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रविवार, 17 अगस्त 2014

नोट का हुस्न

               नोट का हुस्न

कहा इक नाज़नीं ने 'कैसी लगती हूँ'तो हम बोले ,
नोट हज्जार सी रंगत,बड़ी सुन्दर और प्यारी है
देख कर तुमको आ जाती,चमक है मेरी आँखों में ,
तुम्हे पाने की बढ़ जाती ,हमारी  बेकरारी  है
पता लगता है सहला कर,कि असली है या नकली है
सजाती जिस्म तुम्हारा ,एक गोटा किनारी है
मेरा दिल करता है तुमको ,रखूँ मैं पर्स में दिल के,
मगर तुम टिक नहीं पाते  ,बुरी आदत तुम्हारी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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