे,
अमीरों का कुछ हिस्सा
गरीबों के नाम करेंगे...
बातें भी खूब होंगी
काम भी खूब होगा,
देश के मेकअप का
तामझाम भी खूब होगा...
मंदिर और मस्जिद 
के लफड़े जो होंगे,
जानलेवा नहीं 
मुंह के झगड़े ही होंगे...
तू-तू-मैं-मैं करके
मुंह हम फुला लेंगे,
कभी खुश हुए तो
हम ही बुला लेंगे...
मोलभाव का जौहर हम
पूरी दुनिया में दिखायेंगे,
अपना सामान महँगा और 
दूसरे का सस्ता हम करायेंगे...
भैया, बेटा, मुन्ना 
और बाबू कर करके,
दिखा देंगे दुनिया पर
राज भी हम करके...
चर्चित तुम्हे इस मुहिम में
हमारे साथ रहना है,
कविताबाजी छोड़ो तुम्हें
कान्हा जैसा बनना है...

- विशाल चर्चित 

शनिवार, 22 मार्च 2014

वोट किसे दें ?


          वोट किसे दें ?

चुनाव में ढेर सारे प्रत्याशी
आपकी अनुकम्पा के अभिलाषी
अपनी अपनी पार्टी,अपने अपने वादे
अपने अपने सपने,अपने अपने इरादे
इसके पहले कि हम किसी को चुने
अपने दिल और दिमाग की सुने
एक बार ठीक से सोचे,विचारे
उनके किये गए कार्यों पर नज़र  डाले
पिछली बार आपने था  जिन्हे वोट दिया
उनने कितना और कैसा काम किया
पिछली बार कितने बड़े बड़े सपने थे दिखाए
कितने वादे किये थे,कितने निभाये
धर्म के नाम पर लोगों को भड़काया या नहीं 
 जातिवाद का लाभ उठाया या नहीं
सेवा के नाम पर कितनी की कमाई
कितने दल बदले, कितनी रिश्वतें खाई
कितनो का दिल दुखाया और सताया
कितने भाई  भतीजों को फायदा पहुँचाया 
क्योंकि हमने खाया है बहुत धोखा
और आज ही है वो मौका
 हम करें इनके कारनामो का लेखाजोखा 
क्योंकि आज अगर उनकी मीठी बातों में आ जायेंगे
तो कल पछतायेंगे
क्योंकि ये तो दिल्ली चले जायेंगे
और पांच  साल बाद नज़र   आयेंगे
आप अपनी तकलीफें और दर्द किसे बताएँगे
 इसलिये हम पहले अच्छी तरह  परखें ,जाने
उनके गुण दोष और काबलियत पहचाने  
और फिर तय करें कि वो सत्ता,
 में आने के लायक है या नहीं ?
हमारे वोट पाने के लायक है या नहीं ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

फाइव स्टार डिनर

         फाइव स्टार डिनर

जा फाइव स्टार में ,खरचो तीन हज़ार
फिर भी खाते तुम वही ,लूखी रोटी,दाल
लूखी रोटी,दाल,खरच कर इतना पैसा
फिर भी स्वाद नहीं मिल पाता घर के जैसा
वोही भिन्डी और वोही बेंगन का भड़ता 
खाली होती जेब पेट मुश्किल से भरता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तीन राजनैतिक व्यंग

     तीन राजनैतिक व्यंग

          

    जंगल का क़ानून

'युकिलिप्टिस 'के पेड़ की तरह ,

एकदम तेजी से मत बढ़ो,

एकदम सीधे मत रहो ,

वर्ना पांच सात साल बाद ,

काट दिए जाओगे ,

जंगल का ये ही क़ानून है      

               2

      पतझड़ के पत्ते
पतझड़ के पत्ते ,
जब अपनी डाल  को छोड़ कर,
हवा के झोंकों के संग ,
इधर उधर राजमार्गों पर भटक जाते है
इकट्ठे कर,जला दिए जाते है
और जो पेड़ के नीचे ही ,
गड्ढों  में दबे रह जाते है ,
कुछ समय बाद,खाद बन जाते है
नयी फसल को उगाने के काम आते है

                      3

    जरुरत--शहादत  की
राजनीती के गलियारे,
अपनी संकीर्ण  मानसिकता के कारण
बहुत सकड़े रह गए है
और अब आवश्यकता हो गयी है,
उन्हें चोडा करने की
और सड़कों को चोडा करने के लिए
पुराने बड़े बड़े वृक्षों को
शहादत देनी पड़ती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 20 मार्च 2014

क्या बतलाऊँ ?

