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शनिवार, 16 मई 2020

जिंदगी -एक समझौता

आदमी सपन संजोता है ,
नहीं यदि पूरा होता है
परेशान होकर आंसू से ,
नयन भिजोता  है
दोष नहीं ,पर भले बुरे का ,
बोझा  ढोता है
लिखा विधाता ने है जैसा ,
वो ही होता है
जिंदगी एक समझौता है

फसल काटता वैसी जैसे
बीज वो बोता है
मिलता नहीं अगर मनचाहा ,
धीरज खोता है
होनी होकर रहती जब  ,
होना होता है
होती ज्यादा ख़ुशी बावरा ,
फिर भी रोता है
जिंदगी एक समझौता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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