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शनिवार, 19 जुलाई 2014

संवाद -बादल से

          संवाद -बादल से

मुझसे कल पूछा बादल ने ,बताओ मैं कहाँ बरसूँ
              चाहते सब है बरसूँ मैं ,पर छतरी तान लेते है
सिर्फ धरती है जो मुझको,समा लेती  सीने में ,
             और बाकी सब बहा देते ,पराया मान लेते है               
बहुत जी चाहता मेरा ,मिलूं आकर के धरती से,
            हवाएँ आवारा  लेकिन मुझे अक्सर उडा लेती ,
सरोवर पीते मेरा जल ,मगर नदियां बहा देती ,
             समंदर भी उडा  देते,नहीं अहसान  लेते  है

घोटू

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