    क्या बतलाऊँ ?

मुझको कितना सुख मिलता है,तेरे साथ मिलन में
                                                   क्या बतलाऊँ ?
कितनी मस्ती  छाई  रहती है  उस  पागलपन  में
                                                     क्या बतलाऊँ?
होता भाव विभोर बावला सा ये मन पागल सा
तैरा करता ,साथ चाँद के ,अम्बर में  बादल सा
या फिर जैसे विचरण करता है चन्दन के वन में
मतवाला ,मदमस्त ,घूमता ,ज्यों नंदन कानन में
तुम राधा सी रास रचाती ,मन के वृन्दावन में ,
                                                क्या बतलाऊँ?
तेरी साँसे,मेरी साँसे ,टकराती आपस मे
शहनाई सी बजती मन में,हो जाता बेबस मैं
अपने आप ,यूं ही बंध जाता है बाहों का बंधन
तुम कलिका सी,और भ्रमर मैं ,हो जाता अवगुंठन
मन कितना आनंदित होता ,तेरे आलिंगन में
                                            क्या बतलाऊँ?
मुझको कितना सुख मिलता है ,तेरे साथ मिलन में
                                             क्या बतलाऊँ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पाक स्थल

             पाक स्थल

जहाँ प्रातः उठ ,सबसे पहले ,जाने करता मन है
और जगते ही ,जहाँ आदमी ,रखता प्रथम कदम है
जहाँ अवांछित ,जल और पृथ्वी तत्व विसर्जित होता
जहाँ प्रतीक्षित ,जब आ जाता ,मन आनंदित होता
 कई बार ,इस स्थल जाने ,मन होता बेकल सा
मन में भर जाती उमंग ,तन  लगता ,हल्का हल्का
हो जाता निर्वस्त्र आदमी  बिना झिझक ,शरमाये
चिंतन और विचार उभरते,जन्मे नव कवितायें
तन का हर एक अंग जहाँ निर्मल,पवित्र हो जाता
खुलजाते नव द्वार,जहाँ पर चोला बदला जाता
बैठ जहाँ अहसास शांति का करता है तन और मन
करता आत्मनिरीक्षण मानव,मूल रूप के दर्शन
जहाँ हमेशा,जल की धारा ,फंव्वारे बहते है
उस प्यारे पावन स्थल  को ,'बाथरूम'कहते है

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 18 मार्च 2014

चर्चित की मानो नशा मत ही छानो.....



होली का रंग है
मिली इसमे भंग है
बुरा मानना मत
निश्छ्ल उमंग है

पीकर के पौवा
बना शेर कौवा
नशे मे खड़ा कर
दिया एक हौवा

किसी का दुपट्टा
जो लै भागा पट्ठा
दिया खींच करके
है गोरी ने चट्ठा

फिर भी न हारा
कीचड्‍ दे मारा
कहा प्राणप्यारी
मैं प्रियतम तुम्हारा

वो बोली जाओ
हमें ना फंसाओ
उल्लू हो उल्लू
मुंह धो के आओ

बड़ा ढीठ बंदा
पकड़ करके कंधा
पहलवान माइन्ड
दिया एक रंदा

गर्दन अकड़ गई
चंडी सी चढ़ गई
बाला तो हाय कर
वहीं सीधी पड़ गई

जनता इकट्ठी
लिये हाथ लट्ठी
मजनूं की गीली
हुई अब तो चड्ढी

बड़ी मार खाई
पड़ा चारपाई
मुहब्बत ने हड्डी
की भूसी बनाई

सबक ये मिला है
कि जो मनचला है
उसी का मुसीबत
में हरदम गला है

चर्चित की मानो
नशा मत ही छानो
नहीं तो फंसोगे
बुरे खूब जानो...

/// होली मुबारक ///

- विशाल चर्चित 

समझौता

         समझौता

पत्नीजी नाराज़ बहुत है ,
पडी हुई मुझसे मुंह फेरे
डबल बेड  के उस कोने में ,
पास नहीं आती है मेरे
और दूसरे कोने में ,मैं ,
उनसे मुंह  फेरे लेटा हूँ
मुझको लगता जैसे उनसे ,
मीलों दूर ,कहीं बैठा हूँ
पर यदि वो एक करवट ले ले ,
तो दूरी हो जायेगी  कम
और यदि मैं एक करवट ले लूं,
आपस में मिल जायेंगे हम
लेकिन पहल कौन करता है ,
रहा मामला यहीं  अटक है
दोनों मिलन चाहते लेकिन,
 लेता कौन  प्रथम करवट है
जीवन में सुख  छा जायेंगे ,
अपना  अहम् छोड़ दें जो हम
वो लें करवट,मै लूं करवट ,
तो  निश्चित ही होगा संगम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

