सोचो -समझो -करो
आज जो काम करना है,उसे कल पर नहीं टालो ,
वक़्त जो बीत जाता है,नहीं आता दोबारा है
बड़ा हो या की छोटा हो,मगर ये बात पक्की है,
हरेक डायरिया का होता है ,कहीं पर तो किनारा है
रात को आते जो सपने ,वो अपने आप आते है ,
जो होते महत्वाकांक्षी ,वो दिन में देखते सपने
ये क्यों होता बुढ़ापे में,भूल जाते है अपने ही,
मगर ऐसा भी होता है,पराये जाते हो अपने
हरेक मौसम का अपना ही ,अलग मिजाज होता है ,
गरम है तो कभी ठंडा ,कभी बरसात होती है
उजेला हो जो सूरज का,तो हम कहते है क़ि दिन है,
मगर दिन भी बुरे, अच्छे ,ये कैसी बात होती है ,
मुझे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ,
चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
बड़े नादान है हम सब,दिया है जिसने ये सब कुछ ,
उसी को कुछ चढ़ा सिक्के ,ये कहते दान देते है
आदमी कितना मूरख है,खबर जिसको नहीं कल की,
बनाता जिंदगी भर की,हज़ारों योजनाएं वो
व्यर्थ ही कल की चिंता में ,हुआ जाता है वो बेकल,
भरोसा कौनसा कल का,कल तलक जी भी पाये वो
व्यर्थ काहे का रोना है ,जो होना है सो होना है,
मुसीबत ,आना,आएगी ,हंसो या रो के तुम झेलो
करो बस आज की परवाह,सामने जो खड़ा हाज़िर ,
छोड़ दो कल की चिंताएं,मज़ा तुम आज का ले लो
अरे देखो नदी को ही,जो कल कल करती बहती हैं ,
यही आशा लिए मन में,मिलेगी कल समंदर से
लगन से जो चलेंगें हम,ठिकाना मिल ही जाएगा,
नहीं कुछ भी है नामुमकिन,अगर हो जोश अंदर से
थी पतली धार उदगम पर,रही मिलती वो औरों से ,
तभी सागर पहुँचने तक,पात हो जाता चौड़ा है
इसलिए सबको अपनाओ,सभी के साथ मिल जाओ,
बहुत हो जाता है मिल कर,कोई कितना भी थोड़ा हो
हवा तो बस हवा ही है,हमेशा बहती रहती है,
मगर जब सांस बनती है,चलाती जिंदगानी है
हो जैसी भी परिस्तिथियाँ , उसी अनुसार चलना है,
किसी भी पात्र में उसके मुताबिक़ ,ढलता पानी है
सुबह टी वी में ज्योतिषी ,ग्रहों की चाल बतलाता ,
फलाँ है राशियाँ जिनकी ,मिलेगी उनको खुशखबरी
खबर जब है नहीं हमको,कोई भी अगले एक पल की,
आज हम है और ज़िंदा है ,बड़ी सबसे ये खुशखबरी
सोच कर ये कि कल पकवान ,मिल सकते है खाने को,
आज हम भूखे रहने की ,सजा भुगते ,भला क्यों कर
पता है पेट भरना है ,हमें जब दाल रोटी से ,
समझ पकवान उनको ही,उठाएँ ना,मज़ा क्यों कर
तुम्हे लगते है वो सुन्दर ,उन्हें लगे हो तुम सुन्दर ,
मगर ये सारी सुंदरता ,नज़र का खेल है केवल
केरियां कच्ची, खट्टी जो ,समय के संग पकेगी जब,
रसीली ,स्वाद और मीठी ,लगेगी आम वो बन कर
हवा के साथ चलने पर ,हवा है पीठ थपकाती ,
हवा के सामने चलते,हवा भरती है बाहों में
दिक्कते तो हमेशा हैं,मगर जो तुम में जज्बा है ,
मिलेंगी मंजिलें ,अड़चन ,भले कितनी हो राहों में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आज जो काम करना है,उसे कल पर नहीं टालो ,
