पड़ोसी
मेरे घर मेंखुशी होती तो उसको मिर्च लगती है,
उसे तकलीफ़ होती है,मेरी क्यों अच्छी सेहत है
तरक्की देख कर औरों की,जल के खाक हो जाना ,
हमारे इस पड़ोसी की ,शुरू से ही ये आदत है
भले ही उसके घर में हरतरफ बद इंतजामी है ,
मेरे घर का अमनऔरचैन उसके दिल को खलता है
मेरे घर की दर -ओ- दीवार पर, वो ठोकता कीलें ,
बड़ा बेचैन हो जाता है ,हमेशा मुझसे जलता है
देखता है सुधरती जब ,व्यवस्थाएं मेरे घर की,
चैन से रह नहीं सकता,वो इतना कुलबुलाता है
भेज देता है चूहों को, कतरने को मेरा कूचा,
दुहाई देके मजहब की ,बड़ी गड़बड़ मचाता है
मेरा ही भाई है,निकला है करके घर का बंटवारा,
बड़ी ही पर घिनौनी हरकतें,दिनरात करता है
खुदा ही जानता है हश्र उसका कैसा, क्या, होगा ,
खुदा का नाम ले लेकर ,रोज उत्पात करता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरे घर मेंखुशी होती तो उसको मिर्च लगती है,
उसे तकलीफ़ होती है,मेरी क्यों अच्छी सेहत है
तरक्की देख कर औरों की,जल के खाक हो जाना ,
हमारे इस पड़ोसी की ,शुरू से ही ये आदत है
भले ही उसके घर में हरतरफ बद इंतजामी है ,
मेरे घर का अमनऔरचैन उसके दिल को खलता है
मेरे घर की दर -ओ- दीवार पर, वो ठोकता कीलें ,
बड़ा बेचैन हो जाता है ,हमेशा मुझसे जलता है
देखता है सुधरती जब ,व्यवस्थाएं मेरे घर की,
चैन से रह नहीं सकता,वो इतना कुलबुलाता है
भेज देता है चूहों को, कतरने को मेरा कूचा,
दुहाई देके मजहब की ,बड़ी गड़बड़ मचाता है
मेरा ही भाई है,निकला है करके घर का बंटवारा,
बड़ी ही पर घिनौनी हरकतें,दिनरात करता है
खुदा ही जानता है हश्र उसका कैसा, क्या, होगा ,
खुदा का नाम ले लेकर ,रोज उत्पात करता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।