एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

एक दूजे के लिये

            एक  दूजे  के लिये

हाथ पे रख  के सर सोते,चैन की नींद आती है
दबाते  हाथ जब सर को,तो पीड़ा भाग जाती है
कभी है नाव पर गाडी ,कभी गाडी है  नाव पर ,
सहारे एक दूजे के, जिंदगी कट ही  जाती   है
जहाँ पर धूप है प्रातः ,वहीँ पर छाँव संध्या को,
धूप और छाँव का ये खेल ,सारी उम्र चलता है,
कभी चलता है बच्चा ,बाप की उंगली पकड़ कर के ,
जब होता बाप बूढा,बच्चे की ऊँगली पकड़ता है
रहो तुम मेरे दिल में और रहूँ मै दिल में तुम्हारे ,
मगर हम संग रहते ये ,मोहब्बत की निशानी है
गिरूँ मै ,तुम मुझे थामो,गिरो तुम ,मै तुम्हे थामू,
भरोसे एक दूजे के ,  उमर हमको बितानी   है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-