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गुरुवार, 28 मई 2020

अम्मा बोली -प्रवासी के घर पहुँचने पर

आय गए बचुवा ,खुश हुआ मनवा ,चिंता बहुत मन माही थी
यूं  चल के पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी

गाँव हो या हो शहर ढाये सब पे कहर ,आई कोरोना बिमारी है
छूने छुलावन से ,पास पास आवन से ,फैल रही यह भारी है
सड़कों पे भटके ,जगह जगह अटके ,भीड़भाड़ की जब मनाही थी
यूं चल के पैदल ,तक़लीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी

बंद हुए कामकाज ,सबके लिए था त्रास ,फैक्टरी ,बज़ारों में बंदी थी
नहीं ज्यादा घूमो फिरो ,घर पे आराम करो ,ये ही तो लगी पाबंदी थी
मदद करे था शासन ,सबको मिले था राशन ,वहीं रहते तो भलाई थी
यूं चल के पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी

गाँव छोड़ शहर गए ,तब बड़ा खुश रहे ,काम करके  ,खाते ,कमाते थे
करके बचत कुछ ऐसे ,भेजते थे हमें पैसे ,हम  घर का खरच चलाते थे
आय गए तुम अब ,बढ़ा घर का खरच ,पास और नहीं कोई भी कमाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी

होवे कोई जो बीमार ,गाँव में न अस्पताल ,भगते शहर है आज सभी
तुम बिमारी डर से ,भाग आये शहर से ,गाँव न जिसका इलाज अभी
होती शहर में बिमारी ,मिलती सुविधाएँ सारी ,डॉक्टर ,अस्पताल दवाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफे सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी  

 सारे कामकाज,चालू फिर हुए  आज ,पटरी पे लौट आया जीवन है
अभी लौट जाओ वहीँ ,देर पर दुरुस्त सही ,वहीँ  पे कमाई के साधन है
करने गुजर बसर ,पेट पालना है गर ,शहर में ही दुनिया समाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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