उम्र है मेरी तिहत्तर
जिंदगानी के सफर में ,मुश्किलों से रहा लड़ता
आ गया इस मोड़ पर हूँ,कभी गिरता ,कभी पड़ता
ना किया विश्राम कोई,और रुका ना ,कहीं थक कर
उम्र है मेरी तिहत्तर
जवानी ने बिदा ले ली ,भले कुछ मुरझा रहा तन
जोश और जज्बा पुराना ,है मगर अब तलक कायम
आधा खाली दिख रहा पर,भरा है आधा कनस्तर
उम्र है मेरी तिहत्तर
भले ही सर पर हमारे ,सफेदी सी छा रही है
पर हमारे हौंसले की ,बुलंदी वो की वो ही है
दीवारें मजबूत अब भी ,गिर रहा चाहे पलस्तर
उम्र मेरी है तिहत्तर
छाँव दी कितने पथिक को ,था घना मैं जब तरुवर
दिया पंछी को बसेरा और बहाई हवा शीतल
फल उन्हें भी खिलाएं है,मारा जिनने ,फेंक पत्थर
उम्र मेरी है तिहत्तर
किसी से शिकवा न कोई ,ना किसी को कोसता हूँ
न तो कल को भूल पाता और न कल की सोचता हूँ
पा लिया मैंने बहुत कुछ,जैसा था मेरा मुकद्दर
उम्र मेरी है तिहत्तर
बेसुरी सी हो रही है उमर के संग बांसुरी है
लग गयी बीमारियां कुछ,किन्तु हालत ना बुरी है
ज़रा ब्लडप्रेशर बढ़ा है,खून में है अधिक शक्कर
उम्र है मेरी तिहत्तर
कठिन पथ है ,राह में कुछ ,दिक्कतें तो आ रही है
चाल है मंथर नदी की ,मगर बहती जा रही है
कौन जाने कब मिलेगा ,दूर है कितना समंदर
उम्र है मेरी तिहत्तर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिंदगानी के सफर में ,मुश्किलों से रहा लड़ता
आ गया इस मोड़ पर हूँ,कभी गिरता ,कभी पड़ता
ना किया विश्राम कोई,और रुका ना ,कहीं थक कर
उम्र है मेरी तिहत्तर
जवानी ने बिदा ले ली ,भले कुछ मुरझा रहा तन
जोश और जज्बा पुराना ,है मगर अब तलक कायम
आधा खाली दिख रहा पर,भरा है आधा कनस्तर
उम्र है मेरी तिहत्तर
भले ही सर पर हमारे ,सफेदी सी छा रही है
पर हमारे हौंसले की ,बुलंदी वो की वो ही है
दीवारें मजबूत अब भी ,गिर रहा चाहे पलस्तर
उम्र मेरी है तिहत्तर
छाँव दी कितने पथिक को ,था घना मैं जब तरुवर
दिया पंछी को बसेरा और बहाई हवा शीतल
फल उन्हें भी खिलाएं है,मारा जिनने ,फेंक पत्थर
उम्र मेरी है तिहत्तर
किसी से शिकवा न कोई ,ना किसी को कोसता हूँ
न तो कल को भूल पाता और न कल की सोचता हूँ
पा लिया मैंने बहुत कुछ,जैसा था मेरा मुकद्दर
उम्र मेरी है तिहत्तर
बेसुरी सी हो रही है उमर के संग बांसुरी है
लग गयी बीमारियां कुछ,किन्तु हालत ना बुरी है
ज़रा ब्लडप्रेशर बढ़ा है,खून में है अधिक शक्कर
उम्र है मेरी तिहत्तर
कठिन पथ है ,राह में कुछ ,दिक्कतें तो आ रही है
चाल है मंथर नदी की ,मगर बहती जा रही है
कौन जाने कब मिलेगा ,दूर है कितना समंदर
उम्र है मेरी तिहत्तर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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