होली का हादसा









              होली का हादसा 

होली के दिन ,
हम बड़े  रोमांटिक बन ,
हाथो में ले गुलाल की  झोली
निकल पड़े अपनी पडोसिनो से खेलने होली
पहली पड़ोसन के गालों पर ,जब गुलाल मला
पर उसके गाल इतने गुलाबी थे ,
कि मेरी गुलाल का रंग ही नहीं चढ़ा
मन में लिए मलाल
जब गुलाल लेकर ,टटोले दूसरी के गाल
पर उसके गाल इतने चिकने थे ,
कि उन पर गुलाल ही फिसल गयी
और तीसरी को पहचान ही नहीं पाये ,
,क्योंकि वह अपना मुंह काला करवा कर,
मेरे सामने से ही निकल गयी
और हम ढूंढते ही रह गए
अब किस से क्या कहे,
 अरमान आँसुओ में बह गए

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'

भड़ास

             भड़ास

पत्नी के इशारों पर नाचनेवाले पति,
जब भी थोड़ी सी ,फुर्सत पाते है
हाथ में रिमोट लेकर ,
टी वी देखने लग जाते है
और अपनी उंगली के इशारों पर ,
चेनल बदल बदल कर ,
खुश होते रहते है
अपने मन की भड़ास निकालना ,
इसे कहते है

घोटू

रविवार, 16 मार्च 2014

झपकियाँ

         झपकियाँ

ट्रेन में या बसों में या कार में
यहाँ तक के सिनेमा के हाल में
और हवाई उड़ानों के दरमियाँ
जायेंगे मिल ,लोग लेते झपकियाँ
           आप यदि कोई कथा में जायेंगे
            आधे श्रोता ,ऊंघते मिल जायेंगे
            कथावाचक इसलिए ही  बीच में ,
            जगाने को,कीर्तन करवाएंगे
नेताओं के लम्बे भाषण होरहे
पाओगे तुम,लोग कितने सो रहे
यहाँ तक कि मंच पर आसीन भी,
  कई नेता नींद में है खो   रहे        
               हाल में संसद के देखो बेखबर
                झपकियाँ लेते है नेता बैठ कर
                पहनते है काला चश्मा लोग कुछ,
                 झपकियाँ लेते, नहीं आये नज़र
नींद आने के लिए जब लपकती
कभी खुलती, कभी आँखें झपकती
कभी खर्राटों के स्वर भी गूंजते ,
और रह रह कर के गर्दन संभलती
               नींद आने का है सिग्नल  झपकियाँ
                रोकना होता है मुश्किल   झपकियाँ
                क्या  करेगा वो सुहागरात को ,
                 फेरों पे बैठा  जो लेता   झपकियाँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
 

शनिवार, 15 मार्च 2014

जिंदगी की दास्तान

          जिंदगी की दास्तान

जाने किस किस दौर से ,गुजरी हमारी जिंदगी
ठोकरों से पाठ सीखा , और निखारी जिंदगी
मगर उनकी बेरुखी ने ,टुकड़े टुकड़े दिल किया ,
भर रही है सिसकियाँ,अब तक बिचारी जिंदगी
वो किसी दिन तो मिलेंगे,गले से लग जायेंगे,
 काट दी इस आस में ही ,हमने  सारी  जिंदगी
आँखों से तो ,आंसुओं की ,गंगा जमुनाये बही,
मगर फिर भी प्यास की ,अब तक है मारी जिंदगी
जिस्म पीला पड़ गया पर हाथ ना पीले हुए ,
कब तलक तनहा रहेगी ,ये कुंवारी  जिंदगी
स्वाद क्या है जिंदगी का समझ हम पाये नहीं ,
कभी मीठी ,चरपरी फिर ,कभी खारी जिंदगी
हमने तुझको सर नमाया ,पूजा की,की बंदगी,
पर खुदा तूने नहीं ,अब तक संवारी जिंदगी 
चैन से अपने लिए,दो पल भी जी पाते  नहीं ,
मारा मारी लगी ही रहती है सारी  जिंदगी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

