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मंगलवार, 15 जुलाई 2014

देखे सपने

             देखे सपने

जग देखे सोयी आँखों से
मैंने उड उड़ ,बिन पाँखों से
बिना पलक अपनी झपकाये ,
            मैंने जग जग ,देखे सपने
अन्धकार का ह्रदय चीर कर
आती ज्योति रश्मि अति सुन्दर
तन मन में उजियारा फैला,
            मैंने  जगमग देखे सपने
जब भी चला प्रेम की राहें
तुझ पर अटकी रही निगाहें
कभी थाम लेगी तू बाँहें ,
            मैंने  पग पग ,देखे सपने
तेरी आस ,संजोये मन में,
रहा भटकता ,मैं जीवन में
रोज रोज ,आपाधापी में ,
              मैंने भग भग ,देखे सपने
कभी भाग्य चमकेगा मेरा
सख्त ह्रदय पिघलेगा तेरा
ये आशा ,विश्वास लिए मैं ,
              हुआ न डगमग ,देखे सपने
      
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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