वक़्त जो बीत जाता है,नहीं आता दोबारा है
बड़ा हो या की छोटा हो,मगर ये बात पक्की है,
हरेक डायरिया का होता है ,कहीं पर तो किनारा है
रात को आते जो सपने ,वो अपने आप आते है ,
जो होते महत्वाकांक्षी ,वो दिन में देखते सपने
ये क्यों होता बुढ़ापे में,भूल जाते है अपने ही,
मगर ऐसा भी होता है,पराये जाते हो अपने
हरेक मौसम का अपना ही ,अलग मिजाज होता है ,
गरम है तो कभी ठंडा ,कभी बरसात होती है
उजेला हो जो सूरज का,तो हम कहते है क़ि दिन है,
मगर दिन भी बुरे, अच्छे ,ये कैसी बात होती है ,
मुझे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ,
चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
बड़े नादान है हम सब,दिया है जिसने ये सब कुछ ,
उसी को कुछ चढ़ा सिक्के ,ये कहते दान देते है
आदमी कितना मूरख है,खबर जिसको नहीं कल की,
बनाता जिंदगी भर की,हज़ारों योजनाएं वो
व्यर्थ ही कल की चिंता में ,हुआ जाता है वो बेकल,
भरोसा कौनसा कल का,कल तलक जी भी पाये वो
व्यर्थ काहे का रोना है ,जो होना है सो होना है,
मुसीबत ,आना,आएगी ,हंसो या रो के तुम झेलो
करो बस आज की परवाह,सामने जो खड़ा हाज़िर ,
छोड़ दो कल की चिंताएं,मज़ा तुम आज का ले लो
अरे देखो नदी को ही,जो कल कल करती बहती हैं ,
यही आशा लिए मन में,मिलेगी कल समंदर से
लगन से जो चलेंगें हम,ठिकाना मिल ही जाएगा,
नहीं कुछ भी है नामुमकिन,अगर हो जोश अंदर से
थी पतली धार उदगम पर,रही मिलती वो औरों से ,
तभी सागर पहुँचने तक,पात हो जाता चौड़ा है
इसलिए सबको अपनाओ,सभी के साथ मिल जाओ,
बहुत हो जाता है मिल कर,कोई कितना भी थोड़ा हो
हवा तो बस हवा ही है,हमेशा बहती रहती है,
मगर जब सांस बनती है,चलाती जिंदगानी है
हो जैसी भी परिस्तिथियाँ , उसी अनुसार चलना है,
किसी भी पात्र में उसके मुताबिक़ ,ढलता पानी है
सुबह टी वी में ज्योतिषी ,ग्रहों की चाल बतलाता ,
फलाँ है राशियाँ जिनकी ,मिलेगी उनको खुशखबरी
खबर जब है नहीं हमको,कोई भी अगले एक पल की,
आज हम है और ज़िंदा है ,बड़ी सबसे ये खुशखबरी
सोच कर ये कि कल पकवान ,मिल सकते है खाने को,
आज हम भूखे रहने की ,सजा भुगते ,भला क्यों कर
पता है पेट भरना है ,हमें जब दाल रोटी से ,
समझ पकवान उनको ही,उठाएँ ना,मज़ा क्यों कर
तुम्हे लगते है वो सुन्दर ,उन्हें लगे हो तुम सुन्दर ,
मगर ये सारी सुंदरता ,नज़र का खेल है केवल
केरियां कच्ची, खट्टी जो ,समय के संग पकेगी जब,
रसीली ,स्वाद और मीठी ,लगेगी आम वो बन कर
हवा के साथ चलने पर ,हवा है पीठ थपकाती ,
हवा के सामने चलते,हवा भरती है बाहों में
दिक्कते तो हमेशा हैं,मगर जो तुम में जज्बा है ,
मिलेंगी मंजिलें ,अड़चन ,भले कितनी हो राहों में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।