'हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा '
बड़े सख्त दिल के है दीखते जो इन्सां ,
रहे झाड़ते रौब ,हमेशा ही,जब तब
झलकते है उनकी भी आँखों में आंसूं,
विवाह करके बेटी,बिदा करते है जब
बाहर से कोई दिखे सख्त दिल पर ,
है दिल मोम का और भरा प्यार सच्चा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा
अम्मा की गोदी में जब रखता माथा ,
ममता से अम्मा ,जब सहलाती सिर है
आँखों में छा जाती बचपन की यादें ,
लौट आता प्यारा सा, बचपन वो फिर है
नज़र फिर से आता है ,भोलापन वो ही ,
वही प्यारी मीठी सी,बातों का लच्छा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
नफासत,नज़ाकत,शराफत का पुतला,
बड़े ही अदब से ,सदा पेश आता
बड़े ही सलीके से,काँटा छुरी से ,
है खाने की टेबल पे ,खाना जो खाता
अकेले में,ठेले पे,खा गोलगप्पे,
या गोला बरफ का,मज़ा लेता सच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
वो बच्चा बड़ा जो हठी जिद्दी होता ,
जिसे पाने को रहती,चन्दा की चाहत
अगर जिद नहीं उसकी होती है पूरी ,
उठा लेता ,घर सर पे,करता मुसीबत
उसे अक्स चंदा का पानी में दिखला ,
नहीं बहला सकते हो,दे सकते गच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
हरेक में छुपा है,एक छोटा सा बच्चा
बुढ़ापे में आता वो बच्चा निकल कर,
वो ही जिद,हठीपन और वो ही मचलना
बूढ़ों में ,बच्चों में ,अंतर न रहता ,
वही खानापीना और डगमग के चलना
बच्चों सी जिद ,रौब लेकिन बड़ों सा ,
है लाचार तन ,प्यार दिल में है सच्चा
बड़ा कोई कितना ही बन जाए लेकिन ,
हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बड़े सख्त दिल के है दीखते जो इन्सां ,
रहे झाड़ते रौब ,हमेशा ही,जब तब
झलकते है उनकी भी आँखों में आंसूं,
विवाह करके बेटी,बिदा करते है जब
बाहर से कोई दिखे सख्त दिल पर ,
है दिल मोम का और भरा प्यार सच्चा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा
अम्मा की गोदी में जब रखता माथा ,
ममता से अम्मा ,जब सहलाती सिर है
आँखों में छा जाती बचपन की यादें ,
लौट आता प्यारा सा, बचपन वो फिर है
नज़र फिर से आता है ,भोलापन वो ही ,
वही प्यारी मीठी सी,बातों का लच्छा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
नफासत,नज़ाकत,शराफत का पुतला,
बड़े ही अदब से ,सदा पेश आता
बड़े ही सलीके से,काँटा छुरी से ,
है खाने की टेबल पे ,खाना जो खाता
अकेले में,ठेले पे,खा गोलगप्पे,
या गोला बरफ का,मज़ा लेता सच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
वो बच्चा बड़ा जो हठी जिद्दी होता ,
जिसे पाने को रहती,चन्दा की चाहत
अगर जिद नहीं उसकी होती है पूरी ,
उठा लेता ,घर सर पे,करता मुसीबत
उसे अक्स चंदा का पानी में दिखला ,
नहीं बहला सकते हो,दे सकते गच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
हरेक में छुपा है,एक छोटा सा बच्चा
बुढ़ापे में आता वो बच्चा निकल कर,
वो ही जिद,हठीपन और वो ही मचलना
बूढ़ों में ,बच्चों में ,अंतर न रहता ,
वही खानापीना और डगमग के चलना
बच्चों सी जिद ,रौब लेकिन बड़ों सा ,
है लाचार तन ,प्यार दिल में है सच्चा
बड़ा कोई कितना ही बन जाए लेकिन ,
हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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