आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
आपको हम क्या बताएं
देश को आजादी पाये
हो गए सड़सठ बरस है
हाल पर जस के ही तस है
कुछ कमाया ,कुछ गमाया
सुधर कुछ भी नहीं पाया
मिल गया स्वराज भी है
लोग भूखे आज भी है
गाँव में या फिर गली में
देश भर की खलबली में
तुम्हे कुछ अच्छा दिखा क्या?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
बाढ़ है तो कहीं सूखा
अन्न सड़ता,देश भूखा
बेईमानी और करप्शन
विदेशों में देश का धन
कहीं रेली, कहीं धरना
रोज का लड़ना झगड़ना
बात हर एक में सियासत
साधते सब अपना मतलब
कई अरबों के घोटाले
लीडरों के काम काले
और इस सब खेल में है
कई नेता जेल में है
लुट रहा है देश का धन
हर एक सौदे में कमीशन
फिर कोई नेता बिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
चरमराती व्यवस्थाएं
डगमगाती आस्थाए
कीमतें आसमान चढ़ती
भाव और मंहगाई बढती
लूट और काला बाजारी
मौज करते बलात्कारी
अस्मते लुटती सड़क पर
और सोती है पुलिस पर
हर तरफ है भागादौड़ी
पिस रही जनता निगोड़ी
प्रतिस्पर्धा लिए मन में
जी रहे सब टेंशन में
लड़ रहे नेता सदन में
बदलते निज रूप क्षण में
बात पर कोई टिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
संत योगी,योग करते
चेलियों संग भोग करते
धर्म अब बन गया धंधा
स्वार्थ में है मनुज अँधा
छा रहा आतंक सा है
आदमी हर तंग सा है
पडोसी ले रहे पंगे
कर रहे ,घुसपेठ,दंगे
बड़ी नाजुक है अवस्था
हुई चौपट सब व्यवस्था
घट रही है प्रगति की दर
है सभी की नज़रें हमी पर
आगे ,पीछे,दायें,बायें
आँख है सारे गढ़ाये
चाईना क्या,अमरिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
आपको हम क्या बताएं
देश को आजादी पाये
हो गए सड़सठ बरस है
हाल पर जस के ही तस है
कुछ कमाया ,कुछ गमाया
सुधर कुछ भी नहीं पाया
मिल गया स्वराज भी है
लोग भूखे आज भी है
गाँव में या फिर गली में
देश भर की खलबली में
तुम्हे कुछ अच्छा दिखा क्या?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
बाढ़ है तो कहीं सूखा
अन्न सड़ता,देश भूखा
बेईमानी और करप्शन
विदेशों में देश का धन
कहीं रेली, कहीं धरना
रोज का लड़ना झगड़ना
बात हर एक में सियासत
साधते सब अपना मतलब
कई अरबों के घोटाले
लीडरों के काम काले
और इस सब खेल में है
कई नेता जेल में है
लुट रहा है देश का धन
हर एक सौदे में कमीशन
फिर कोई नेता बिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
चरमराती व्यवस्थाएं
डगमगाती आस्थाए
कीमतें आसमान चढ़ती
भाव और मंहगाई बढती
लूट और काला बाजारी
मौज करते बलात्कारी
अस्मते लुटती सड़क पर
और सोती है पुलिस पर
हर तरफ है भागादौड़ी
पिस रही जनता निगोड़ी
प्रतिस्पर्धा लिए मन में
जी रहे सब टेंशन में
लड़ रहे नेता सदन में
बदलते निज रूप क्षण में
बात पर कोई टिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
संत योगी,योग करते
चेलियों संग भोग करते
धर्म अब बन गया धंधा
स्वार्थ में है मनुज अँधा
छा रहा आतंक सा है
आदमी हर तंग सा है
पडोसी ले रहे पंगे
कर रहे ,घुसपेठ,दंगे
बड़ी नाजुक है अवस्था
हुई चौपट सब व्यवस्था
घट रही है प्रगति की दर
है सभी की नज़रें हमी पर
आगे ,पीछे,दायें,बायें
आँख है सारे गढ़ाये
चाईना क्या,अमरिका क्या ?
आज तुमने कुछ लिखा क्या ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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