बदलते नाम-पुराना स्वाद
सिवइयां बन गयी' नूडल ',परांठे बन गए 'पीज़ा',
समोसे आज 'पेटिस'है,और बड़ापाव 'बर्गर'है
पराठों में भरो सब्जी तो 'काठी रोल'कहलाते ,
पकोड़े और कटलेटों में थोड़ा सा ही अंतर है
भुनाते जब थे मक्का को ,भाड़ में कहते थे धानी ,
उसे 'पोपकोर्न'कह कर के ,प्यार से लोग खाते है
पिताजी 'डेड'है ,माता ,आजकल हो गयी 'मम्मी '
बहन 'सिस 'और दादी को ,'ग्रांड माँ 'कह बुलाते है
बहुत सी खाने की चीजें ,जिन्हे हम खाते सदियों से,
स्वाद से खाते है अब भी ,मगर फ्लेवर विदेशी है
किन्तु कुछ चीज ऐसी है,अभी तक भी जो देशी है,
बदल पाये न रसगुल्ले ,जलेबी भी ,जलेबी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सिवइयां बन गयी' नूडल ',परांठे बन गए 'पीज़ा',
समोसे आज 'पेटिस'है,और बड़ापाव 'बर्गर'है
पराठों में भरो सब्जी तो 'काठी रोल'कहलाते ,
पकोड़े और कटलेटों में थोड़ा सा ही अंतर है
भुनाते जब थे मक्का को ,भाड़ में कहते थे धानी ,
उसे 'पोपकोर्न'कह कर के ,प्यार से लोग खाते है
पिताजी 'डेड'है ,माता ,आजकल हो गयी 'मम्मी '
बहन 'सिस 'और दादी को ,'ग्रांड माँ 'कह बुलाते है
बहुत सी खाने की चीजें ,जिन्हे हम खाते सदियों से,
स्वाद से खाते है अब भी ,मगर फ्लेवर विदेशी है
किन्तु कुछ चीज ऐसी है,अभी तक भी जो देशी है,
बदल पाये न रसगुल्ले ,जलेबी भी ,जलेबी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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