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शनिवार, 30 मई 2020

पलायन गीत
(कोरोना काल में गावों को पलायन
करनेवाले मजदूरों की मानसिकता
दर्शाता हुआ एक गीत )

फैल रह्यो शहर में कोरोनवा रे
गाँव चलो  भइया  फौरनवा  रे
बंद है बज़ार और कारखाने जब तक
रोजी नहीं रोटी नहीं ,भूखे पेट कब तक
जियेंगे हम बिना भोजनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
आई चीन देश से है ,बिमारी जबर है ये
ताला बंदी लम्बी ही ,खिचेंगी खबर है ये
कैसे होगा अपना गुजरवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
करेंगे क्या इतने दिन ,बैठ के बेकार यहाँ
बिमारी मारे न मारे ,भूख देगी मार यहाँ
अब तो उचट गया मनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
होय रहे खरचा है ,थोड़े जो बचे थे पैसे
रेल बंद ,बेस बंद ,ऐसे में जाएंगे  कैसे
आओ चले निकल पैदलवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
गाँव में परिवार संग ,खुशियां अनोखी होगी
रूखीसूखी जैसी भी हो,खाने को दो रोटी होगी
अपनी माटी अपना अंगनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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