खानपान
अलग अलग कितनी ही चीजें,है जो लोगबाग खाते है
नहीं समझ में खुद के आता ,औरों का दिमाग खाते है
कोई रिश्वत खाता है तो कोई कमीशन खाया करता
कोई धीरे धीरे घुन सा , चिता बन ,तन खाया करता
कोई लम्बे चौड़े वादे कर क़समें खाया करता है
कोई बड़े भाव खाता जब ,ऊपर चढ़ जाया करता है
कोई हिल स्टेशन जाकर के,ठंडी ठंडी हवा खा रहा
कोई कहीं पर ठोकर खाता ,कोई धोखा ,दगा खारहा
कोई किसी को पटा रहा है,उसके घर के चक्कर खा के
होता हुआ प्यार देखा है, कभी किसी से टक्कर खा क़े
कोई जूते भी खाता है, कोई चप्पल, कोई सेंडल
कोई फेरे सात अगन के,खाकर फंस जाता जीवन भर
कोई खाता हवालात की हवा ,कोई बीबी से बेलन
कोई खाता रहम किसी पर,कोई गुस्सा खाता हरदम
कोई मार किसी से खाता ,डाट किसी से खाई जाती
बिना मुंह के ,इस दुनिया में,कितनी चीजें ,खाई जाती
लोग नौकरी के चक्कर में ,खाते धक्के ,इधर उधर के
फिर वो बड़े गर्व से कहते ,हम है खाते पीते घर के
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अलग अलग कितनी ही चीजें,है जो लोगबाग खाते है
नहीं समझ में खुद के आता ,औरों का दिमाग खाते है
कोई रिश्वत खाता है तो कोई कमीशन खाया करता
कोई धीरे धीरे घुन सा , चिता बन ,तन खाया करता
कोई लम्बे चौड़े वादे कर क़समें खाया करता है
कोई बड़े भाव खाता जब ,ऊपर चढ़ जाया करता है
कोई हिल स्टेशन जाकर के,ठंडी ठंडी हवा खा रहा
कोई कहीं पर ठोकर खाता ,कोई धोखा ,दगा खारहा
कोई किसी को पटा रहा है,उसके घर के चक्कर खा के
होता हुआ प्यार देखा है, कभी किसी से टक्कर खा क़े
कोई जूते भी खाता है, कोई चप्पल, कोई सेंडल
कोई फेरे सात अगन के,खाकर फंस जाता जीवन भर
कोई खाता हवालात की हवा ,कोई बीबी से बेलन
कोई खाता रहम किसी पर,कोई गुस्सा खाता हरदम
कोई मार किसी से खाता ,डाट किसी से खाई जाती
बिना मुंह के ,इस दुनिया में,कितनी चीजें ,खाई जाती
लोग नौकरी के चक्कर में ,खाते धक्के ,इधर उधर के
फिर वो बड़े गर्व से कहते ,हम है खाते पीते घर के
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।