बदलता मौसम

        बदलता मौसम

बदलते मौसम ने कितनी है बदल दी जिंदगी ,
       या उमर का ये असर है ,समझ ना पाते है हम
सर्दी के मौसममे जब भी सर्दी लगती है हमें ,
       लिपट कर के ,तेरी बाहों में समा जाते है हम
गर्मियों के दिनों में यूं बदलते हालात है,
        लिपटते है तुमसे जब हम ,झट झिटक देती हो तुम,
क्योंकि तुमको गर्मी लगती है हमारे प्यार मे ,
        चिपचिपे पन से बचाने,लिफ्ट ना देती हो  तुम
हम भी चुम्बक तुम भी चुम्बक पर 'अपोजिट पोल 'है
       हम में आकर्षण बहुत आता ,जब आती सर्दियाँ
गर्मियों में ,एक जैसे 'पोल'बन जाते है हम ,
        एक दूजे से छिटकते , वक़्त की  बेदर्दियां
जवानी जो सर्दियाँ है ,तो बुढ़ापा ग्रीष्म है,
         उमर के संग ,मौसमो सा ,बदलता  है आदमी  
सख्त से भी  सख्त दिल इंसान, बनता मोम है,
          प्यार से पुचकार भी लो,तो पिघलता  ,आदमी
लुभाती थी जो गरम साँसे तुम्हारे प्यार की ,
           लगती खर्राटे हमें है, आजकल ये हाल है
पहले तकिया था सिरहाने,फिर सिरहाना तुम बनी ,
            आजकल तकिया हमारे बीच की दीवार  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

होली के मूड में -दो कवितायें

    होली   के मूड  में -दो कवितायें
                        १
आयी होली ,आ लगा दूं,तेरे गालों पर गुलाल,
                       रंग गालों का गुलाबी और भी खिल जाएगा
मगर मुझ पर आहिस्ते से ही लगाना रंग तुम,
                       बढ़ी दाढ़ी ,हाथ नाज़ुक ,तुम्हारा छिल जाएगा
बात सुन ये, कहा उनने ,नज़र तिरछी डाल कर,
                       चुभाते ही रहते  दाढ़ी,तुम  हमारे   गाल  पर    
  खुरदरेपन की चुभन का ,मज़ा ही कुछ और है,
                       मर्द हो तुम ,मज़ा तुमको ये नहीं  मिल पायेगा 

                           २
अबकी होली में कुछ ऐसा ,प्यारा  हुआ प्रसंग ,सजन
यूं ही बावरे हम,ऊपर से ,हमने पी ली  भंग ,सजन
ऐसी ऐसी जगहों पर है,तुमने डाला   रंग ,  सजन
अपने रंगमे भिगो भिगो कर,खूब किया है तंग ,सजन
रंग गया ,रंग में तुम्हारे ,है मेरा हर  अंग  ,सजन
जी करता ,जीवन भर होली,खेलूँ तेरे  संग ,सजन 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 13 मार्च 2014

अगन और जीवन

       अगन और जीवन               

होली पर होली  जलती है
          लोढ़ी पर है लोढ़ी  जलती
दीवाली पर दीपक जलते ,
                   नवरात्रों में ज्योति जलती
दशहरे पर जलता रावण,
                दीपक जलते हर पूजन में
आतिशबाजियां जलती है,
                    हर उत्सव के आयोजन में
जलती है अग्नी हवनकुंड में 
                    होता है जब यज्ञ ,हवन
अग्नी के फेरे सात  लिए,
                  बंध  जाता है जीवन बंधन  
जब घर में चूल्हा जलता है,
                   तो पेट सभी का पलता  है
सब त्योहारों में जले अगन,
                   अग्नी से जीवन चलता है
है पंचतत्व में अग्नि तत्व ,
                    और अग्नी देव कहाती है
दो पत्थर के टकराने से
                  भी अग्नी प्रकट हो जाती है
है अग्निदेव पालक , पोषक ,
                       और अग्नी ही विध्वंशक है
अंधियारे में जलती बाती ,
                        तो होती राह प्रदर्शक है
कुछ एक दूसरे से जलते ,
                कुछ विरह अगन में जलते है
जीवन भर चिंता में जलते ,
                    मर,चिता अगन में जलते है
अग्नि से जीवन चलता हम ,
                     जीवन भर जलते रहते है
जो पानी आग  बुझाता है,
                      हम क्यों उसको जल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
                        

थ्रिल

              थ्रिल
सवेरे ,सवेरे ,
ताजे ताजे अखबार के ,
करारे करारे पन्ने को,
एक एक कर खोल कर ,
नयी नयी ख़बरें,
पढ़ने में जो मज़ा आता है
वो रात को टी वी पर ,
देख लो सब खबर,
तो गुम हो जाता है
जैसे शादी के पहले ,
डेटिंग ,सेटिंग करने से,
सुहागरात का थ्रिल चला जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

कूकर या कुकर

           कूकर या कुकर
                      १
पत्नी बोली पति और कूकर एक सुभाय
दोनो ही है पालतू, स्वामी भक्त  कहलाय 
स्वामिभक्त कहलाय ,सिर्फ इतना है अंतर
कुत्ता   भोंके रात,हिलाये पूंछ दिवस भर
'घोटू 'पर पति दिन भर भौंके ,रॉब दिखाता
और रात को पत्नी आगे  पूंछ  हिलाता
                       २
हम बोले पति श्वान ना ,होता घर की शान
घर की रखवाली करे ,रखता सबका ध्यान
रखता सबका ध्यान ,कुकर प्रेशर के जैसा 
जब भी बढे दबाब ,बजाता सीटी ,हमेशा
जो घंटों का काम मिनिट भर में निपटाता
वो कूकर ना ,वो तो प्रेशर कुकर कहाता
घोटू

दो छक्के

             दो छक्के
                   १
जब भी है हम देखते,चेहरा कोई हसीन 
लगता है लावण्यमय ,सुन्दर और नमकीन
सुन्दर और नमकीन,पास जा प्यार जताते
मिलता मीठा स्वाद और मीठी सी  बातें
कह घोटू कविराय समझ में ये ना आता
लज्जत भरी मिठास,हुस्न नमकीन कहाता
                           २
पत्नी हथिनी की तरह, पति तिनके से क्षीण
अब ये तुम्ही समझ लो ,किसके ,कौन अधीन
किसके कौन अधीन ,अगर पत्नी हो पतली
और मोटे पतिदेव ,मगर हालत है पतली
खरबूजे पर छुरी गिरे ,छुरी पर खरबूजा
पर कटता हर बार ,बिचारा पति ,खरबूजा

घोटू  
 

गाल के हाल

             गाल के हाल
                      १
गाल गाल अंतर बहुत ,तरह तरह के गाल
पिचके कुछ फूले हुए ,कोई सेव से  लाल
कोई सेव से लाल ,सपाट कोई है   सिंपल
तो कोई के  गालों में  पड़ते  है   डिम्पल
होते उनके गाल  लाल  जब  वो शर्माते
और जब गुस्सा   होते है तो गाल फुलाते
                         २
नारी गाल सुन्दर बहुत ,चिकने,प्यारे,लाल
पर मर्दों के गाल पर, दाढ़ी  का  जंजाल
दाढ़ी का जंजाल ,बुढ़ापा  है जब  आता
होती दूर  लुनाई, चेहरा  झुर्रा  जाता
कह घोटू कविराय ,गाल से निकले गाली
मिले गाल से गाल ,मिलन की प्रथा निराली
घोटू  

होली की मस्ती

             होली की मस्ती
                       १
अंग अंग में छा गयी ,खुशियां और उमंग
घोटू पर है चढ़ गया ,अब होली  का  रंग
अब होली का रंग,छा गयी मन में मस्ती
हुई जागृत ,बूढ़े तन में,  हुस्न  परस्ती
हाथों लिए गुलाल ,फाग की धूम मचाते
जो भी मिले हसीन ,गाल उसके सहलाते
                          २
बढ़ी उमर में हो गया है कुछ ऐसा  हाल
कितने ही दिन हो गये ,छुए गुलाबी गाल
 छुए गुलाबी गाल,उमर बीबी की सत्तर
झुर्राये है गाल ,हाथ क्या फेरें उन पर
घोटू निकले ये भड़ास होली पर केवल
जब मल सकें गुलाल ,हंसीं गालों पर जीभर
 
घोटू 

मंगलवार, 11 मार्च 2014

ये मेरे अब्बा कहते थे

     ये मेरे अब्बा कहते थे

लेडीज कालेज की बस को वो ,
                          तो हुस्न का डब्बाकहते थे
कोई ने थोडा झांक लिया ,
                               तो 'हाय रब्बा'कहते थे
लड़की उससे ही पटती है,
                                  हो जिसमे जज्बा कहते थे
मुश्किल से  अम्मा तेरी पटी ,
                                   ये मेरे अब्बा कहते  थे  
मिल दोस्त प्यार के बारे में ,
                                  सब  अपना तजरबा  कहते थे
कोई कहता खट्टा अचार ,
                                     तो कोई मुरब्बा कहते थे
 उल्फत में उन पर क्या गुजरी ,
                                      वो कई मरतबा  कहते थे
जिनको वो बुलबुल कहते थे,
                                    वो इनको कव्वा कहते थे
औरत में और आदमी में ,
                             है अंतर क्या क्या कहते थे
जिसमे दम वो आदम होता ,
                                हौवा  को हव्वा कहते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-